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स्वामी विवेकानन्द ने मात्र 39 वर्ष की आयु में वह सब कर दिखाया था जिसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस युवा संन्यासी ने उस समय विश्व के क्षितिज पर हिन्दू धर्म व संस्कृति का डंका बजाया था, जब केवल ईसाई पादरियों की तूती बोलती थी। देश, समाज, धर्म, संस्कृति के प्रति उनके योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा। उनके जन्म दिवस (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी की डेढ़ सौवीं जयंती के अवसर पर उनके विचारों के सन्दर्भ में पाञ्चजन्य ने कुछ युवाओं से बातचीत की जिसके मुख्यांश यहां प्रस्तुत हैं। –सं. (प्रस्तुति– तरुण सिसोदिया)
युवाओं को
उचित दिशा मिले
–कृष्ण अग्रवाल
प्राध्यापक, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
आज का युवा परंपरा और आधुनिकता के अंतर्द्वंद्व में फंसा हुआ है। परंपरा में उसे नीरसता और बेड़ियां नजर आती हैं वहीं आधुनिकता का आकर्षण जिंदगी का असली आनंद प्रतीत होता है। आज के युवा को दिशाहीन कहना भी अनुचित होगा क्योंकि हर सामाजिक आन्दोलन में युवाओं की रचनात्मक भूमिका रहती है। ऐसे समय में स्वामी विवेकानंद का दर्शन युवाओं के लिए बहुत उपयोगी है। स्वामी विवेकानंद के विचार सही मार्ग पर चलते रहने की प्रेरणा देते हैं। स्वामी विवेकानंद न तो परंपरा को नकारते थे और न ही आधुनिकता को ही वे धिक्कारते थे। स्त्री-सशक्तिकरण में स्वामी विवेकानंद के स्त्री-शिक्षा संबंधी विचारों का अनुकरण किया जाना चाहिए। वे प्रगतिशील, स्वस्थ तथा सकारात्मक दिशा में युवाओं की भागीदारी को अहम मानते थे। एक कवि की निम्न पंक्तियां यहां ठीक लगती हैं- ‘ªÉÖ´ÉÉ जब चलते हैं, तो तूफान मचलते हैं, युवा जब उमड़ते हैं तो सैलाब उमड़ते हैं। इन युवाओं को दबाने की कोशिश न करो, ये युवा जब बदलते हैं तो इतिहास बदलते ½éþ*’ जरूरत है हमारी युवाशक्ति को सही दिशा में बढ़ाने की जोकि स्वामी विवेकानंद के विचारों का सार है।
स्वयं को पहचानना है
–अमित कल्ला
चित्रकार एवं कवि
आज दुनिया जिन परिस्थितियों से गुजर रही है वह पूरी मनुष्यता के लिए बेहद नाजुक दौर की ओर जाने का इशारा है। कुछ चुनिन्दा मदान्ध शक्तिशाली लोगों ने हमारे लिए घुटन भरे वातावरण को रचा है। ऐसे में हमें स्वामी विवेकानंद का यह विचार प्रेरित करता है, ‘¨Éä®úÒ दृढ़ धारणा है कि तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है। ‘ºÉɽþºÉÒ’ शब्द और उससे अधिक ‘ºÉɽþºÉÒ’ कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दु:ख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार-बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तरयामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे महान कर्म क्या ½èþ?’ स्वामी जी की हर एक बात इस संक्रमण काल में हर युवा भारतवासी के मन की मनोदशा के लिए संजीवनी स्वरूप है। वे बार-बार हमारी सोयी हुयी चेतना को जगाते हैं, हमारे अंतर्मन को झकझोर कर जीवन के कुरुक्षेत्र में मनुष्य धर्म निभाने को प्रेरित करते हैं। वास्तव में स्वामी जी के कहे अनुसार हमें अपने आपको पहचानना होगा। अपने भीतर की दिव्यता को जगाकर, ऊंच-नीच के विचारों को त्यागकर चलते-फिरते जीते-जागते मनुष्यरूपी देवताओं को सेवा के माध्यम से पूजना होगा।
