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पाठकीय:अंक-सन्दर्भ 2 दिसम्बर,2012

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Dec 22, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Dec 2012 15:40:59

कांग्रेस की नींव हिली

श्री हृदयनारायण दीक्षित ने अपने आलेख 'कौन बनेगा कांग्रेस का तारनहार?' में कांग्रेस की स्थिति का बहुत ही सुन्दर विश्लेषण किया है। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का हाल यह है कि वह एक वंश की छाया से बाहर निकलने का साहस तक नहीं जुटा पा रही है। ऐसा इसलिए है कि कांग्रेस में आन्तरिक लोकतंत्र है ही नहीं। फिर यह पार्टी आम आदमी के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा कैसे कर सकती है? 'मैडम' के बोल ही कांग्रेसियों के लिए आदेश होते हैं।

–गणेश कुमार

पाटलिपुत्र कालोनी, पटना (बिहार)

द नेतृत्व का संकट कांग्रेस की स्थाई और बड़ी समस्या है। यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेसियों को हमेशा नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्य की जरूरत रहती है। क्या इस परिवार से बाहर के लोग कांग्रेस का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं हैं? राहुल गांधी को आगे बढ़ाने की कोशिश क्यों हो रही है? जबकि राहुल गांधी हर मोर्चे पर विफल हो रहे हैं। कांग्रेस में और भी युवा हैं उन्हें क्यों नहीं आगे बढ़ाया जाता है?

–मनोहर 'मंजुल'

पिपल्या–बुजुर्ग, प. निमाड़-451225 (म.प्र.)

द इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस की नींव हिल चुकी है। वक्त है कांग्रेस को उखाड़ फेंकने का। इसने आम आदमी को हिला कर रख दिया है। राशन महंगा, गैस महंगी, तेल महंगा, पढ़ाई महंगी, ऊपर से बेरोजगारी और भ्रष्टाचार। ऐसे में लोग कांग्रेस को बर्दाश्त क्यों करें? कांग्रेस को अच्छी तरह सबक सिखाया जाए।

–दिनेश गुप्त

कृष्णगंज, पिलखुवा, हापुड़ (उ.प्र.)

द कांग्रेस खुद अपनी कब्र खोद रही है। लोग वर्षों से उसकी झूठी बातों पर विश्वास करते रहे। पर अब लोग महसूस करने लगे हैं कि कांग्रेस वास्तव में आम आदमी की विरोधी है। वोट बैंक की राजनीति के कारण आम आदमी कांग्रेस से दूर हो रहा है। कांग्रेस को केवल अपने वोट बैंक की चिन्ता रहती है। वोट बैंक के लिए ही वह सब कुछ सोचती है और करती है।

–रामामेहन चंद्रवंशी

विट्ठल नगर, स्टेशन रोड, टिमरनी,जिला–हरदा(म.प्र)

सबसे बड़ा गुनाह

सम्पादकीय 'कसाब के बाद अफजल को फांसी कब?' में उठाए गए प्रश्न से हर वह आदमी सहमत होगा, जो इस देश को अपनी मां मानता है। अफजल की फांसी में देरी सत्तालोलुपों की मानसिकता उजागर कर रही है। वर्तमान केन्द्र सरकार महंगाई, भ्रष्टाचार, परिवारवाद आदि की तो अपराधी है ही। इसका सबसे बड़ा गुनाह यह है कि वह पाकिस्तान की जिहादी मानसिकता से जानबूझकर अनजान बनी हुई है। पाकिस्तान में तैयार हजारों कसाब और अफजल भारत का इस्लामीकरण करना चाहते हैं। इस हालत में पाकिस्तान से नरमी बरतना विनाशकारी है।

–क्षत्रिय देवलाल

उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया कोडरमा-825409 (झारखण्ड)

लकीर के फकीर मत बनो

श्री नरेन्द्र सहगल ने अपने लेख 'पाकिस्तान की जिहादी मानसिकता' में प्रधानमंत्री को पाकिस्तान की हरकतों से अवगत कराया है। प्रधानमंत्री अपने उस वचन का पालन करें जिसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान से तब तक बात नहीं की जाएगी जब तक कि मुम्बई हमलों के अपराधियों को पकड़ा नहीं जाएगा। पाकिस्तान भारत को लगातार धोखा दे रहा है और भारत लकीर का फकीर बना बैठा है।

–लक्ष्मी चन्द

गांव–बांध, डाक–भावगड़ी, जिला–सोलन (हि.प्र.)

