भारत की संसद पर जिहादी आतंकवादियों के हमले को 11 वर्ष पूरे हो गए, लेकिन इस जघन्य कृत्य का मुख्य आरोपी अफजल सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा मिलने के बाद भी देश के सुरक्षा तंत्र और न्यायिक प्रणाली को मुंह चिढ़ा रहा है और उस हमले में मारे गए सुरक्षा जवानों के दुखी परिजन अपने जांबाजों की शहादत की सरकारी अनदेखी से क्षुब्ध और अपमानित हैं, इतने कि इन शहीदों की बहादुरी का सम्मान करते हुए सरकार द्वारा दिए गए वीरता पदक भी वे राष्ट्रपति को लौटा चुके हैं। वास्तव में अफजल की फांसी को टालते रहना या उसे फांसी से बचाए रखने की वोट राजनीति की कोशिशें उन बलिदानियों का अपमान हैं। इस अपमान की पीड़ा ने ही कोसी (मथुरा) के शहीद घनश्याम पटेल की पत्नी सोमौती को उन शहीदों की याद में हर साल किए जाने वाले रस्मी सम्मान समारोह में आने से रोका और उसका यह कहना कि 'हत्यारे को फांसी आखिर क्यों नहीं दी जा रही' सरकार, विशेषकर इसका नेतृत्व करने वाली कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर एक तमाचा है, जिसने राष्ट्र की सुरक्षा के प्रश्न को वोट राजनीति की चौखट पर बलि चढ़ा दिया है। कांग्रेस की कुत्सित मानसिकता का परिचय तो उसके एक केन्द्रीय मंत्री ने यह कहकर दे दिया है कि अफजल को फांसी की बजाय उम्रकैद की सजा दी जानी चाहिए। इस कथन से कांग्रेस की मंशा साफ हो जाती है कि वह किस कारण अफजल की फांसी की फाइल को दिल्ली व केन्द्र सरकार के बीच वर्षों से लटकाए हुए है।
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भारत की संसद पर जिहादी आतंकवादियों के हमले को 11 वर्ष पूरे हो गए, लेकिन इस जघन्य कृत्य का मुख्य आरोपी अफजल सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा मिलने के बाद भी देश के सुरक्षा तंत्र और न्यायिक प्रणाली को मुंह चिढ़ा रहा है और उस हमले में मारे गए सुरक्षा जवानों के दुखी परिजन अपने जांबाजों की शहादत की सरकारी अनदेखी से क्षुब्ध और अपमानित हैं, इतने कि इन शहीदों की बहादुरी का सम्मान करते हुए सरकार द्वारा दिए गए वीरता पदक भी वे राष्ट्रपति को लौटा चुके हैं। वास्तव में अफजल की फांसी को टालते रहना या उसे फांसी से बचाए रखने की वोट राजनीति की कोशिशें उन बलिदानियों का अपमान हैं। इस अपमान की पीड़ा ने ही कोसी (मथुरा) के शहीद घनश्याम पटेल की पत्नी सोमौती को उन शहीदों की याद में हर साल किए जाने वाले रस्मी सम्मान समारोह में आने से रोका और उसका यह कहना कि 'हत्यारे को फांसी आखिर क्यों नहीं दी जा रही' सरकार, विशेषकर इसका नेतृत्व करने वाली कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर एक तमाचा है, जिसने राष्ट्र की सुरक्षा के प्रश्न को वोट राजनीति की चौखट पर बलि चढ़ा दिया है। कांग्रेस की कुत्सित मानसिकता का परिचय तो उसके एक केन्द्रीय मंत्री ने यह कहकर दे दिया है कि अफजल को फांसी की बजाय उम्रकैद की सजा दी जानी चाहिए। इस कथन से कांग्रेस की मंशा साफ हो जाती है कि वह किस कारण अफजल की फांसी की फाइल को दिल्ली व केन्द्र सरकार के बीच वर्षों से लटकाए हुए है।

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Dec 15, 2012, 12:00 am IST
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अफजल की फांसी की फांस

दिंनाक: 15 Dec 2012 15:14:29

मुम्बई हमले के आरोपी अजमल कसाब को अचानक फांसी दिए जाने की खबर ने जहां देशवासियों को आश्चर्यजनक खुशी दी, वहीं 'अफजल की फांसी कब?' जैसा सवाल भी उनके अंतर्मन को कचोट रहा था, क्योंकि भारत की संप्रभुता की प्रतीक संसद पर हमले का आरोपी अफजल देश की सुरक्षा में सरकार की नाकामी का सबसे बड़ा प्रतीक बनकर जेल में बिरियानी उड़ा रहा है और सरकार कानूनी प्रक्रिया के बहाने देशवासियों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रही है। शायद इसीलिए सरकार की साख बचाने हेतु पिछले दिनों केन्द्रीय गृहमंत्री ने घोषणा की कि मौजूदा संसद सत्र के बाद अफजल की फांसी पर फैसला होगा, उन्होंने 'फांसी दी जाएगी' नहीं कहा। 'फांसी पर फैसला होगा' के तो कई अर्थ हैं, जिनमें से एक का संकेत बेनी प्रसाद वर्मा ने उम्रकैद की बात कहकर दे दिया है कि वोट राजनीति के दबाव में अफजल को फांसी से बचाने की कहीं कोई खिचड़ी पक रही है। राष्ट्रपति द्वारा अफजल की दया याचिका गृह मंत्रालय को वापस कर दिए जाने के बाद भी सरकार इस मामले पर कानून मंत्रालय की राय मांग रही है, जबकि 3-3 अदालतों, यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी उसकी फांसी पर मुहर लगा दी है। अब भी कानून मंत्रालय की राय मांगना क्या हमारी न्यायिक प्रणाली, विशेषकर सर्वोच्च न्यायालय का मखौल नहीं है? इसका सीधा अर्थ है कि सरकार अपने राजनीतिक हितों के मद्देनजर अफजल को फांसी पर लटकाने के बजाय फांसी की सजा को ही लटकाने पर आमादा है और वह अफजल की फांसी के लिए तैयार नहीं है। अफजल की फांसी को लेकर जम्मू-कश्मीर में जिस तरह की राजनीति सामने आई और मुख्यमंत्री तक ने ऐसा होने पर कानून-व्यवस्था बिगड़ने का डर दिखाया, उससे साफ है कि कांग्रेस वोट के लिए अलगाववादियों व देशद्रोहियों के सामने समर्पण कर चुकी है और वह अपनी सत्ता के लिए देशहित को दरकिनार कर कोई भी कीमत चुकाने को तैयार है। लेकिन भारत की देशभक्त जनता के सीने में फंसी अफजल की फांसी की फांस उसे बेचैन किए हुए है।

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