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Jan 19, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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भारत जागो , विश्व जगाओं (सुक्ति कोष)

दिंनाक: 19 Jan 2013 10:37:30

जहां मानवजाति की क्षमा, धृति, दया, शुद्धता आदि सद्वृत्तियों का सर्वाधिक विकास हुआ है जहां आध्यात्मिकता तथा सर्वाधिक आत्मान्वेषण का विकास हुआ है, तो वह भूमि भारत ही विवेकानन्द
संसार के सभी भोगों का आनंद लेकर प्रत्येक हिन्दू को अंत में उनका त्याग करना ही होगा यही हिन्दुओं का आदर्श है। -स्वामी विवेकानन्द
सवेरे के समय गिरने वाली कोमल ओस न तो किसी की आंखों से दिखाई देती है और न उसके गिरने की ही आवाज कानों को सुनाई पड़ती है, ठीक उसी के समान वह शांत, सहिष्णु, सर्वसह धर्मप्राण जाति धीर और मौन होने पर भी विचार साम्राज्य में अपना जबर्दस्त प्रभाव डालती जा रही है। -स्वामी विवेकानन्द
संसार में दूसरों के धर्म के प्रति सहिष्णुता का यदि थोड़ा बहुत भाव आज भी कहीं विद्यमान है, यदि धर्मभाव से कुछ भी सहानुभूति कहीं है, तो वह कार्यत: यहीं इसी आर्यभूमि में है और कहीं नहीं। -स्वामी विवेकानन्द
पाश्चात्य सभ्यता में चाहे कितनी ही चमक-दमक क्यों न हो, उसमें कितनी ही शोभा और शक्ति की चाहे कितनी ही अद्भुत अभिव्यक्ति क्यों न हो, मैं साफ-साफ कह देता हूं कि यह सब मिथ्या है, भ्रांति-भ्रांति मात्र। -स्वामी विवेकानन्द
जो जीवन की परवर्ती (वानप्रस्थ) अवस्था में त्याग नहीं करता, वह हिन्दू नहीं है 
और न उसे अपने को हिन्दू कहने का कोई अधिकार ही है। -स्वामी विवेकानन्द
वह गधा, जिसके ऊपर चंदन की लकड़ियों का बोझ लाद दिया गया हो, बोझ ही जान सकता है, 
चंदन के मूल्य को वह नहीं समझ सकता। -स्वामी विवेकानन्द
अपने बल पर खड़े रहिए चाहे जीवित रहिए या मरिए। यदि जगत में कोई पाप है तो वह है दुर्बलता। दुर्बलता ही मृत्यु है, दुर्बलता ही पाप है, इसलिए सब प्रकार से दुर्बलता का त्याग कीजिए। -स्वामी विवेकानन्द
नीच व्यक्ति से भी श्रद्धापूर्वक उत्तम विद्या ग्रहण करनी चाहिए, अन्त्यज से भी मुक्तिमार्ग सीखना चाहिए, निम्नतम जाति के नीच कुल की भी उत्तम कन्यारत्न को विवाह में ग्रहण करना चाहिए। -स्वामी विवेकानन्द
प्रत्येक व्यक्ति ने किसी न किसी कार्य साधन के विशेष उद्देश्य से जन्म लिया है,
उसके जीवन की वर्तमान गति अनेक पूर्व जन्मों के फलस्वरूप उसे प्राप्त हुई है। -स्वामी विवेकानन्द
आप लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति महान उत्तराधिकार लेकर जन्मा है, जो आपके महिमामय राष्ट्र के अनंत, अतीत जीवन का सर्वस्व है। सावधान, आपके लाखों पुरखे आपके प्रत्येक कार्य को बड़े ध्यान से देख रहे हैं। -स्वामी विवेकानन्द
यदि आप धर्म को छोड़कर पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता के पीछे दौड़िएगा तो आपका तीन ही पीढ़ियों में अस्तित्व-लोप निश्चित है। क्योंकि इस प्रकार जाति का मेरूदंड ही टूट जाएगा। -स्वामी विवेकानन्द
हम सभी लोगों को इस समय कठिन परिश्रम करना होगा, अब सोने का समय नहीं है। हमारे कार्यों पर भारत का भविष्य निर्भर है भारत माता तत्परता से प्रतीक्षा कर रही है वह केवल सो रही थी। उसे जगाइए, और पहले की अपेक्षा और भी गौरवमंडित और शक्तिशाली बनाकर भक्तिभाव से उसे उसके चिरंतन सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दीजिए। -स्वामी विवेकानन्द
मानव देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है। मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव देह तथा इस जन्म में ही 
केवल पशुत्व और शारीरिक शक्ति विजय नहीं प्राप्त कर सकती, क्षमा और नम्रता ही संसार संग्राम में विजय दिला सकती है। -स्वामी विवेकानन्द
हम इस सापेक्षिक जगत से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं। -स्वामी विवेकानन्द
पुराने जमाने में हमारी जाति ने बहुत बड़े-बड़े काम किये हैं और यदि हम उनसे भी बड़े-बड़े काम न कर सकें, तो एक साथ ही शांतिपूर्वक डूब मरने में हमें संतोष होगा। -स्वामी विवेकानन्द
हे स्वदेशवासियो! मैं संसार के अन्य राष्ट्रों के साथ अपने राष्ट्र की जितनी ही अधिक तुलना करता हूं, उतना ही अधिक तुम लोगों के प्रति मेरा प्यार बढ़ता जाता है। तुम लोग शुद्ध, शांत और सत्स्वभाव हो, और तुम्हीं लोग सदा अत्याचारों से पीड़ित रहते आये हो। -स्वामी विवेकानन्द
हम जानते हैं कि यहां बुराइयां हैं। पर बुराई तो हर कोई दिखा सकता है। मानव समाज का सच्चा हितैषी तो वह है जो इन कठिनाइयों से बाहर निकलने का उपाय बताए। -स्वामी विवेकानन्द
यहां की भूमि विधवाओं के आंसू से कभी कभी तर होती है, तो पाश्चात्य देश का वायुमंडल अविवाहित स्त्रियों की आहों से भरा रहता है। यहां का जीवन गरीबी की चपेटों से जर्जरित है, तो वहां पर लोग विलासिता के विष से जीवन्मृत हो रहे हैं। -स्वामी विवेकानन्द
इस मायामय जड़ जगत की पहेली ही कुछ ऐसी है। जो हो, तुम इसकी परवाह मत करो। अंत में आत्मा की जय अवश्य होगी। इस बीच, आओ हम काम में संलग्न हो जाएं। -स्वामी विवेकानन्द
मैं तो सिर्फ उस गिलहरी की भांति होना चाहता हूं, जो राम के सेतु बांधने के समय अपने योगदान स्वरूप थोड़ी बालू लाकर संतुष्ट हो गयी थी। यही मेरा भाव है।यह अद्भुत राष्ट्र जीवनरूपी यंत्र युग-युग से कार्य करता आ रहा है। -स्वामी विवेकानन्द

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