मनमोहनी नीति के खतरे
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समदर्शी
मनमोहन सिंह जब से प्रधानमंत्री बने हैं, पाकिस्तान के प्रति उनका मोह सिर चढ़ कर बोल रहा है। बेशक इस पड़ोसी देश से संबंध सुधारने के विरुद्ध कभी कोई नहीं रहा, लेकिन आंख मंूद कर जोखिमभरी राह पर दौड़ना कहां की समझदारी है? दुनिया न भी माने, पर भारत तो पाकिस्तान के गले मिलते हुए पीठ में छुरा घोंपने वाले चरित्र का भुक्तभोगी है। फिर भी मनमोहन हैं कि अपने पाकिस्तान प्रेम से उबर ही नहीं पा रहे। उनके इस पाकिस्तान प्रेम की कीमत चुकानी पड़ रही है भारत को। दिल दहला देने वाला ज्वलंत उदाहरण जम्मू-कश्मीर के पुंछ में पाक सैनिकों द्वारा भारतीय सीमा में घुस कर दो सैनिकों की बर्बर हत्या का है। मेंढर सेक्टर में अपनी इस अमानवीय कार्रवाई में पाक सैनिकों ने इन भारतीय सैनिकों की न सिर्फ गला काट कर हत्या कर दी, बल्कि एक का सिर भी ले गये। बेशक पाक सेना ने अपना यह शैतानी चरित्र पहली बार नहीं दिखाया है। कारगिल घुसपैठ के बाद हुए संघर्ष में भी उसने भारतीय सेना के कैप्टन सौरभ कालिया के शव को क्षत-विक्षत कर ऐसा ही अमानवीय व्यवहार किया था। सरकार तो सोयी रही, लेकिन शहीद कैप्टन कालिया के परिजन मामले को जिनेवा के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले गये हैं। पाक सेना ने दो भारतीय सैनिकों की बर्बर हत्या का यह अमानवीय कृत्य तब किया, जब मनमोहन सिंह सरकार तमाम संवेदनाओं को ताक पर रख कर पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की मेजबानी की खुशी से बाहर भी नहीं निकल पायी थी। मुंबई पर आतंकी हमले के बाद सख्त तेवर दिखा कर फिर नरम पड़ गयी मनमोहन सरकार ने अगर इस बार भी वैसा ही किया तो यह समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि उससे पाक के नापाक हौसले ही बढ़ेंगे।
'युवराज' का नया साल
स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह संभवत: पहला अवसर है जब महिलाओं से जुड़ा कोई मुद्दा अचानक देश के एजेंडे के केंद्र में आ गया है। 16 दिसंबर को दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती बस में हुए सामूहिक बलात्कार की शिकार छात्रा की सिंगापुर के अस्पताल में मौत ने पूरे देश को मानो स्तब्ध कर दिया। पाश्चात्य संस्कृति और आधुनिक संचार प्रौद्योगिकी की प्रेमी युवा पीढ़ी के सामाजिक सरोकारों से दूर जाने पर अक्सर चिंता जतायी जाती रही है, लेकिन इस शर्मनाक घटना के बाद सड़कों पर मुखर असंतोष और विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व इसी पीढ़ी ने किया। नव वर्ष की पूर्व संध्या पर दिल्ली और देश के परिदृश्य सभी को याद होंगे, लेकिन उस कांड के विरोध तथा मृतका के प्रति संवेदना में नव वर्ष का जश्न भूल बड़ी संख्या में युवा हाड़ कंपाने वाली सर्दी में भी दिल्ली के जंतर मंतर पर दिन-रात डटे रहे। ऐसे में लोगों का ध्यान 'युवराज' की ओर जाना स्वाभाविक ही था, जिसे कांग्रेसी 'युवा हृदय सम्राट' प्रचारित करते नहीं थकते। कुछ देर से ही सही, यह सवाल पूछा भी गया कि जब सामूहिक बलात्कार की इस घटना पर देश के दुखी और स्तब्ध 'युवा दिन-रात' सड़कों पर थे, तब 'युवराज' कहां थे? यह भी कि 'युवराज' ने नववर्ष कहां मनाया? सवाल हवा में है, पर जवाब शायद ही मिल पाये, क्योंकि कांग्रेसी तो सवाल सुनते ही बगलें झांकने लगे हैं।
क्या हुआ तेरा वादा?
राहुल गांधी अगर कांग्रेस के 'युवराज' हैं तो अखिलेश यादव भी समाजवादी पार्टी के 'युवराज' हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि सोनिया-सुत राहुल की ताजपोशी का इंतजार अंतहीन होता जा रहा है, जबकि मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी करा भी दी। मायावती के जंगलराज के बावजूद समाजवादी पार्टी की जीत में छात्र-छात्राओं को लेपटॉप बांटने के चुनावी वादे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी, लेकिन मुख्यमंत्रित्वकाल के नौ माह गुजर जाने के बाद भी वादा वफा होने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे। यह चुनावी वादा कब पूरा किया जायेगा, इस सवाल का जवाब खुद अखिलेश यादव नहीं दे रहे। हां, इस बीच उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव ने एक और शिगूफा छोड़ दिया है कि हर सपा कार्यकर्ता के परिवार में एक सदस्य को सरकारी नौकरी दे जायेगी। जब पुराना वादा वफा नहीं हुआ तो नया क्या होगा। पर लोगों को फुसलाने में क्या जाता है?
राजा का राज
आखिरकार वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बन ही गये। कांग्रेस आलाकमान के समक्ष दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था, लेकिन अब राजा अपने ही अंदाज में राज करने पर आमादा नजर आते हैं। जनाधार वाले नेता होने के बावजूद वीरभद्र के विरोधियों की भी हिमाचल में कमी नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री बन जाने के बाद राजा किसी को भाव देने को तैयार नहीं हैं। विरोधियों को भी उन्होंने तब मंत्री पद से नवाजा, जब वे शरण में आ गये। दूसरी ओर अपने विश्वस्तों को वह चुनाव हार जाने के बावजूद लाल बत्ती बांटने में संकोच नहीं कर रहे। उन्हें निगमों और बोर्डों की अध्यक्षता सौंपी जा रही है। इस छोटे से खूबसूरत पहाड़ी राज्य के संसाधन सीमित होने के बावजूद चहेतों को रेवड़ियां बांट कर राजा राज्य को आर्थिक बदहाली की राह पर ही धकेल रहे हैं, यह समझना बहुत मुश्किल तो नहीं होना चाहिए।
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