मानवीय सभ्यता पर खतरा बन चुका है
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अंतरराष्ट्रीय जिहादी आतंकवाद
आतंकवादी हिंसा का ठोस आधार एवं प्रेरणा मजहब आधारित कट्टरवाद
अपने देश की बाह्य एवं भीतरी सुरक्षा के साथ जुड़ा हुआ यह महत्वपूर्ण समाचार चौंकाने वाला तो जरूर है परंतु सत्य है कि संसार के सर्वाधिक आतंकग्रस्त देशों में भारत का स्थान सबसे ऊपर है। इस रहस्योद्घाटन पर भी सहसा विश्वास नहीं होता कि दुनिया के लगभग सवा दो सौ छोटे-बड़े देशों में केवल मात्र 31 ऐसे देश हैं जहां आज तक किसी भी प्रकार के हिंसक आतंकवाद की कोई घटना नहीं घटी। इस ताजा जानकारी के आधार पर यह विश्लेषण सरलता से किया जा सकता है कि हिंसक आतंकवाद एक अंतरराष्ट्रीय गंभीर समस्या है जो सुलझने के स्थान पर ज्यादा जटिल होती जा रही है। समस्त मानवता के लिए एक प्रबल चुनौती बनती जा रही यह हिंसा मनुष्य के जीने के बुनियादी अधिकारों पर सीधा आघात कर रही है। यह एकतरफा परंतु विश्वव्यापी हिंसक विचारधारा जैसे-जैसे अपना आकार बढ़ाती जाएगी वैसे-वैसे ही आधुनिक मानवीय सभ्यता पर खतरा बढ़ता जाएगा। मानवता विरोधी इस हिंसक अभियान को जन्म देने वाले कुछ देशों को छोड़कर शेष सभी राष्ट्र इससे चिंतित हैं।
'द इनागरल ग्लोबल टैररिज्म इंडैक्स' (जीटीआई) की एक ताजा रपट के अनुसार सन् 2003 में इराक युद्ध शुरू होने के साथ ही संसार में आतंकवादी हमलों का सिलसिला तेज हो गया। इस युद्ध के बाद संसार में होने वाली आतंकवादी घटनाओं में अचानक हुई चार गुणा वृद्धि इस बात का संकेत है कि यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या से सख्ती से न निपटा गया तो सुरसा की तरह अपना जबड़ा चौड़ा करती जा रही यह राक्षसी मनोवृत्ति समाप्त नहीं होगी। इस संदर्भ में यह समझना भी जरूरी हो गया है कि इस तरह का हिंसक सिद्धांतवाद एकांगी अथवा अचानक प्रकट नहीं हो जाता। इसके पीछे निश्चित रूप से मजहबी कट्टरवादिता या फिर ऐसे समाजशास्त्र की भूमिका रहती है जो अन्य जीवन व्यवस्थाओं को सिरे से खारिज करके अपना वैचारिक पक्ष सब पर थोपना चाहते हैं। यहीं से फिर हिंसा जन्म लेती है। आज समूचे विश्व में फैल रहे जिस हिंसक आतंकवाद का सनसनीखेज खुलासा जीटीआई ने किया है उसकी जड़ों में यही मजहबी अथवा सैद्धांतिक कट्टरवाद स्पष्ट दिखाई देता है।
अधिकांश देशों को लपेट में ले चुका है
गैर–इंसानी हिंसक आतंकवाद
'द इनागरल ग्लोबल टैररिज्म इंडैक्स' की रपट को तैयार करने वाले 'इंस्टीट्यूट फार इकानॉमिक्स एंड पीस' के कार्यकारी चेयरमैन स्टीव किल्लेलिया के कथनानुसार, 'आतंकवाद हमारे समय का सर्वाधिक भावोत्तेजक विषय है। पिछले तीन वर्षों में आतंकवाद के प्रभाव में स्थिरता आई है परंतु अब भी इसकी दर काफी ऊंची है। अमरीका में हुए 9/11 आतंकी हमले के बाद के दशक में आतंकी विस्फोटों में हताहतों की संख्या में 195 फीसदी की वृद्धि हुई है, हमले 460 फीसदी बढ़े और घायलों की संख्या में 224 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। (अमर उजाला 5 दिसम्बर, 2012)। यह भी उल्लेखनीय है कि जीटीआई द्वारा प्रस्तुत इस सूची में आतंकग्रस्त देशों में अमरीका का स्थान 41वां है अर्थात् 9/11 हमले के तुरंत बाद ही वहां पर आतंकवाद की नकेल सफलतापूर्वक कस दी गई। यह ठीक है कि अमरीका ने इस खतरे से निपटने के पूरे और पुख्ता इंतजाम कर लिए हैं परंतु प्रस्तुत इंडैक्स के मुताबिक यह खतरा अभी मंडरा रहा है। इसकी पृष्ठभूमि पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हुई है। इसकी प्रेरणा मजहबी कट्टरवाद ही है।
