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थ्वी पर मानव जाति का उद्गम पुरुष व स्त्री के रूप में हुआ। मानव जाति का समयानुसार विकास होता रहा। समय बीतने के साथ-साथ उसने अपनी सुविधा के लिए अनेक ऐसे आविष्कारों का सृजन किया जिन्होंने मानव जीवन को सुविधाजनक और सहज बना दिया।
जैसे-जैसे मानव सभ्य होता गया वैसे-वैसे वह नए नए प्रतिमानों को गढ़ता गया। धीरे-धीरे स्त्री व पुरुष में शारीरिक व मानसिक विभिन्नताएं उजागर होती गईं और पुरुषों ने उन विभिन्नताओं के आधार पर अपने व स्त्रियों के लिए कार्य निर्धारित कर दिए। सदियों से स्त्री व पुरुष इन लकीरों पर चलते रहे। लेकिन जिस तरह से जीवन में परिवर्तन आते हैं, उसी तरह से निर्धारित किए गए कार्यों और गतिविधियों में भी परिवर्तन की लहर आती है। वैसी ही लहर हमारे समाज में आई। जिसका परिणाम यह निकला कि स्त्रियों को जागरूक करने के लिए उनको शिक्षित करने पर बल दिया गया। इसके बाद स्त्री शिक्षित होने के साथ-साथ बुद्धिजीवी, प्रखर और निडर होती गई ।
यदि आज देश में लड़कियां सुशिक्षित होकर उच्च पदों पर आसीन हैं तो इसके साथ एक कड़वा सत्य यह भी है कि तलाक के मामलों में भी दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है क्योंकि शिक्षित स्त्रियों को सही-गलत का भेद समझ में आ जाता है। यही कारण है कि विवाह के बाद वह ससुराल पक्ष व पति की उस बात का विरोध करने से नहीं घबराती जो गलत व अनुचित होती है। जब नारी को सशक्त व शक्तिशाली होने की बात की जाती है, तो इस बात पर खीज व आक्रोश के साथ आंसू भी आ जाते हैं कि यदि ऐसा है तो नारी से आज भी बलात्कार क्यों? दहेज, तलाक व हिंसा के मामले क्यों?
हम नारी के प्रति हो रहे अपराधों को खत्म करने की मांग तो कर रहे हैं लेकिन हम उस मानसिक सोच को दूर करने का प्रयास कब करेंगे जो इस समाज में लड़की के पैदा होने पर ही आरंभ हो जाती है?
हर सफल पुरुष के पीछे उसकी पत्नी का अपरिमित योगदान होता है। ऐसा ही योगदान हर पति को भी देना चाहिए। यदि हर पुरुष अपनी पत्नी को शिक्षा के क्षेत्र में ही आगे बढ़ाए तो समाज का दृश्य ही बड़ा सुहावना होगा। पर ऐसा होता नहीं है। पत्नी के घरेलू कार्यों को भी महत्व नहीं दिया जाता है, जबकि घरेलू कार्य भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। स्त्री व पुरुष शारीरिक व मानसिक रूप से भिन्न हो सकते हैं लेकिन उनमें एक जैसी ही श्वास, रक्त और चमड़ी है। इसलिए महिलाओं को कमतर नहीं समझा जाना चाहिए। कहते हैं न कि इस दुनिया में कोई भी काम ऐसा नहीं है जिसे किया न जा सके, उसी तरह आज स्त्रियों के सामने जो समस्याएं पुरुषवादी सोच के कारण उत्पन्न हुई हैं, उन्हें एक स्वस्थ व संस्कारी परिवेश प्रदान करके दूर किया जा सकता है। यही हमारी संस्कृति का संदेश है।
इसके लिए नए-नए प्रतिमान ढूंढ़ने होंगे। स्कूल की पुस्तकों में भी नवीन व स्वस्थ सोच से भरी हुई बातों को डालना होगा। ऐसा करके ही एक स्वस्थ समाज व देश का निर्माण होगा।
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