सही पक्ष चुनने का अवसर-हृदय नारायण दीक्षित
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सही पक्ष चुनने का अवसर-हृदय नारायण दीक्षित

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Jan 5, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jan 2013 14:49:54

पूरब के क्षितिज अरुण हो रहे हैं। ऊषा आ चुकी है, अपनी हिरण्य आभा के साथ। ब्रह्माण्ड की समूची चेतना ऊर्जा के स्वामी सविता देव-सूर्य उत्तरायण की ओर रुख कर चुके हैं। आनन्द द्रव्य पिघल रहा है। जो सूर्य वरेण्य हैं- तत् सविर्तु वरेण्यं भर्गो देवस्य हैं, वे धनु राशि से मकर की ओर उन्मुख हैं। बड़ी प्रीतिकर, दिव्य, भव्य और संकल्प का मुहूर्त है यह 'मकर संक्रान्ति'। उन सूर्य की दीप्त आभा, उनके रथ और अश्वों को नमस्कार है। नमस्कार है उनके रथ चक्र के 12 आरों (मासों) को भी। ऋग्वेद के ऋषि ने ऋतु के रथ चक्र में 12 आरे गिने थे। वे सूर्य मकर संक्रान्ति से उत्तरापथ हो रहे हैं।

संक्रान्ति का सीधा अर्थ है सु-परिवर्तन। भारतीय चिन्तन में कालगणना की महत्ता है। यहां सारे पर्व, त्योहार, दिक्‌-काल से जुड़े हुए हैं। कालगणना के अनुसार 'संक्रान्ति का अर्थ सूर्य के तेजस् का एक राशि से दूसरी राशि में जाना।' मकर संक्रान्ति सूर्य के धनुराशि से मकर राशि में संक्रमण का मुहूर्त है। सूर्य देव मकर राशि के बाद कुम्भ, मीन, मेष, वृष, मिथुन के अन्त तक उत्तरायण रहेंगे। वे कर्क से धनु तक दक्षिणायन रहते हैं। उत्तरायण काल शिव संकल्पों का मंगल मुहूर्त है। राष्ट्र का परमवैभव साधने का अनुकूल काल। ऐसे सारे शिव संकल्पों को पूरा करने का तन्मय अवसर।

ब्रह्माण्ड विराट है। भूगोल में हम सब हैं, खगोल के व्योम में सूर्य, ग्रह और नक्षत्र। ग्रह बहुत बड़े हैं और 9 हैं। राहु, केतु छाया ग्रह हैं, लेकिन छाया भी कोरी माया नहीं होती। नक्षत्र तारापुंज हैं। 12 राशियों के 27 समान भाग। एक राशि में सवा दो नक्षत्र माने जाते हैं। सूर्य का तेजस् सवा दो नक्षत्रों वाली किसी भी राशि में प्रवेश करते समय समूचे ब्रह्माण्ड में परिवर्तन लाता है। यही संक्रान्ति काल कहा जाता है। दरअसल जगत का प्रत्येक परमाणु गतिशील है। जहां गति है, वहीं समय है। हमारे पूर्वजों को भूगोल के साथ खगोल अध्ययन की भी गहरी रुचि थी। उन्होंने हजारों बरस पहले ग्रहों, नक्षत्रों की गति का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। लेकिन फ्रांसीसी ज्योतिष शास्त्री विओट व ह्विटनी आदि कुछेक विद्वानों के अनुसार भारत ने नक्षत्रों का ज्ञान चीनियों से पाया। कुछेक विद्वान बेबीलोन या अरबों को इस ज्ञान का श्रेय देते हैं। चीनी सिध्दांत में कुल 24 नक्षत्र ही थे। बहुत बाद में 28 कहे गये। बेबीलोन या चीन में राशि, नक्षत्र से सम्बन्धित उत्सव-पर्व नहीं थे। भारतीय नक्षत्रों के वैदिक देवता भी हैं। इसी तरह ग्रह भी राशियों के स्वामी हैं। हिन्दू नक्षत्रों के नाम ध्यान देने योग्य है। एक नक्षत्र है – आद्रा। इस नक्षत्र में वर्षा होती रही है। आद्रा का अर्थ है – नम या भीगा हुआ। पुष्य नक्षत्र फसल का नवांकुर काल है। लोकमान्य तिलक ने मृगशिरा या मृगशीर्ष को संभवत: गहरी प्रीति के साथ देखा था। 'ओरायन' (मृगशीर्ष) उनका विश्वविख्यात ग्रन्थ है। तिलक ने 'ओरायन' में ह्विटनी आदि अनेक विद्वानों के मत का खण्डन किया है।

