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फेसबुक प्रकरण-मुम्बई की चर्चा, कश्मीर की नहींक्योंकि वे हिन्दू थे!!-वीरेन्द्र चौहान

by
Dec 29, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 29 Dec 2012 15:20:49

शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे के निधन के बाद 'मुंबई बंद' को लेकर 'फेसबुक' पर टिप्पणी करने वाली मुंबई की दो युवतियों को एक हद तक न्याय मिल गया है। मुंबई की उस घटना के बाद मुम्बई उच्च न्यायालय तक ने पुलिस और सरकार के बर्ताव पर उनकी फटकार लगाई। नतीजा यह हुआ कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए बने नियमों में तुरत-फुरत सुधार और संशोधन कर दिया गया। मगर जम्मू-कश्मीर में 'फेसबुक' पर इसी प्रकार की एक घटना पर राष्ट्रीय मीडिया पूरी तरह मौन है।

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के तीन नौजवान, जिनमें से दो सरकारी स्कूल में शिक्षक भी हैं, 48 दिनों तक इस कानून के अंतर्गत कारागार में बंद रहे । उनको जमानत मिलना तो दूर, जांच किए बिना ही सम्बंधित जिलाधिकारी ने उन्हें नौकरी से बर्खास्त करने के आदेश भी जारी कर दिये। इनमें से एक युवक का दोष यह बताया जाता है कि उसने मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को आहत  करने वाले  एक फोटो से खुद को 'टैग' (जोड़) कर लिया अथवा किसी और ने उसे 'टैग' कर दिया। फोटो किसी अज्ञात शख्स ने 'अपलोड' किया था। प्रथम दृष्ट्या उसका कुछ दोष समझ में आ सकता है, मगर उसके साथ कट्टरवादियों के दबाव में दो अन्य लोग भी सलाखों में ठूंस दिए गए। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमे से एक ने इस फोटो पर यह टिप्पणी की थी कि इस प्रकार की तस्वीरें 'पोस्ट' नहीं की जानी चाहिए। यानी यह  'गलत को गलत' कहने के बावजूद पुलिसिया कार्रवाई का शिकार बन गया। तीसरे युवक ने दूसरे युवक के 'समझदारीपूर्ण कमेन्ट को लाइक' करने की गुस्ताखी की थी।

इस मामले के जानकार लोग का कहना है कि जिस प्रकार मुंबई पुलिस शिव सैनिकों  के कथित दबाव में दो युवतियों के खिलाफ आवश्यकता से अधिक क्रूर हो गयी, उसी प्रकार किश्तवाड़ के पुलिस व प्रशासन ने भी कट्टरवादियों के सामने घुटने टेकते हुए इस बात का विचार तक नहीं किया कि इन युवकों का अपराध क्या और कितना संगीन है? सम्बंधित जिलाधिकारी ने तो बिना जांच किए तीनों पर 'पब्लिक सेफ्टी एक्ट' लगाने की सिफारिश तक कर डाली। जो लोग नियमित 'फेसबुक' का इस्तेमाल करते हैं, वे इस बात से सहमत होंगे कि पुलिस-प्रशासन इस तरह काम करने लगेगा तो भारत में हर रोज कई लाख लोगों को जेल जाना पड़ेगा। मगर पीड़ादायक बात यह है कि इस संवेदनशीलता और समझ का विस्तार जम्मू- कश्मीर तक होता नजर नहीं आ रहा। जिस कानून का मुंबई में दुरुपयोग दिल्ली में सत्ता और न्यायपालिका के गलियारों को गुंजा देता हो, उसका जम्मू-कश्मीर में दुरुपयोग देश के कर्णधारों को क्यों नजर नहीं आता?

एक देश में एक ही प्रकार की घटनाओं पर प्रबुद्ध वर्ग की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आना कई प्रकार के सवाल खड़े करता है। चूंकि तीनों युवक राज्य के अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय से संबंध रखते हैं, इसलिए जम्मू-कश्मीर में दिन-रात मुस्लिमों (आतंकवादियों) के मानवाधिकार का हनन का रोना रोने वाले मानवाधिकार के कथित ठेकेदारों ने भी इस मामले में कोई रुचि नहीं ली है।

प्रशासन की एकतरफा और साम्प्रदायिक सोच का प्रमाण यह भी है कि जहां एक तस्वीर में 'टैग' हुए या किये गए, और उस पर सकारात्मक 'कमेंट' करने वाले और उस 'कमेन्ट' को 'लाइक' करने वाले तीन नागरिक तो कारागार में बंद कर दिए गए, वहीं इसकी प्रतिक्रिया में भारत विरोधी और कश्मीर की आजादी के नारे लगाने वाले कट्टरवादियों में से किसी के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है। प्रशासन की हिन्दू विरोधी मानसिकता का इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि इन तीनों लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र भी दाखिल नहीं किया जा सका क्योंकि पुलिस इनके विरुद्ध कोई तथ्य प्रस्तुत करने में नाकाम रही। अंतत: इन्हें 48 दिनों बाद जमानत दे दी गयी।

जेल की चक्की में पिसते रहे तीन निर्दोष कश्मीरी नौजवान

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