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बदलते राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष तथा केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कांग्रेस के साथ जारी गठबंधन तोड़कर अलग से चुनाव लड़ने का राग फिर से अलापना शुरू कर दिया है। उधर कांग्रेस के नेता, विशेष तौर पर मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भी शरद पवार तथा उनके दल से राजनीतिक दूरी बनाये रखते हुए अलगाव की प्रक्रिया तेज करने की रणनीति अपना ली है। शरद पवार के अनुसार हाल ही में संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस का गठबंधन था। उस चुनावी गठबंधन के तहत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को गुजरात में 9 स्थान दिये गये थे, जिस पर उसने अपने प्रत्याशी खड़े किए। लेकिन इनमें से 5 स्थानों पर कांग्रेसी उम्मीदवार तथा 4 स्थानों पर बागी कांग्रेसी प्रत्याशियों के खड़े होने के कारण राष्ट्रवादी कांग्रेस को गुजरात में करारी हार का सामना करना पड़ा और उसे एक भी स्थान नहीं मिला, जबकि पिछली गुजरात विधानसभा में उनके दल के 3 विधायक थे। स्वयं शरद पवार ने इसे काफी गंभीरता से लिया है। उल्लेखनीय है कि पूर्णों संगमा के दल से अलग हो जाने के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में तथा गोवा विधानसभा में कोई भी स्थान न मिलने के बाद शरद पवार तथा उनके दल का सारा ध्यान गुजरात पर ही केन्द्रित था, जिसे कांग्रेसी रणनीति ने मटियामेट कर दिया। नतीजतन शरद पवार एवं उनका दल महाराष्ट्र तक ही सिमट गया है। गुजरात चुनाव के पश्चात हार के कारणों की समीक्षा करते हुए शरद पवार ने यह सीख ली है कि अगले साल, यानी 2014 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव राष्ट्रवादी कांग्रेस अपने बलबूते पर लड़ेगी क्योंकि कांग्रेस ने उनके साथ गुजरात में जो धोखाधड़ी की है, उसे वे कतई दोहराना नहीं चाहेंगे। शरद पवार के इस राजनीतिक मंशा को राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल तथा प्रांतीय स्तर पर प्रदेश अध्यक्ष मधुकर पिचड़ व शरद पवार की भतीजे तथा राज्य के उप-मुख्यमंत्री अजित पवार खूब प्रचारित कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि इस सबके पीछे शरद पवार के प्रशंसकों, समर्थकों, रिश्तेदारों की यह रणनीति है कि शरद पवार ही अगले प्रधानमंत्री बनें। इस प्रकार की मंशा को वास्तविक बनाना आंकड़ों के आधार पर असंभव ही लगता है, क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस के पास मात्र 15 ही सांसद हैं जो दल को सीमित मात्रा में मंत्री पदों के अलावा अधिक कुछ भी नहीं दिला सकते। महाराष्ट्र के आंकड़े भी पवार और उनके दल के पक्ष में नहीं जा रहे हैं। राजधानी मुम्बई के विधानसभा के 36 स्थानों के अलावा राज्य के विदर्भ संभाग में विधानसभा के 62 स्थान हैं। इन 98 स्थानों में से राष्ट्रवादी कांग्रेस के मात्र 6 विधायक हैं और विगत 4 वर्षों में दल की राजनीतिक स्थिति में कोई सुधार भी नहीं हुआ है। इतना ही नहीं विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में संपन्न हुए महानगर निगम, नगर निगम तथा जिला पंचायतों के चुनावों में भी राष्ट्रवादी कांग्रेस के हालात सुधरे नहीं है। शरद पवार की दुविधा यह भी है कि राज्य में विभिन्न प्रभागों तथा परियोजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार में मुख्य रूप से जितने भी मंत्री फंसे है, वे सारे उन्हीं के दल से संबद्ध हैं। इनमें मुख्य रूप से राज्य के सार्वजनिक निर्माण मंत्री छगन भुजबल, गृह-निर्माण राज्यमंत्री गुलाबराव देवकर, सिंचाई मंत्री सुनील तटकरे तथा उपमुख्यमंत्री अजित पवार हैं।
अपने सहयोगी दल (राष्ट्रवादी कांग्रेस) को इस प्रकार घिरा देखते हुए राज्य के विपक्षी दलों से भी ज्यादा खुश है कांग्रेस, मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के मन में तो मानो लड्डू फूट रहे हैं। इसलिए पृथ्वीराज चव्हाण राष्ट्रवादी कांग्रेस पर हावी होने का एक भी मौका नहीं गंवाना चाहते। राज्य की सिंचाई परियोजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच कर उसकी रपट प्रकाशित करते समय पृथ्वीराज चव्हाण ने अपने आपको साफ छवि वाला साबित करने के साथ ही उसी बहाने राष्ट्रवादी कांग्रेस, खासकर अजित पवार को बड़ी कुशलता के साथ कटघरे में खड़ा करा दिया। भारत रत्न डा. बाबासाहब अम्बेडकर के स्मारक हेतु मुम्बई की इंदू मिल की भूमि आवंटित करते समय मुख्यमंत्री चव्हाण ने चालाकी बरती और उसका सारा श्रेय अकेले ही लूट लिया। राज्य के गन्ना उत्पादन तथा चीनी उद्योगों से जुड़े श्रमिकों से संबद्ध सारे निर्णय भी पृथ्वीराज चव्हाण ने अपने आपको स्थापित करने के लिए किए। इन निर्णयों को जारी करते समय जो विज्ञापन दिये गये उसमें भी मात्र पृथ्वीराज चव्हाण की फोटो ही प्रकाशित की गई। ऐसे में आने वाले समय में राज्य में कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच की यह खाई और कितना गहरी होगी, यह देखना खासा दिलचस्प होगा।द
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