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शास्त्रीय संगीत के अनन्य साधक

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Dec 15, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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शास्त्रीय संगीत के अनन्य साधक

दिंनाक: 15 Dec 2012 14:53:27

 

 श्रद्धाञ्जलि– पं.रविशंकर

सितार के सुरों को समर्पित, भारत रत्न पं.रविशंकर का इस नश्वर संसार से विदा होना भारत के शास्त्रीय संगीत जगत को स्तब्ध कर गया। 12 दिसम्बर की सुबह 92 वर्षीय पं.रविशंकर ने सान डिएगो (अमरीका) में अंतिम सांस ली। पंडित जी ने भारत सहित दुनिया के कोने-कोने में अपने सितार के सुरों को गुंजाया था। 7 अप्रैल, 1920 को बनारस में एक अति साधारण परिवार में जन्मे, चार भाइयों में सबसे छोटे रविन्द्र शंकर ने शुरू में अपने सुविख्यात नर्तक भाई उदय शंकर की टोली से जुड़कर एक नर्तक के ही नाते देश-दुनिया में धूम मचाई। लेकिन 1938 में नृत्य छोड़कर आठ साल तक उस्ताद अलाउद्दीन खान जैसे लब्ध प्रतिष्ठित गुरु से सितार सीखा। इसके बाद उन्होंने सितार की झंकार के साथ ऐसे ऐसे प्रयोग किए कि दुनिया के जाने-माने संगीतविद्, कलाकारों जैसे जार्ज हैरिसन, पाल मैक्कार्टिनी, जान लिनॉन, एरिक क्लैप्टन, बॉब डिलान और येहुदी मैनुहिन ने उनके साथ मिलकर पूरब और पश्चिम के संगीत का मेल कराया और संगीत के अनूठे प्रयोगों से दुनिया को गुंजाने लगे। मैगसायसाय, ग्रामी और न जाने कितने देशी-विदेशी सम्मानों, पुरस्कारों को पाने के बावजूद पंडित जी की विनम्रता गजब की थी। कुछेक फिल्मों, जैसे चार्ली, अप्पू ट्रिलोजी और एटनबरो की गांधी में संगीत देकर उन्होंने अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी। 1986 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किए गए पं. रविशंकर ने अपनी दो पुत्रियों नोरा जोंस और अनुष्का शंकर को सितार वादन की तालीम दी और दोनों ही आज अंतरराष्ट्रीय संगीत जगत में नाम कमा रही हैं।

पंडित जी के अवसान पर भारत सहित दुनियाभर के राजनेताओं, संगीतज्ञों और संगीत प्रेमियों ने अपनी भावपूर्ण श्रद्धाञ्जलि दी।

कचरे में जा रहा है 'वालमार्टी' अमरीका में खाना!

संयुक्त राष्ट्र के संगठन ने खोली पोल

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की रपट में दुनिया भर के देशों का एक दिलचस्प आंकड़ा छपा है कि कौन से देश हैं जहां खाने की सबसे ज्यादा बर्बादी होती है और कौन से देशों में कम। तो इसके हिसाब से विकसित देशों, यानी पश्चिम के देशों, जहां विकास के नाम पर जबरदस्त औद्योगिकीकरण हुआ, में दाल, चावल, गेंहू, सब्जी वगैरह की बर्बादी चरम पर है और दक्षिण एशिया के विकासशील देशों में कम है। अमरीका में वालमार्ट स्टोर चप्पे-चप्पे पर खुले हैं, लेकिन उसके रहते वहां हर साल 95 से 115 किलो प्रति व्यक्ति खाना फिंक कर जाता है। यूरोप के देशों में भी यही हिसाब है। जबकि अफ्रीका, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया में, जहां विकासशील देश हैं, यह आंकड़ा महज 6 से 11 किलो है। रपट कहती है कि विकासशील देशों में दलहन वगैरह कटाई से प्रसंस्करण के दौरान 40 फीसदी बर्बादी होती है, जबकि विकसित देशों में 40 फीसदी बर्बादी खुदरा और उपभोक्ता के स्तर पर होती है यानी जहां वालमार्ट जैसे बड़े स्टोरों की भूमिका शुरू होती है। इतना ही नहीं, प्राकृतिक संसाधन रक्षण परिषद के हालिया अध्ययन ने बताया है कि अमरीका में 40 फीसदी खाना बिना खाए ही कचरे के डिब्बे में फेंका जा रहा है। जबकि हैरानी की बात यह है कि इसे उपजाने में अमरीका की 10 फीसदी ऊर्जा, 50 फीसदी जमीन और 40 फीसदी ताजा पानी खपता है।

