दुर्घटना एवं विषाक्तता से बच्चों का बचाव
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डा. हर्ष वर्धन
एक वर्ष से लेकर चार वर्ष तक की आयु के शिशु चलना-फिरना शुरू कर देते हैं। इस अवस्था में शिशु हर वस्तु को मुंह में ही डालने का प्रयास करता है। खाने व न खाने लायक वस्तुओं में अंतर न समझ पाने के कारण अक्सर उनके कुछ न कुछ खा लेने की घटनाएं देखने को मिलती हैं। वस्तुओं से छेड़छाड़ करने की शिशुओं की आदत होती है, जिसके कारण कई बार दुर्घटना भी हो जाती है। अत: ऐसे शिशुओं के प्रति सावधानी बहुत जरूरी होती है। कई बार खतरनाक चीजों को खा लेते हैं, जिसके कारण स्वास्थ्य संबंधी खतरा पैदा हो जाता है तथा कई बार ऐसी स्थिति में प्राण जाने का भी खतरा उत्पन्न हो सकता है।
माता-पिता यह ध्यान रखें कि बच्चे के द्वारा मोमबत्ती, मिट्टी, खड़िया, रंगीन खड़िया (क्रेयन्स), अखबार, लिपस्टिक, हाथ पर लगाने वाला 'लोशन' और क्रीम, 'डिटरजेन्ट्स', स्याही, 'बॉल प्वाइंट पेन' की स्याही, 'थर्मामीटर', 'शैम्पू', पेंसिल्स 'सोप्स', 'शेविंग क्रीम' एवं 'लोशन', जूता पॉलिश, 'सैक्रीन' इत्यादि के खाने पर इलाज की जरूरत नहीं होती है, लेकिन यदि शिशु बॉडी कंडीशनर, 'हेयर टॉनिक', इत्र/खुशबू, 'ऑफ्टर शेव लोशन', 'हेयर स्प्रे', न मिटने वाला 'मार्कर', 'डियोडोरेन्ट्स', 'हेयर डाई', गर्भ निरोधक गोलियां, दंत मंजन अधिक मात्रा में खा ले तो तुरन्त शरीर से निकालना अत्यंत जरूरी हो जाता है। उपरोक्त दोनों परिस्थितियों में लापरवाही शिशु के लिए खतरनाक हो सकती है। अत: ऐसी स्थिति में तुरन्त शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी वस्तुएं हैं जिन्हें शिशु द्वारा खाने के उपरांत उसके लिए मुश्किल उत्पन्न हो सकती है जैसे केरोसीन तेल, डीजल, 'नेप्थालीन बॉल्स', 'मर्करी टैबलेट', कॉस्टिक सोडा, 'सल्फ्यूरिक एसिड', दवाओं में-एस्पिरिन, फीनोबारबिटोन, ब्रौंकोडाइलेटर्स, अफीम, शामक, आयरन, 'एन्टी-हाइपरटेन्सिव', 'एन्टीबायोटिक्स' आदि, कीटनाशक जैसे डी.डी.टी., ऑर्गनोफास्फोरस (टिक-20) तथा अन्य वस्तुओं में धतूरा एवं 'एल्कोहल' आदि। इन वस्तुओं में कोई न कोई वस्तु किसान के घर से लेकर शहर के समृद्ध परिवारों तक में उपलब्ध रहती है। इन वस्तुओं को शिशुओं से माता-पिता दूर रखें।
माता-पिता को निम्नलिखित जानकारियां दी जा रही हैं, जिससे यह काफी हद तक पता लगाया जा सकता है कि शिशु ने कौन सी संभावित वस्तु को खाया है, जिसके कारण उसके शरीर में संबंधित लक्षण परिलक्षित हो रहे हैं। सामान्य लक्षणों का आकलन माता-पिता कर सकते हैं लेकिन कुछ लक्षण ऐसे होते हैं जिसे चिकित्सक ही देख और समझ पाता है। अत: ऐसी स्थिति में लक्षणों के दिखाई देने पर स्व-चिकित्सा न करें तथा तुरन्त शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।
'नेप्थालीन बाल्स' : अचानक शरीर में पीलापन, सांस का अवरूद्ध होना, 'जॉन्डिस' (पीलिया), 'हीमोग्लोबिनूरिया', गुर्दे के फेल होने संबंधित लक्षण परिलक्षित होते हैं।