काल का महत्व

भारतीय कालबोध ऋग्वेद के समय से है। ऋग्वेद (10.42.9) में काल का उल्लेख है। अथर्ववेद के दोनों कालसूक्त (19.53 व 19.54) विश्वविख्यात हैं। यहां काल ही नियन्ता है। शतपथ ब्राह्मण में भी काल का वर्णन है। सब कुछ काल के अधीन है लेकिन मांडूक्य उपनिषद् ने 'ओ3म्' को काल से परे- अर्थात ऊपर बताया है। महाभारत में काल ही सृष्टा व विनाशकर्ता है। महाभारत के गीता अंश में श्रीकृष्ण स्वयं काल (समय) हैं – कालो अस्मि लोकोक्षय प्रवृत्ते। पाणिनि के भाष्य में पतंजलि ने बताया है 'काल वह है जिससे वस्तुओं की वृद्धि व क्षय दिखाई पडता है।' कालबोध ही अतिप्राचीन ज्योतिर्विज्ञान है। मुण्डकोपनिषद् की 'अपराविद्या' सूची में ज्योतिष भी है। भारतीय भी 28 नक्षत्र मानते-जानते थे। सम्प्रति 27 नक्षत्रों की अनुकम्पा है। महाभारत में उल्लेख है कि अभिजित नामक एक नक्षत्र किसी समय नष्ट हो गया। संक्रान्ति जैसी अल्पकालिक मुहूर्त की जानकारी विश्व खगोल विज्ञान को भारत की ही देन है। लेकिन यूरोपीय ज्ञान से आतंकित लोग 'मकर संक्रान्ति' को भी प्राचीन नहीं मानते। वे 'वेलेन्टाइन' जैसे अश्लील आयोजनों को भारत पर थोप रहे हैं।

उत्सव का आनंद

ऋग्वेद में भारतीय ज्ञान-विज्ञान और दिक्‌-काल बोध के बीज हैं। उत्तर वैदिक काल भारत के राष्ट्रजीवन का ज्ञानोत्कर्ष समय है। भारत की प्रज्ञा, परम्परा और संस्कृति का आनंदमगन विकास इसी के प्रभाव में बढ़ा। 'शुभ और अशुभ' पर यूनान और जर्मनी जैसे अनेक देशों में विचार हुआ लेकिन भारत में सत्य को ही शिव और सुन्दरतम् देखा गया। यहां ग्रह-नक्षत्र आदि खगोलीय शक्तिपीठों के भी प्रभाव को जांचा गया। ज्ञान विज्ञान और दर्शन व तत्वबोध के आनंद में लोक को भी भागीदार बनाने के लिए पर्व, व्रत और उत्सव आये। संक्रान्ति का अध्ययन सबके वश की बात नहीं थी। हम सब 26 जनवरी को 'गणतंत्र दिवस' मनाते हैं। गणतंत्र दिवस, संविधान निर्माण और संविधान प्रवर्तन की तिथि है लेकिन संविधान के दर्शन, विकास और निर्माण को आमजन नहीं समझते तो भी गणतंत्र दिवस मनाकर राष्ट्रभाव से आपूरित होते हैं। मकर संक्रान्ति के खगोलीय रहस्य भी समूचा भारत नहीं जानता था लेकिन पूर्वजों ने मकर संक्रान्ति सहित हरेक संक्रान्ति को पर्व और उत्सव बनाया। ज्ञान लोक से मिला। लोक ज्ञान आलोक से जुड़ा और उत्सवधर्मा हो गया। मकर संक्रान्ति हम सबको आपूरित करती है।