इन आंकड़ों का जिक्र करने के पीछे कारण संप्रग सरकार के उस दावे की कलई खोलना है जो उसने छाती ठोक के किया था कि खुदरा में एफडीआई का आना दलहन, सब्जी, फल वगैरह की बर्बादी कम कर देगा। वालमार्ट जैसा बहुराष्ट्रीय स्टोर खेत से अल्मारी तक चीजों को ऐसी फुर्ती से पहुंचाएगा कि कच्चे खाद्य पदार्थों की बर्बादी कम हो जाएगी। लेकिन अमरीका जैसे 'वालमार्टी' देश में खाने की बर्बादी चरम पर है, तो खेत से अल्मारी तक खाने की चीजें पहुंचाने में वहां वालमार्ट की फुर्ती कहां खो गई?

'हमास' ने ठुकराया संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव

फिलिस्तीन को पर्यवेक्षक दर्जा मंजूर नहीं

अभी नवम्बर में ही संयुक्त राष्ट्र ने अपने प्रस्ताव क्र.ए/67/एल 28 के जरिए इस्रायल के पड़ोसी फिलिस्तीन को गैर सदस्य देश के नाते पर्यवेक्षक का दर्जा दिया था। लेकिन फिलिस्तीन में बहने वाली बयार से लेकर कुर्सी पर बैठी सरकार तक का फैसला करने वाले 'हमास' ने प्रस्ताव की बुनियादी धाराओं पर अंगुली उठाते हुए उसे सिरे से नकार दिया। फिलिस्तीन में राजनीतिक नेतृत्व बंटा हुआ है जिसमें 'हमास' एक सबसे असरदार ताकत के रूप में उभरा है। उसी ने प्रस्ताव की धारा 4 को मानने से इनकार कर दिया है। धारा 4 है क्या? यह वह धारा है जिसमें फिलिस्तीन राज्य के इस्रायल के साथ 1967 से पहले की सरहदों के आधार पर शांति और सुरक्षा के साथ हिलमिल कर रहने का उल्लेख है। 'हमास' इस्रायल के साथ शांति से हिलमिलकर रहे! यह कैसे हो सकता है सो दिसम्बर शुरू होते ही जब 'हमास' प्रमुख खालिद मशल का लाव-लश्कर सहित पहली बार गाजा आना हुआ तो मशल संयुक्त राष्ट्र पर बिफरते हुए बोले, 'फिलिस्तीन अपनी जमीन का कोई हिस्सा नहीं छोड़ेगा। इस्रायल का उसके हिस्सों पर कब्जा बनाए रखना किसी तरह जायज नहीं है। भारी भीड़ के बीच शोले उगलते हुए मशल ने कहा कि 'हमास का मकसद है जार्डन से लेकर समन्दर के छोर तक पूरे इस्रायल पर राज कायम करना। आज गाजा है तो कल रामल्लाह होगा, परसों यरुशलम और फिर हाफिया और जाफा होंगे। हम फिलिस्तीन की इंच भर जमीन पर अपना दावा नहीं छोड़ेंगे।' 'हमास' का एजेंडा ही कहता है कि शांतिपूर्ण बातचीत के लिए कोई जगह नहीं है, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षक दर्जे के प्रस्ताव की धारा 4 का क्या होगा, इस पर कूटनीतिक-राजनीतिक बहसें जारी ½éþ* 

अंटार्कटिक में फहरा भगवा ध्वज

दक्षिणी ध्रुव पर शाखा में गूंजा-'नमस्ते सदा वत्सले…'

मुम्बई के राजेश अशर अपने दल के साथ अंटार्कटिक गए थे। धरती के धुर दक्षिण में बर्फ की मोटी चादर से ढके दक्षिणी ध्रुव पर रा.स्व.संघ के स्वयंसेवक राजेश ने 9 दिसम्बर की भोर में भगवा ध्वज फहराया और शाखा लगाकर संघ प्रार्थना की- 'नमस्ते सदा वत्सले..

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