सख्त कानून और उसका क्रियान्वयन जरूरी
–डा. अभिषेक अत्रे
अधिवक्ता
सर्वोच्च न्यायालय
अमरीका में भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद के चरित्र को कलंकित करने का प्रयास किया गया। इस काम के लिए जिस महिला को भेजा गया था उस महिला को उन्होंने मां कहकर संबोधित किया। महिलाओं को मां की दृष्टि से देखने वाले ऐसे चरित्रवान स्वामी विवेकानंद के देश में आज महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। ‘EòxªÉÉ भ्रूण हत्या, महिलाओं के साथ छेड़खानी एवं बलात्कार जैसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह सब सही शिक्षा और प्रेरणा की कमी के चलते हो रहा है। सख्त कानून और उसके क्रियान्वयन की कमी भी एक कारण है। कानून में खामियों के चलते अपराध दर लगातार बढ़ रही ही है। स्वामी विवेकानन्द के आदर्शों को ग्रहण करने से इस तरह की समस्याएं बहुत हद तक खत्म हो सकती हैं।
बलवान बनो
–ललित शर्मा
शारीरिक शिक्षक
विवेकानंद स्कूल
दिल्ली
स्वामी विवेकानंद भारत के युवा संन्यासी थे, जिन्होंने पूरे विश्व को भारत के सांस्कृतिक मूल्यों से नई दिशा दिखाई। स्वामी जी भारत को पुन: विश्व गुरु बनते देखना चाहते थे। उन्हें देश के युवाओं से बहुत आशायें थीं। स्वामी जी मानते थे कि युवाओं के आधार पर ही सुदृढ़ भारत का निर्माण होगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था ‘¦ÉÉ®úiÉ के युवाओं को शक्ति की उपासना करनी होगी। यह सत्य है कि बल ही जीवन है और दुर्बलता ही मरण। हे मेरे युवा मित्रो! तुम बलवान बनो तुम्हारे लिए मेरा यही उपदेश है। गीता पाठ करने की अपेक्षा फुटबाल खेलने से तुम स्वर्ग के कहीं अधिक निकट ½þÉäMÉä*’ हम स्वयं को दुर्बल न समझें, बल्कि अपने को बलवान एवं शक्तिमान मानें। यह भी सिद्ध हो चुका है कि स्वस्थ शरीर में ही तेज दिमाग तथा आगे बढ़ने का उत्साह होता है। अत: हमारे देश को वैभवपूर्ण एवं गौरवशाली बनाने के लिए भारत के युवाओं को अपने शारीरिक विकास की ओर सबसे अधिक ध्यान देना होगा।
भारतीय चेतना जगे
–ममता त्रिपाठी
शोध छात्रा, जे.एन.यू.
स्वामी विवेकानन्द ने प्राच्य एवं पाश्चात्य जगत् में वेदान्त की दुन्दुभी बजाकर भारतीय प्रज्ञा और चेतना को जगाया, भारतीय चिन्तनशील संस्कृति को नवीन ऊर्जा, नव उत्साह और अद्भुत गति प्रदान की। लगभग एक सहस्र वर्ष की पराधीनता के अन्धकार में सुषुप्त भारतीय मस्तिष्क में बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत कर उसका औपनिषदिक ज्ञानराशि से साक्षात्कार कराया और राष्ट्र-निर्माण के पूत-यज्ञ में युवाओं के योगदान का आह्वान किया। स्वामी जी का आह्वान था कि हमारी युवा पीढ़ी ऊर्जस्वित हो, रूढ़िवादिता से मुक्त होकर व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दे। इसके लिये आवश्यक है कि वास्तविक शिक्षा का प्रसार हो जिससे युवाओं में चारित्रिक दृढ़ता आये, उनका आत्मबल ऊंचा हो एवं सच्चे अर्थों में एक मनुष्य का निर्माण हो। वास्तविक शिक्षा वह है जिससे मनुष्य मानसिक, नैतिक, चारित्रिक, सामाजिक, आत्मिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित हो सके तथा उसमें आत्मगौरव, आत्मविश्वास, आत्मत्याग, आत्मनियन्त्रण, आत्मनिर्भयता और आत्मज्ञान जैसे सद्गुणों का विकास हो। धर्म और चिन्तन से निरन्तर पुष्पित-पल्ल्वित, एक जीवन्त सांस्कृतिक आधार पर विकसित हमारे समाज के समक्ष आज अनेक चुनौतियां उपस्थित हैं। अनेक आसन्न संकटों से घिरे हमारे समाज को आज एक बार पुन: स्वामी विवेकानन्द जैसे महापुरुष की आवश्यकता है, जो एक बार फिर उसका मार्गदर्शन कर सके।
