गालापुर वटवासिनी महाकाली का पौराणिक स्थानआस्था और शक्ति का केन्द्र-अभिषेक कुमार मिश्र
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गालापुर वटवासिनी महाकाली का पौराणिक स्थानआस्था और शक्ति का केन्द्र-अभिषेक कुमार मिश्र

by
Dec 22, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Dec 2012 15:31:20

अनादिकाल से ही शक्ति साधना एवं उपासना सम्पूर्ण जगत में मानव कल्याण के लिए विख्यात है। इन्हीं विख्यात धार्मिक धरोहरों में एक धरोहर उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले की डुमरियागंज व इटवा तहसील के मध्य दक्षिण एवं पूरब दिशा में प्राकृतिक छटा से अलंकृत गालापुर की 'वटवासिनी महाकाली' के नाम से विख्यात है। यह पौराणिक स्थल हजारों वर्षों से शक्ति उपासकों की आस्था एवं विश्वास का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता आ रहा है।

ऐसी ममतामयी मां महाकाली के आलौकिक व पौराणिक मान्यताओं के आधार पर अधिकांश बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि लगभग 2000 वर्ष पूर्व यहां के शासक कलहंश क्षत्रिय वंश के राजा केसरी सिंह थे। एक दिन राजा केसरी सिंह ने राजदरबार में अपने पुरोहित शाक द्वितीय वंश(शाकद्वीप वंश) के ब्राह्मणों को बुलाकर कहा कि -'आप सब लोग खोरहस (तब एक जंगल) में जाकर वहां से हमारी आराध्य देवी मां काली को यहां लेकर आयें।' राजा केसरी सिंह का आदेश पाते ही सभी पुरोहित तैयार होकर खोरहस जंगल के लिए प्रस्थान कर दिए। खोरहस के विशालकाय जंगल में पहुंचकर पुरोहितों ने तपस्या प्रारम्भ कर दी। तपस्या करने के दौरान पुरोहितों के शरीर पर दीमकों ने अपना घर बना लिया। लगातार 6 वर्ष तक तपस्या करने के उपरान्त एक दिन आदिशक्ति महाकाली की आभा प्रकट होकर तपस्या कर रहे पुरोहितों से बोली -'ऐ ब्राह्मणो! तुम क्या चाहते हो? वरदान मांगो?'

तब पुरोहितों ने कहा कि हे मां भगवती शरणागतों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली आप तो सब कुछ जानती हैं। हम सब आपको यहां से गालापुर ले चलने के लिए आए हैं।

ब्राह्मणों के मुख से इन भावनायुक्त शब्दों को सुनकर जगत जननी कल्याणी मां ने प्रसन्न होकर कहा -'हे ब्राह्मणो! चलो मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं।' तब पुरोहितों ने क्षमा मांगते हुए कहा कि हे मां हम लोगों को यह विश्वास कैसे होगा कि आप मेरे साथ चल रही हैं। तब भगवती महाकाली ने पुरोहितों से कहा कि- 'हे पुरोहितो! अपने पास में उगे हुए इस मदार के वृक्ष को जड़ सहित उखाड़कर पास पड़े उस खप्पर में रखकर  अपने सिर पर रख लो। परन्तु मेरी एक शर्त है कि तुम लोग जहां कहीं भी पीछे मुड़कर देखोगे या जहां इसे रख दोगे मैं वहीं पर हमेशा-हमेशा के लिए विद्यमान हो जाऊंगी।'

देवीवाणी के पश्चात् मदार के उस लघुवृक्ष को उखाड़कर पुरोहितों का जत्था गालापुर के लिए रवाना हो गया। पुरोहित जब लटेरा के निकट पहुंचे तो उन्होंने राजा के संदेशवाहकों से राजा के पास संदेश भिजवाया कि हम लोग आदिशक्ति मां जगदम्बा महाकाली को लेकर आ गये हैं।

होनी को कौन टाल सकता है। हुआ यूं कि पुरोहितों द्वारा भिजवाए गये संदेशों को संदेशवाहकों ने राजा के सम्मुख कुछ इस प्रकार सुनाया-'महाराज आपके पुरोहितगण अपने सिर पर एक खप्पर में रखकर एक मदार के पेड़ को लाए हैं और कह रहे हैं कि जाकर राजा साहब से कह दो कि हम लोग महाकाली को लेकर आ गए हैं। महाराज पुरोहितों की बातों में कोई सच्चाई नहीं झलक रही है।'

संदेशवाहकों द्वारा दिए गए इस प्रकार के संदेश को सुनकर राजा आगबबूला हो गए और उन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे अपने संदेशवाहकों से कहा कि जाकर पुरोहितों से कह दो कि मदार का वह लघुवृक्ष जहां लेकर खड़े हैं वहीं रख दें ।

राजा केसरी सिंह द्वारा भिजवाए गए इस प्रकार के अमर्यादित संदेश को सुनकर पुरोहितों ने भी क्रोध में आकर बिना सोचे समझे सिर पर रखे उस खप्पर को वहीं जमीन पर रख दिया। कहा जाता है कि जैसे ही खप्पर का स्पर्श पृथ्वी से हुआ त्योंही एक भयानक कम्पन्न के साथ पृथ्वी फट गयी और मदार का वह लघुवृक्ष जिसमें से अद्वतीय तेज निकल रहा था पृथ्वी के अन्दर खप्पर सहित समा गया और वातावरण ऐसा हो गया कि मानो प्रलय की घड़ी आ गयी है। किन्तु पलक झपकते ही दूसरा चमत्कार भी हुआ। पृथ्वी का कम्पन अचानक बन्द हो गया , पृथ्वी पूर्व अवस्था में हो गयी तथा मदार के लघुवृक्ष के स्थान पर वहां एक विशालकाय वटवृक्ष पृथ्वी के अन्दर से बाहर निकला, जो आज भी विद्यमान है।