आम आदमी की पीड़ा

श्री अरुण कुमार सिंह की रपट 'कांग्रेस देश को दिवालिया बनाने पर आमादा' में आम आदमी की पीड़ा उभरी है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने सही कहा है कि कांग्रेस देश को लूट रही है। जो उसकी लूट की बात करता है उसे बदनाम करने की पुरजोर कोशिश की जाती है। कांग्रेस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए इतनी उतावली क्यों है, यह समझ नहीं आती? एफडीआई करोड़ों भारतीयों को बेरोजगार कर देगा।

–सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर

द्वारकापुरम, दिलसुखनगर, हैदराबाद-60 (आं.प्र.)

यह कैसा कानून?

चर्चा सत्र में डा. विशेष गुप्ता का आलेख 'कानून के घेरे में चर्च' एक गंभीर समस्या पर प्रकाश डालता है। आयरलैण्ड में भारतीय मूल की चिकित्सक सविता की मृत्यु गर्भ बिगड़ने से हो गई। यदि उनका गर्भपात हो जाता तो उनकी जान बच जाती। किन्तु कैथोलिक देश होने के कारण आयरलैण्ड में गर्भपात पर प्रतिबंध है। यह कैसा कानून है, जो एक इनसान की जान पर भारी पड़ता है? कोई भी कानून इनसानी मूल्यों के आधार पर बनना चाहिए।

–बी.एल सचदेवा

263, आई.एन.ए. मार्केट, नई दिल्ली-23

'आपा' की घटती साख

आम आदमी पार्टी (आपा) के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये। इससे पहले वे राबर्ट वाड्रा तथा नितिन गडकरी पर भी ऐसे आरोप लगा चुके हैं। हर बार अखबार केजरीवाल को पहले पृष्ठ पर मुख्य समाचार के रूप में छापते थे, पर इस बार वे अंदर के पृष्ठों पर पहुंच गये। इसके दो कारण समझ में आते हैं। पहला तो यह कि 'आपा' की अपनी साख गिर गयी है तथा दूसरा यह कि नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचार कर सकते हैं, इस पर किसी अखबार को विश्वास नहीं है।

–विजय कुमार

रामकृष्णपुरम/6, नई दिल्ली

सरकार की नीयत ठीक नहीं

पिछले दिनों 2जी की नीलामी की गई, पर वांछित राशि नहीं मिली। इसके बाद सरकार ने कैग पर निशाना साधते हुए कहा कि पूर्व में कैग ने 2 जी घोटाले का जो आकलन किया था वह हकीकत से परे था और बढ़ा-चढ़ाकर उसका आंकलन किया गया था। लगता है कि इस सरकार ने 2 जी आवंटन पर केवल खानापूर्ति की है। यदि यह सरकार इस मुद्दे पर गंभीर होती तो राशि अवश्य मिलती है। संभवत: कैग की रपट को झूठा दिखाने के लिए ऐसा किया गया। यह सरकार कैग पर शिकंजा कसना चाहती है। सरकार का रुख अपने विरुद्ध आवाज उठाने वालों पर इतना नकारात्मक व आक्रामक हो जाता है कि सच्चाई भी विवश व असहाय हो जाती है। आवश्यकता है एक अत्यंत सशक्त मंच की जो जनजागरण कर व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन ला सके।

–बी.एल. सिंगला

अजन्ता स्टूडियो, 719/6

रोशनपुरा, रामलीला ग्राउण्ड

गुड़गांव-122001 (हरियाणा)

राष्ट्रद्रोहियों पर रहम क्यों?