वे कालजयी योद्धा थे
–पुष्पेन्द्र किशोर
साफ्टवेयर इंजीनियर
स्वामी विवेकानंद दूरद्रष्टा थे। उन्होंने कहा था ‘¦ÉÉ®úiÉ को धर्म की नहीं तकनीक की आवश्यकता है क्योंकि हमारा देश धर्मप्रधान तो पहले से ही ½èþ*’ 1893 में उन्होंने अपने ये विचार शिकागो जाते हुए एक जहाज पर टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेद टाटा के समक्ष रखे। जमशेद टाटा स्वामी जी के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने भारत में तकनीक के विकास के लिए एक संस्थान बनाने की मन में ठानी और उसका निर्माण भी किया। आज भारत के कम्प्यूटर इंजीनियर पूरे विश्व में अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे हैं। दिन-प्रतिदिन तकनीक विकसित हो ही रही है। इसे और अधिक विकसित करने की जरूरत है, ताकि जो तकनीक हम विदेशों से ले रहे हैं उसकी आवश्यकता ही न पड़े और भारत का नाम पूरे विश्व में हो। स्वामी विवेकानंद का हर शब्द इंसानी जीवन को बदलने का सामर्थ्य रखता है। हमारे होने की सार्थकता को प्रतिबिंबित करता है। उन्होंने सत्ता और सरकारों से समाज को सदैव ऊंचा दर्जा दिया, उनकी आवाज असल भारत की आवाज है। स्वामी जी तो कालजयी योद्धा हैं और इस सभ्यता के लिए हमेशा बने रहेंगे।
देशसेवा में लगने का प्रण लें
–संदीप राणा
समाजसेवी
स्वामी विवेकानंद ने कहा था ‘¦ÉÉ®úiÉ का भविष्य युवाओं पर निर्भर है, निष्क्रिय युवा परिवर्तन नहीं कर सकता, युवा को सक्रिय होना ½þÉäMÉÉ*’ यह विचार आज भी महत्व रखता है। युवाओं को राष्ट्रीय एकता हेतु जन समुदाय को संगठित करना होगा। गांव-गांव जाकर ‘nùÊ®úpù नारायण देवो ¦ÉÉ´É’ के स्वप्न को साकार करते हुए गांव में गरीबों का सेवा के माध्यम से उत्थान करना होगा। देश के भविष्य को गढ़ने का दायित्व युवाओं पर है। आज समय स्वामी विवेकानंद के स्वप्नों को साकार करने का है। हमें एक हाथ में धर्म को मजबूती से पकड़े हुए निरंतर आगे बढ़ना होगा। हमें स्वामी जी की वह कला अपने अंदर लानी होगी जिसने आधुनिक से आधुनिक युवा एवं संन्यासियों तक को समाज कार्य में लगा दिया था। हमें स्वयं को देशसेवा में लगाने का प्रण लेना होगा। स्वामी जी के विचारों को आत्मसात करके ही युवा देश के नवनिर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे पाएंगे। यही स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती का देशवासियों को संदेश होगा।
महिलाओं को शिक्षित करो
–मोनिका चौधरी
छात्रा
दिल्ली विश्वविद्यालय