आतंकी हादसों में मरने वालों की संख्या, जख्मियों के आंकड़ों, सम्पत्ति की बर्बादी के आधार पर बनाई गई इस रपट में 158 देशों में हुए आतंकी विस्फोटों का अध्ययन शामिल किया गया है। रपट को तैयार करने वाले स्टीव किल्लेलिया की बात मान ली जाए तो 31 देशों को छोड़कर शेष 127 देश आज आतंकवाद का शिकार हैं। इनमें अमरीका, इंग्लैंड जैसे बड़े देश भी शामिल हैं। इस तथ्य पर भी निगाह डालने की जरूरत है कि जहां अमरीका, इंग्लैंड, अल्जीरिया और कोलंबिया इत्यादि देशों में गत दस वर्षों में आतंकवाद समाप्त हुआ है अथवा कम हुआ है। वहीं भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकी हादसों और इनमें मरने वालों का आंकड़ा बढ़ा है। इस इंडैक्स में किए गए खुलासे के अनुसार 'मात्र वर्ष 2011 में मध्य-पूर्र्व भारत, पाकिस्तान और रूस आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित रहे। इस वर्ष कुल 7473 लोगों की जानें गईं।' इस इंडैक्स में अफगानिस्तान में आतंकी हादसों का विवरण (वर्ष 2011) नहीं है परंतु इस देश को आतंक का शिकार मानते हुए उसे भारत और पाकिस्तान की श्रेणी में जरूर रखा गया है।
हिंसक जिहादियों की आपूर्ति करते हैं आतंकी देश
पाकिस्तान और अफगानिस्तान
विश्वभर में व्याप्त आतंकवाद का विवरण प्रस्तुत करने वाले 'इंस्टीट्यूट आफ इकानॉमिक्स एंड पीस' ने इस सच्चाई को तो स्वीकार किया है कि ज्यादातर आतंकी हमले व्यापक संघर्ष की स्थिति में हो रहे हैं परंतु भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान को एक ही पलड़े में रखकर सत्य का गला भी घोंट दिया गया है। आज सारे संसार को यह समझ में आ गया है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों आतंकवादी देश हैं जबकि भारत आतंकवादग्रस्त देश है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की धरती पर आतंकवादी थोक के भाव तैयार हो रहे हैं जिनकी आपूर्ति पूरे विश्व में होती है। विश्व कुख्यात आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में ही शरण मिली हुई थी। लश्करे तोएबा, जैशे मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिद्दीन और हरकत उल जिहादी इस्लामी जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों के अड्डे और नियंत्रण कक्ष सभी पाकिस्तान की ही धरती पर मौजूद हैं। ध्यान देने की बात है कि यह आतंकी केन्द्र भूमिगत नहीं हैं उन्हें वहां की सरकार और सेना का ही संरक्षण नहीं, अपितु न्यायालयों का वरदहस्त भी प्राप्त है।