अफीम : शिशु द्वारा अफीम खाने पर सी.एन.एस. (दिमाग संबंधित) डिप्रेशन, पिन के साइज की सिकुड़ी हुई आंख की पुतली उदर में फैलाव, श्वास में बाधा होने के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
केरोसीन तेल : शिशु द्वारा इसके पी लेने से तेजी से सांस चलने लगती है, बुखार हो जाता है, सांस तथा कपड़ों से केरोसिन तेल की गंध आने लगती है।
'सैलीसीलेट्स' : इसके खा लेने से शिशु की सांस तेजी से चलने लगती है, प्यास लगती है, उल्टी होने लगती है, अधिक पसीना आने लगता है। सुस्ती और बुखार भी देखने को मिलता है।
'एसिड्स/अल्कलिस' : इसे खा लेने पर शिशु के मुंह के चारों ओर और जीभ में सतही घाव, फोड़े/फफोले निकल आते हैं तथा निगलने में परेशानी होने लगती है।
पैरासिटॉमॉल : इस दवा को शिशु के खा लेने पर उल्टी, पसीना, सुस्ती तथा लीवर के कार्य में बाधा उत्पन्न होने का लक्षण परिलक्षित होने लगता है।
धतूरा : फ्लशिंग, दिल की धड़कन तेज हो जाना उच्च ज्वर, फैली हुई आंख की पुतली (डायलेटेड प्यूपिल्स) के लक्षण दिखाई देते हैं।
टिक-20 (आर्गैनोफॉस्फोरस): इसे खा लेने से शरीर में झटके, सांस में बाधा, पिन के साइज की सिकुड़ी हुई आंख की पुतली (पिनप्वाइंट प्यूपिल्स), लार का निकलना, सांस के रास्ते की सिकुड़न जैसी परेशानी देखने को मिलती है।
'ऑयरन' : इसके खाने के कारण उल्टी, रक्तयुक्त दस्त, पेट में मरोड़, शॉक के लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
'डाइनाइट्रो कंपाउन्ड्स' : यह हर्बीसाइड्स में पाया जाता है। इसके कारण त्वचा तथा श्लेश्मिक झिल्ली पर धब्बे, बहुत अधिक थकान, पसीना, प्यास, बेचैनी, दिल की धड़कन तेज हो जाने, बुखार (पाइरेक्सिया), रक्त में कार्बन डाईआक्साइड के बढ़ जाने (हाइपरकैपनिया) की परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं।
शिशुओं को दुर्घटना एवं विषाक्तता से बचाने के लिए माता–पिता को निम्नलिखित सावधानियां रखनी चाहिए:
दवाइयों तथा जहरीली वस्तुओं को बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
ाुरानी दवाइयों तथा जहरीले घातक पदार्थों को नष्ट कर दें। इन्हें कूड़ेदान में न डालें।
जहरीली वस्तुओं को 'स्टोर्स' में रखकर ताला लगा दें।
खाद्य पदार्थों के मध्य जहरीले पदार्थों को न रखें। गलती से खाने में जहरीली वस्तुओं के प्रयोग होने की संभावना बनी रहती है।
डिब्बे पर लेबल लगाकर रखें।
जिन बच्चों की उम्र 1 से 4 वर्ष के बीच है, उन बच्चों के लिए यह सावधानी अत्यंत आवश्यक है।
बच्चों को शिक्षित करें कि कभी वह उन वस्तुओं को न खायें अथवा चखें जिससे वह परिचित नहीं हैं।
इसके अतिरिक्त भी कुछ बातों पर अमल कर बच्चों को संभावित दुर्घटनाओं से बचाया जा सकता है-
छोटे बच्चे यदि आसपास हों तो चाय, कॉफी अथवा गर्म चीजें परोसते समय सावधान रहें। बच्चे अचानक इस पर हाथ मार सकते हैं अथवा गिर सकते हैं तथा जलने की संभावना हो सकती है।