‘¨Éä®äú बच्चो! तुम्हें गीता नहीं, फुटबाल चाहिए। मैं चाहता हूं तुम्हारी मांसपेशियां फौलाद की हों और मस्तिष्क उस पदार्थ का बना हो जिससे आकाश में कौंधने वाली बिजली बनी होती ½èþ*’ यह विचार देश के उस युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद के हैं जिसने देश में ही नहीं विदेशों में भी अपने विचारों के जरिए करोड़ों दिलों को जीता। स्वामी जी ने जिस भी विषय पर अपने विचार व्यक्त किए लोगों ने उसे सहर्ष स्वीकार भी किया। हर विषय पर उनका गहन चिंतन होता था। स्वामी जी ने हमेशा ही नारी सशक्तिकरण का समर्थन किया है। उन्होंने कहा था ‘¨Éʽþ±ÉÉ+Éå को शिक्षित करो, यदि वह शिक्षित होंगी तो अपनी समस्या का समाधान स्वयं ही कर ±ÉåMÉÒ*’ वे हमेशा कहते थे ‘+MÉ®ú एक युवक को शिक्षा दी जाती है तो सिर्फ वह युवक शिक्षित होता है, परंतु अगर एक युवती को शिक्षा दी जाती है तो एक परिवार शिक्षित होता है, जिससे पूरा राष्ट्र शिक्षित होता ½èþ*’ आज के संदर्भ में भी उनके ये विचार पूरी तरह से सत्य हैं। जैसे-जैसे भारत में महिलाएं शिक्षित हुई हैं वैसे-वैसे भारत ने पूरे विश्व में शिक्षा में एक उच्च स्थान हासिल किया है, जिससे पूरे देश का विकास हुआ है।
पाठ्यक्रम में हों स्वामी विवेकानंद के विचार
–गौरव बाली
छात्र, बी.फार्मा
भारत के सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक जागरण तथा सुधार में स्वामी विवेकानंद का अप्रतिम योगदान है। सुभाष चंद्र बोस ने तो उन्हें आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का ‘+ÉvªÉÉÎi¨ÉEò Ê{ÉiÉÉ’ कहा था। उनके विचारों का तत्व यह था कि हमें भौतिकवाद तथा अध्यात्म के बीच एक संतुलन स्थापित करना है। वे समस्त संसार के लिए एक ऐसी संस्कृति की परिकल्पना करते थे जिसमें भौतिकवाद तथा अध्यात्म का ऐसा सामंजस्यपूर्ण सम्मिश्रण हो जो समस्त संसार को प्रसन्नता दे सके। स्वामी जी के विचार तब भी प्रासंगिक थे जब उन्होंने व्यक्त किये थे और आज जब उपभोगवादी सोच का प्रभाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है तथा अपनी चरम अवस्था पर पहुंच गया है तब उनके विचार और प्रासंगिक हो जाते हैं। स्वामी जी के विचार भारतीय अतीत तथा परम्परा के श्रेष्ठतम विचारों की अभिव्यक्ति थे। किंतु आधुनिकता के नाम पर हमारे नीति-निर्माताओं ने विदेशों की नकल मात्र ही की जिसका दुष्परिणाम है सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में सर्वत्र व्याप्त अव्यवस्था, अराजकता तथा निराशा का दृश्य। अत: यह समय की मांग है कि विद्यालय-महाविद्यालय के पाठयक्रम में स्वामी विवेकानंद के विचारों को समुचित स्थान दिया जाए।
उनके विचारों का अनुसरण करें
–शिवेश मिश्रा
प्रतियोगी छात्र
स्वामी विवेकानंद ने कहा था ‘+MÉ®ú मुझे सौ बलशाली और चरित्रवान युवा मिल जाएं तो मैं एक नए भारत का निर्माण कर सकता ½ÚÆþ*’ परंतु आज का भारतीय युवक उभयमुखी रास्ते पर खड़ा है। आज का युवक वैभव और विलासिता से पूर्ण जीवन की ओर आकर्षित होता जा रहा है। इसके कारण प्रतियोगिता, उपभोगवादिता आदि बढ़ रही है। जिसके प्रभाव से वर्तमान समय में युवकों का जीवन दिशाविहीन हो गया है। इसी का परिणाम है कि आज तक स्वामी जी के सपनों के भारत का निर्माण नहीं हो पाया है। स्वामी जी की विचारधारा युवकों के मन को जगाने वाली है। अत: आज के युवा को चाहिए कि वह स्वामी जी के विचारों का पूर्णत: अनुसरण करें क्योंकि उनकी विचारधारा नैतिक मार्ग पर चलने, समाज के विकास में योगदान करने, जीवन की कठिनाइयों के समय दृढ़ता से खड़े रहने और स्वयं के लिए जीने की अपेक्षा राष्ट्रहित में स्वयं को समर्पण करने की प्रेरणा देती है।
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