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150वीं जयंती पर देशभर में शोभायात्राएं का ऊर्जावान उद्घोष करने वाले भारत के युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में गत 12 जनवरी को देशभर में स्वामी विवेकानंद सार्द्धशती समारोह समिति के तत्वावधान में शोभायात्राओं का आयोजन किया गया। ये शोभायात्राएं जिला एवं प्रांत केन्द्रों पर आयोजित की गईं।
देश की राजधानी दिल्ली में लालकिले से भव्य शोभायात्रा का आयोजन हुआ। इसमें हजारों की संख्या में राजधानीवासियांे ने भाग लिया। इनमें स्कूली बच्चे, माताएं–बहनें एवं युवाओं की अच्छी संख्या थी। शोभायात्रा का शुभारम्भ रामकृष्ण मिशन, दिल्ली के सचिव स्वामी शांतात्मानंद ने किया।
यात्रा से पूर्व हुये मंचीय कार्यक्रम में गायत्री परिवार के प्रमुख डा. प्रणव पंड्या ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द का जन्म हमें गौरव महसूस कराता है। देश की आजादी का आधार स्वामी विवेकानन्द बने, लेकिन हमें सांस्कृतिक आजादी नहीं मिल पायी। उन्होंने कहा कि जीवन से नकारात्मकता हटाना ही संन्यास है। हमें नकारात्मकता से संन्यास लेना होगा। कार्यक्रम के मंच पर स्वामी विवेकानन्द सार्द्धशती समारोह समिति की राष्ट्रीय अध्यक्षा माता अमृतानन्दमयी (अम्मा), राष्ट्रीय सचिव श्री अनिरुद्ध देशपाण्डे, नारायणगुरु संस्थान, केरल के अध्यक्ष स्वामी ऋतम्भरानन्द, विश्व हिन्दू परिषद के संगठन महामन्त्री श्री दिनेश चन्द्र, विवेकानन्द केन्द्र, कन्याकुमारी के अध्यक्ष श्री पी. परमेश्वरन्, राष्ट्र सेविका समिति की निवर्तमान प्रमुख संचालिका सुश्री प्रमिला ताई मेढ़े, वाल्मीकि समाज के सन्त स्वामी विवेकनाथ महाराज, दिल्ली समिति के अध्यक्ष श्री राधेश्याम गुप्ता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली के प्रान्त संघचालक श्री कुलभूषण आहूजा भी आसीन थे।
कार्यक्रम में माता अमृतानन्दमयी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि स्वामी विवेकानन्द महान कर्मयोगी स्वामी रामकृष्ण परमहंस के ऐसे पुष्प थे जिन्होंने सबको सुगन्धित किया। आध्यात्मिकता केवल जंगल में जाकर संन्यास लेना नहीं, बल्कि समाज का जीवन सुधारना है। समस्त समाज को उठाने का आधार सही शिक्षा है, उसके लिए उचित शिक्षा पद्धति की अपेक्षा है।
लालकिले से शोभायात्रा चांदनी चौक, खारी बावली, लाहौरी गेट, नावल्टी सिनेमा, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन होती हुई वापस लालकिले पर समाप्त हुर्ह। शोभायात्रा का जगह-जगह स्थानीय लोगों ने पुष्पवर्षा कर भव्य स्वागत किया। इसमें मुख्य आकर्षण का केन्द्र थे स्वामी विवेकानंद की वेशभूषा पहने चल रहे स्कूली बच्चे, घोष वादन करते हुए बच्चे तथा देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों के परिधानों में सजे-धजे लोग।
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