पिछले दिनों लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान और माकपा नेता सीताराम येचुरी एवं कुछ अन्य सेकुलर दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपकर मांग की कि देशभर की जेलों में बन्द अल्पसंख्यक युवाओं को छोड़ा जाए। इसके बाद इसी मुद्दे पर 4 दिसम्बर को राज्यसभा में समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसदों ने हंगामा किया। जो जेलों में बन्द हैं वे निर्दोष हैं या नहीं, यह निर्णय सपा, लोजपा या माकपा कैसे कर सकती है? ये लोग इस तरह की हरकत जानबूझकर कर रहे हैं। कुछ दिन पहले ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उ.प्र. की सपा सरकार की उस कवायद पर रोक लगाई थी जिसके अन्तर्गत आतंकवाद के आरोप में उ.प्र. की जेलों में बन्द मुस्लिम युवाओं को छोड़ने की बात की जा रही थी। उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि 'यह कौन तय करेगा कि आतंकी कौन है। जब मामला न्यायालय में है, तो उसे ही तय करने दीजिये। राज्य सरकार खुद कैसे तय कर सकती है कि कौन आतंकवादी है। आतंकियों पर से मुकदमा हटाने की पहल करके क्या सरकार आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है? आज आप आतंकवादियों को छोड़ देंगे, कल उन्हें पद्मभूषण देंगे।'

देश का इतिहास गवाह है कि भारत में सन् 712 में पहले मुसलमान विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम से लेकर आज के अफजल और अजमल कसाब तक सभी ने भारत को नष्ट करने की जिहादी विचारधारा को कभी छिपाया नहीं। इनकी विचारधारा का उद्देश्य–भारत को लूटना, मतान्तरित करके दारूल इस्लाम बनाना, भय फैलाना, हिन्दू संस्कृति को नष्ट करना रहा है।

इसके बावजूद भारतीय लोगों में से ही कुछ मुस्लिमपरस्त हिन्दू इनको आश्रय देते रहे। 23 दिसम्बर 1926 को स्वामी श्रद्धानन्द जैसे वरिष्ठ आर्य समाजी सन्त, समाज सुधारक को मारने वाले आतंकी अब्दुल रशीद को महात्मा गांधी ने अपना भाई कहकर उसके साथ अपनी संवेदना व्यक्त की थी। इस हत्या के लिए फांसी पर चढ़ाये जाने के बाद अब्दुल रशीद की शवयात्रा में करीब 50,000 मुसलमान शामिल हुये। मस्जिदों में तब उसके लिये विशेष नमाजें अदा की गयीं। उर्दू समाचार पत्रों ने उसे शहीद घोषित किया। 30 दिसम्बर 1926 को टाइम्स आफ इण्डिया का समाचार था कि 'समाचार है कि स्वामी श्रद्धानन्द के हत्यारे अब्दुल रशीद की आत्मा को जन्नत में स्थान दिलाने के लिए देवबन्द के प्रसिद्ध इस्लामी कालेज (दारुल उलूम) के छात्रों और आलिमों ने कुरान की आयतों का पांच बार पाठ किया। उन्होंने दुआ मांगी कि, अल्लाह मरहूम रशीद को अलापे–इल्ली–ईन (सातवें बहिश्त की चोटी) में स्थान दे।'

इसी प्रकार 16 अगस्त 1946 में जिन्ना के द्वारा सीधी कार्रवाई का आह्वान होने पर कलकता में हिन्दुओं का कत्लेआम करवाने वाले लीगी नेता सोहरावर्दी को भी महात्मा गांधी क्षमादान देकर अपने साथ रखे रहे। परन्तु उसकी जिहादी विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। और वह निरन्तर कोलकता सहित पूरे बंगाल को हिन्दू रहित बनाकर पूर्वी पाकिस्तान में मिलाने के प्रयास करता रहा।

खिलाफत आन्दोलन की असफलता से चिढ़कर भारतीय मुसलमानों ने केरल में मोपला दंगों को अंजाम दिया। जिसमें सुनियोजित हिंसा कर मोपला मुसलमानों ने 5000 से अधिक हिन्दुओं का कत्लेआम किया तथा 20,000 हिन्दुओं का मतान्तरण। हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। परन्तु उस समय के कांग्रेसी नेताओं व महात्मा गांधी ने मोपला नरसंहार को हिन्दुओं को भूल जाने की ही सलाह दी तथा इस नरसंहार के खिलाफ कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति में प्रस्ताव तक पारित कराने का विरोध किया।

इतिहास से सबक लेकर इसको समझने की आवश्यकता है, न कि आम माफियां देकर पुन: 1947 दोहराने की।

–सुशील कुमार गुप्ता

शालीमार गार्डन कालोनी, बेहट बस स्टैण्ड सहारनपुर (उ.प्र.)

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