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कुम्भ पर्व पर नागा संन्यासियों का शाही स्नान तो सदियों से लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से इनका कुम्भ क्षेत्र में प्रवेश के लिए प्रस्थान यात्रा, जिसे 'पेशवायी' नाम दिया गया है, श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर रही है। दरअसल नागा संन्यासी के रमता पंच धीरे–धीरे प्रयाग में एकत्र होते हैं और फिर जब प्रशासन उन्हें भूमि आवंटित कर देता है तो पहले भूमि पूजन फिर धर्म ध्वजा की स्थापना और अंत में शुभ मुहूर्त में मेला क्षेत्र में प्रवेश होता है।
पेशवायी यात्रा पहली बार देखने वाले लाखों स्थानीय लोग आश्चर्यचकित हैं, क्योंकि अभी तक वह समाज में साधु-संतों और नागा सन्यासियों को शांत और सादगी के साथ विचरण करते देखते आये हैं, लेकिन अपनी जमात के साथ गंगा मां की गोद में बैठने के लिए जाते समय इनका उत्साह निश्चित रूप से अकल्पनीय था। पेशवायी यात्रा के आगे-आगे ध्वजा, सोने, चांदी के रथ पर विराजमान उनके आराध्य, उनकी सेवा में लगे दर्जन भर साधु-संत, सजे-संवरे रथ पर सवार आचार्य महामण्डलेश्वर, मण्डलेश्वर, श्रीमहंत, प्रमुख साधु-संत, सजे हुए हाथी, घोड़े, ऊंट पर सवार नागा संन्यासी, परम्परागत शस्त्रों से करतब दिखाते नागा, दर्जन भर बैण्ड पार्टियों की रामधुन पर नृत्य करते संतों की टोलियां, नगाड़ा, तुरही, शंख बजाते संतों पर पुष्पवर्षा करते श्रद्धालु, इनके चरण को माथे पर लगाने की आपा-धापी करते श्रद्धालुओं के झुंड को देखना अदभुत और अप्रतिम होता है। नागा संन्यासियों की इस पेशवायी यात्रा में उनके वैभव की झलक तो दिखती ही है, साथ ही दिखती है ऐतिहासिक और सांस्कृतिक झलक। नागा संन्यासियों के अखाड़े अपनी पूरी सामर्थ्य और भव्यता के साथ पेशवायी यात्रा निकालते हैं। इस यात्रा में उनसे जुड़े साधु-संतों के साथ देश-विदेश से आये हजारों भक्त भी शामिल होते हैं।
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