भगवती महाकाली के इस अद्भुत चमत्कार को सुनकर वटवृक्ष के पास राजा केसरी सिंह आए और मां-मां कहकर स्तुति करने लगे। कुछ क्षण उपरान्त उसी वटवृक्ष से दसों दिशाओं को आलोकित करने वाला ओंकार स्वरूप एक प्रकाश पुंज उदय हुआ जो क्षण भर बाद ही जगतजननी महाकाली के वास्तविक रूप में अवतरित हो गया। मान्यता है कि महाकाली की अवतरित आभा ने राजा केसरी सिंह से कहा- 'तूने मेरे प्रिय और सर्व पूज्य ब्राह्मणों का अपमान किया है जा तेरा सर्वनाश हो जाएगा। इतना कहकर मां अन्तर्ध्यान हो गयीं।'

कहा जाता है कि जगतजननी जगदम्बा के श्राप से कुछ ही दिन में राजा केसरी सिंह का सर्वनाश हो गया। राजमहल खण्डहर में तब्दील हो गया और वीरानी छा गयी। किन्तु जगतजननी जगदम्बा की अद्भुत व अलौकिक शक्ति के रूप में वह वटवृक्ष आज भी पूर्व की भांति अपने पूर्ववत् स्थान पर स्थित है। राजा केसरी सिंह के वंशजों को चौदह पीढ़ी के बाद शेहरतगढ़ का राज्य मिला। जिनके वर्तमान वंशज राजा लाल तेजेन्द्र प्रताप सिंह हैं जो मां के स्थान की देखरेख करते हैं। दोनों नवरात्रों पर शेहरतगढ़ स्टेट के उत्तराधिकारी राजा योगेन्द्र प्रताप सिंह स्थान पर आकर मां का पूजन-अर्चन करते हैं। मां के इस पावन स्थल पर हजारों की संख्या में भक्त जन आकर यहां के मुख्य प्रसाद हलुआ-पूड़ी का भोग लगाते हैं और मनौती मांगते हैं।

भक्तगण बताते हैं कि जो भी व्यक्ति यहां पर आकर सच्ची लगन, श्रद्धा ,एवं भक्ति से ममतामयी मां काली से प्रार्थना करता है तो मां वटवासिनी महाकाली उसकी मनोकामना जरूर पूरी करती हैं। 'गालापुर की महाकाली' के नाम से प्रसिद्ध मां अम्बे के इस दरबार से कोई व्यक्ति खाली हाथ नहीं गया है। कालान्तर में जिस-जिस भक्त ने जब-जब निष्ठा एवं भक्ति से जो-जो मांगा है मां वटवासिनी ने उसको वह-वह प्रदान किया है। इन्हीं कारणें से यहां दूर-दूर से हजारों, लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। चैत्र एवं शारदीय के नवरात्रि तथा मई, जून के महीनों में तो यहां पर अपार भीड़ होती है, जिसका आकलन करना बेहद मुश्किल है।

सच्ची लगन हो तो मिल जाता है मुकाम

बिहार में पटना सिटी की प्रिया ने यह साबित कर दिया है कि मेहनत, लगन और ईमानदारी से किया गया कार्य हमेशा व्यक्ति को आगे बढ़ाता है। 25 जून 1977 को जन्मी प्रियंका व्यास का जीवन समाज के लिए उदाहरण है। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से वर्ष 1997 में मनोविज्ञान विषय से स्नातक करने के बाद 'फैशन डिजाइनिंग' का पाठ्यक्रम पूरा किया। वर्ष 1999 में पटना सिटी के गुजराती परिवार में व्यवसायी नितिन व्यास से शादी हुई। जब वे ससुराल आयीं तो सास छाया व्यास का हुनर देख उसमें सहयोग करने की भावना जागी। सास बहू ने दिन-रात मेहनत कर बुटिक सेंटर के काम-काज को आगे बढ़ाया। पति नितिन की नौकरी भी रेलवे में लग गई। बुटिक में बेहतर कार्य करने के कारण बढ़ती मांग को देख वर्तमान में नौ मशीन से काम कराने का जज्बा रखने वाली प्रिया कमाई के सारे रुपये सास के पास जमा करती गईं। उसी से पटना सिटी में एक फ्लैट खरीदा। उस फ्लैट के दो कमरों में बुटिक व्यवसाय को स्थापित कर घर के खर्चे में काफी मदद पहुंचा रही हैं। उन्होंने बताया कि 90 के दशक में सास छाया व्यास इधर-उधर घूम कर 'आर्डर' लेतीं और कपड़े हाथ तथा सिलाई मशीन से सिलती थीं। उसमें ससुर गिरीश चंद्र, पति नितिन और देवर विरेन सहयोग करते थे। आज स्थिति यह है कि कारीगर को देने के बाद प्रतिदिन उन्हें अपनी मेहनत के बदले अच्छी कमाई हो रही है। वे बताती हैं कि धैर्य के साथ बेहतर काम करके समय पर कपड़ा पहुंचाना ही सफलता का राज है। बेहतर काम देखकर दिल्ली, जयपुर, उत्तर प्रदेश, गुजरात से भी 'आर्डर' आ रहे हैं। प्रिया बताती हैं कि मेहनत के कारण हम सब स्वावलम्बी तो हुए ही, पर सबसे बड़ी खुशी है कि हम कुछ लोगों को रोजगार भी दे पा रहे हें। हर व्यक्ति का यही प्रयास होना चाहिए जीयो और दूसरों को भी जीने दो। संजीव कुमार

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