अमरीका में 9/11 के नरसंहार सहित विश्व में जितने भी आतंकी विस्फोट हुए हैं उन सबके तार पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों से जुड़े हुए पाए गए। अन्यथा अमरीका को इन दोनों देशों में ड्रोन हमलों के द्वारा आतंकियों और उनके ठिकानों को समाप्त करने की जरूरत न पड़ती। तथ्य यह भी है कि अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबानी लड़ाकों और पाकिस्तान में जमे हुए जिहादी मुजाहिद्दीन में पूरा तालमेल है और दोनों का एक ही घोषित उद्देश्य है विश्व में जिहादी हिंसा फैलाकर कट्टरपंथी इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना करना। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इनके निशाने पर सबसे पहला और बड़ा देश भारत ही है। इसलिए आतंकवाद के संदर्भ में भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान को बराबरी का दर्जा देना आतंक से ग्रस्त समूची मानवता के प्रति अन्याय होगा। अमरीका जैसे बड़े देश भले ही अपने राजनीतिक स्वार्थों के मद्देनजर पाकिस्तान, अफगानिस्तान को आतंकवादी देश घोषित न करें परंतु इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि ये दोनों देश विश्व में फैलते जा रहे जिहादी आतंक के जन्मदाता और संरक्षक हैं।
कट्टरवादी जिहादी विचारधारा के सीधे निशाने पर
भारत और भारतीयता
सारी दुनिया के सामने यह सच्चाई अब दिन की रोशनी की तरह साफ हो चुकी है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में प्रशिक्षित आतंकियों ने आधी से ज्यादा दुनिया में हिंसक जिहाद की जो आग सुलगाई है उसका आधार मजहबी कट्टरवादिता का जुनून है। यह एक ऐसा जुनून है जिसका मानवता आधारित मूल्यों से कोई संबंध नहीं होता। यही वजह है कि पाकिस्तान की सरकारों ने जिस एकतरफा मजहबी जुनून को संरक्षण देकर इस्लाम की हिफाजत का मुल्लमा चढ़ाया था वही आज स्वयं पाकिस्तान के लिए भस्मासुर बनता जा रहा है। अफगानिस्तान की जिस तालिबानी ताकत को पहले अमरीका और अब पाकिस्तान संरक्षण दे रहा है वही आज अमरीका और पाकिस्तान दोनों के लिए चुनौती बन चुकी है। इतना सब कुछ स्पष्ट हो जाने के बावजूद पाकिस्तान की सेना और आईएसआई तालिबानी अफगानियों की हमदर्द और मददगार बनी हुई है। यही वह कट्टरवादी मानसिकता है जो विश्व के अमन चैन पर सबसे बड़ा खतरा बनकर मंडराने लगी है। सभी देश मिलकर इस खतरे से निपटने का कोई रास्ता खोज निकालेंगे इसके आसार नजर नहीं आते।
मानवीय सभ्यता के अस्तित्व को ही समाप्त कर डालने की इस हिंसक मुहिम का सबसे ज्यादा खतरा भारत को है। गत तीन दशकों में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले जितने भारत में हुए हैं विश्व के किसी भी देश में नहीं हुए। जान माल का सबसे ज्यादा नुकसान भारत में हुआ है। पंजाब, कश्मीर सहित भारत के प्राय: सभी बड़े शहरों तक जिहादी आतंकियों ने धमाके करके लाखों लोगों की जीवन लीलाएं समाप्त की हैं। यह चुनौती देश की संसद को भी दे दी गई है। समूचा भारत और भारतीयता इसी कट्टरवादी हिंसक जिहाद के निशाने पर है। पाकिस्तान व अफगानिस्तान की धरती पर उग रही इस जिहादी फसल को अरब जगत के अधिकांश देश खाद पानी देकर एक विशेष प्रकार की विचारधारा और इसके ध्वजवाहकों की पीठ थपथपा रहे हैं। अमरीका सहित सभी बड़े राष्ट्र इस खतरे से पूरी तरह वाकिफ हैं परंतु अपने राष्ट्रीय हितों पर आधारित राजनीतिक स्वार्थों की सीमाएं लांघने में संकोच करते हैं। स्पष्ट है कि इस संकोच-स्वार्थ को तिलांजलि दिए बिना विश्व में लगी जिहादी आग को बुझाया नहीं जा सकता। इससे पहले कि बड़े राष्ट्र इस आग में जलकर भस्म हो जाएं, एक सर्वसम्मत अंतरराष्ट्रीय आतंक विरोधी मुहिम सामने आनी चाहिए।
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