रंज 'लीडर' को बहुत है, …
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समदर्शी
खबर है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चिंतित भी हैं और नाराज भी। वजह देश, खासकर देश की राजधानी दिल्ली में महिलाओं की असुरक्षा बतायी जा रही है। बेशक महिलाएं सुरक्षित तो कही भी नहीं हैं, पर देश का दिल कही जाने वाली दिल्ली में तो हालात सबसे बदतर हैं। घर से ले कर सड़क तक, कहीं भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। चलती कार में बलात्कार की अनगिनत घटनाओं के बाद चलती बस में एक छात्रा से सामूहिक बलात्कार और उसकी मरणासन्न अवस्था से दिल्ली दहली। दिल्ली पुलिस का दावा है कि उसकी गश्त की व्यवस्था बहुत चुस्त-दुरुस्त है, पर उसकी कलई इस घटना ने खोल दी। कई किलोमीटर तक चलती बस में लड़की से दरिंदगी होती रही, पर पुलिस कहीं नहीं थी, कम से कम अपराध रोकने के लिए तो हरगिज नहीं थी। इसके बावजूद केंद्रीय गृह सचिव आर. के. सिंह ने दिल्ली पुलिस की पीठ थपथपायी कि उसने बहुत कम सुरागों के जरिये सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया, पर उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन कर काले शीशों और पर्दों वाली यह बस बिना रोकटोक दिल्ली में कैसे दौड़ रही थी? इस स्थिति पर कोई भी संवेदनशील व्यवस्था शर्मिंदा होनी चाहिए, लेकिन दिल्ली पुलिस की दबंगई देखिए कि विरोध प्रदर्शन के लिए जुटे लोगों पर उसने पानी की तेज बौछारें और आंसू गैस के गोले ही नहीं, लाठियां भी बरसायीं। नौ मेट्रो रेल स्टेशन बंद कर पूरी मध्य दिल्ली 'सील' कर दी गयी। दिल्ली पुलिस की दबंगई यहीं नहीं रुकी, उसने पीड़िता का बयान लेने गयी एसडीएम पर भी मनमाफिक बयान के लिए दबाव डाला। इस शर्मनाक घटना पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक सप्ताह बाद चुप्पी तो तोड़ी, पर देश के नाम संबोधन के अंत में 'ठीक है', बोल कर सरकार की सोच भी बता दी। दिल्ली से लेकर केंद्र तक कांग्रेस की ही सरकार है, पर उसकी सर्वशक्तिमान नेता हैं कि चिंतित भी हैं और नाराज भी, पर कर कुछ नहीं रहीं। इसीलिए तो किसी से लिखा था: रंज लीडर को बहुत है, मगर आराम के साथ।
'तू तू-मैं-मैं' की सरकार
इस सामूहिक बलात्कार कांड से स्तब्ध दिल्ली सड़कों पर थी, खासकर युवा, लेकिन इस बदहाल व्यवस्था के लिए जिम्मेदार दिल्ली सरकार और पुलिस 'तू तू- मैं मैं' में उलझ गयीं। मुख्यमंत्री अपना यह गिला तो पहले भी कई बार जता चुकी हैं कि पुलिस उनके नियंत्रण में नहीं है। ध्यान रहे कि दिल्ली को अभी तक पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला है और दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है। जाहिर है, यह अपने आपमें गंभीर मुद्दा है, पर इसे सुलझाने की जिम्मेदारी तो सरकार की ही है। ऐसे वक्त जबकि केंद्र और दिल्ली, दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकारें हैं, यह मामला पिछले आठ साल में सुलझा लिया जाना चाहिए था, लेकिन सवाल तो प्राथमिकताओं का है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी यह मुद्दा बदहाल कानून-व्यवस्था से मुंह चुराने के लिए ही याद आता है। एसडीएम पर दिल्ली पुलिस की दबंगई ने तो जैसे उन्हें मनमाफिक मुद्दा ही थमा दिया। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखा तो फिर पुलिस आयुक्त कैसे पीछे रह जाते? सो, दिल्ली सरकार और पुलिस के बीच 'तू तू-मैं मैं' जारी है। ऐसे में दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था तो भगवान भरोसे ही रहनी है।
समाजवादी गुटबाजी
वैसे तो समाजवाद और गुटबाजी एक-दूसरे के पर्याय ही रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में जिस समाजवादी पार्टी की सरकार है, वह तो नाम की ही समाजवादी है, वरना तो वह मुलायम सिंह यादव परिवार की ही जागीर है। इसलिए वहां समाजवादी गुटबाजी की सुगबुगाहट वाकई चौंकाने वाली है। जाहिर है, मायावती के जंगलराज से आजिज उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने मुलायम सिंह यादव के ही पक्ष में जनादेश दिया था, लेकिन पुत्रमोह में उन्होंने अखिलेश को मुख्यमंत्री बनवा दिया। इस बात को न तो उनके भाई शिवपाल पचा पा रहे हैं, जो नेताजी के राष्ट्रीय राजनीति में जाने की स्थिति में खुद प्रदेश संभालने का सपना देख रहे थे, न ही मोहम्मद आजम खां, जो मुलायम की अल्पसंख्यक राजनीति के चलते अपना दांव लगने की उम्मीद पाले थे। ये दो तो उदाहरण मात्र हैं, वरना सपना देखने वालों की संख्या तो ज्यादा है। ऐसे में अगर उत्तर प्रदेश के हालात इसी तरह अखिलेश के लिए बेकाबू बने रहे तो इस समाजवादी गुटबाजी को मुखर होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।
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