मकर संक्रान्ति की अंग्रेजी तारीख व माह बदला करते हैं। इतिहास के मध्यकाल में यहां प्राय: इस्लामी दबदबा था लेकिन मकर संक्रान्ति के उत्सव तब भी थे। लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिर्विज्ञान के प्रवक्ता डॉ0 विपिन पाण्डेय बाते हैं कि 'सन् 1013 में 26 दिसम्बर को मकर संक्रान्ति पड़ी थी। सन् 1513 में 29 दिसम्बर, सन् 1613 में 9 जनवरी, सन् 1713 में 10 जनवरी, 1813 में 12 जनवरी, 1913 में 13 जनवरी व 1947 में 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति हुई।' संक्रान्ति प्रत्येक राशि की होती है लेकिन मकर संक्रान्ति भारत के गांव-गली तक खूबसूरत उत्सव बनती है। मत्स्य पुराण में संक्रान्ति के अवसर पर गाया जाने वाला श्लोक ध्यान देने योग्य है – 'यथा भेदं न पश्यामि शिवविष्ण्वर्क पदम्जान् तथा ममास्तु विश्वात्मा शंकर: शंकर: अर्थात हम शिव, विष्णु या ब्रह्मा में भेद नहीं करते। कल्याणकारी विश्वचेतना हमारा कल्याण करे।'

भेद में अभेद

हिन्दू बहुदेववादी हैं, लेकिन सभी देव एक ही परमसत्ता के रूप प्रतिरूप हैं। ऋग्वेद का प्रसिध्द मन्त्र है एकं सद् विप्रा: बहुधा वदन्ति। अर्थात् इन्द्र, अग्नि अनेक देव हैं लेकिन वह सत्य एक है, विद्वान उसे अनेक नामों से पुकारते हैं- मकर संक्रान्ति की आराधना का श्लोक भेद नहीं देखता। यहां समूचे लोक के भीतर एक ही विश्वात्मा देखी गयी है।

मकर संक्रान्ति का मुख्य संदेश है – भेद में अभेद। अनेकता में एकता, रूप प्रतिरूप में एक ही स्वरूप की सत्ता। इस दिन भारत का लोक अपनी निकटवर्ती नदी-माताओं में स्नान करता है। सूर्य को अर्घ्य देता है। उत्सव धर्मा होता है। सत्कर्म करने की शपथ लेता है। राष्ट्र और विश्व के लोकमंगल का पुण्याहवाचन करता है। तपकर्म के लिए गतिशील होता है। मकर संक्रान्ति का यह मुहूर्त राष्ट्रीय आत्मचिंतन के लिए भी उपयोगी हैं। सम्प्रति राष्ट्रभाव पर अल्पसंख्यकवाद का दबदबा है। दिक्‌ काल के विज्ञान आधारित हमारे उत्सवों पर भी विदेशी सभ्यता का हमला है। भारतीय सभ्यता उद्यम और राष्ट्रनिर्माण के स्वदेशी प्रयासों के विरुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सुस्वागतम है। सांस्कृतिक राष्ट्रभाव के आराधक फासिस्ट और साम्प्रदायिक कहे जा रहे हैं। घोर अल्पसंख्यकवादी कट्टरपंथी मजहबी ताकतों को 'पाक-सेकुलर' कहा जा रहा है। विदेशी सभ्यता के प्रगतिशील शब्दकोष में बेटी, बहन और माताएं उपभोक्ता वस्तु बनाई जा रही हैं। राष्ट्रवाद और घोर अल्पसंख्यकवादी सत्तावाद के बीच महाभारत है। मकर संक्रान्ति का यह मुहूर्त इस महाभारत में सही पक्ष चुनने का अवसर है। सूर्य मकर पर आ गये हैं। हम समय संक्रान्ति का आह्वान सुनें। राष्ट्रविरोधी शक्तियों को ललकारें और चुनौती दें।

मकर संक्रान्ति का संदेश

संक्रान्ति का सीधा अर्थ है सु-परिवर्तन। उत्तरायण काल शिव संकल्पों का मंगल मुहूर्त है। राष्ट्र का परमवैभव साधने का अनुकूल काल। ऐसे सारे शिव संकल्पों को पूरा करने का तन्मय अवसर। मकर संक्रान्ति का यह मुहूर्त इस महाभारत में सही पक्ष चुनने का अवसर है। सूर्य मकर पर आ गये हैं। हम समय संक्रान्ति का आह्वान सुनें। राष्ट्रविरोधी शक्तियों को ललकारें और चुनौती दें।

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