मेज को चादर से इस प्रकार न ढकें कि वह नीचे की तरफ लटकी रहे। अक्सर बच्चे ऐसी लटकती चादरों को पकड़कर खींचते हैं तथा इस पर रखी वस्तुएं नीचे गिर जाती हैं। कई बार गर्म चीजें भी रखी रहती हैं। अत: इनके गिरने से बच्चा दुर्घटना का शिकार हो सकता है।
बच्चों को रसोईघर अथवा 'बॉथरूम' में न खेलने दें।
बिजली की 'वायरिंग' और 'फिटिंग' दुरुस्त रखें। बिजली के 'सॉकेट्स' को ढंक कर रखें।
जब भी सड़क के आसपास हों तो बच्चे को अकेला न छोड़ें तथा घर में रहने पर दरवाजा खोलकर न छोड़ें अन्यथा बच्चा दरवाजे से बाहर निकलकर सड़क पर आ सकता है और दुर्घटना हो सकती है।
खिड़की की चौखट, मुंडेर, बालकोनी आदि पर बच्चे को झुककर देखने, छत पर खेलते समय गेंद को पकड़ने, पतंग उड़ाने अथवा कटी पतंग को पकड़ने के लिए मना करें।
बच्चे अक्सर बड़ों की नकल करते हैं। कैंची, 'रेजर', चाकू, पेंचकस, सिलाई की मशीन, अन्य मशीनों से बच्चों को दूर रखना चाहिए।
नुकीली वस्तुओं पेन्सिल, पेन को मुंह में डालने से बच्चों को मना करना चाहिए। कई बार इनके कारण तालू में बहुत अधिक घाव हो जाता है तथा गंभीर परेशानी उत्पन्न हो जाती है।
बच्चे अक्सर नाक, कान अथवा मुंह में बाहरी वस्तुओं को डाल लेते हैं। ऐसे में माता–पिता सावधानी रखें:
बच्चों में यह आम परेशानी है। साधारणत: नाक व कान में पड़ी वस्तु आसानी से निकल जाती है यदि फौरन विशेषज्ञ डॉक्टर से सम्पर्क हो और उसमें छेड़छाड़ न हो। छेड़छाड़ करने पर इसमें परेशानी उत्पन्न हो सकती है। अत: इसमें समय बर्बाद करने की अपेक्षा बेहतर यह है कि तुरन्त बच्चे को किसी कान, नाक व गला रोग विशेषज्ञ के पास ले जायें। वहां आसानी से इन वस्तुओं को निकाल दिया जाता है। कभी-कभी बच्चे सिक्के निगल लेते हैं जो साधारणत: पेट में जाकर फिर शौच के माध्यम से बाहर निकल जाता है लेकिन कभी-कभी खाने की नली की शुरुआत में ही सिक्का अटक जाता है, जिसे निकालने के लिए चिकित्सकीय सहायता की जरूरत होती है। अत: ऐसी स्थिति में लापरवाही नहीं करनी चाहिए तुरन्त संबंधित चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
एक बच्चा अचानक सांस लेना बंद कर देता है तथा नीला पड़ जाता है। यह होने से पूर्व वह बच्चा कंचा खेल रहा था। ऐसे में माता–पिता क्या करें–
यह एक गंभीर समस्या है। बच्चे ने कंचे की गोली को मुंह में डाल लिया है तथा वह गोली फिसल कर सांस के रास्ते में चली गयी है। ऐसी ही परेशानी दूसरी वस्तुओं जैसे मूंगफली, सुपारी आदि के साथ भी उत्पन्न हो सकती है। एक चिल्लाते हुए बच्चे को दूध पिलाते समय दूध के सांस के रास्ते में जाने पर भी यह परेशानी उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में अविलंब शिशु रोग विशेषज्ञ एवं नाक, कान व गला विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए अन्यथा बच्चे के लिए गंभीर खतरा भी उत्पन्न हो सकता है।
(लेखक से उनकी वेबसाइट www. drharshvardhan.com तथा ईमेल drhrshvardhan@ gmail.com के माध्यम से भी सम्पर्क किया जा सकता है।)
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