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पाठकीय:अंक–सन्दर्भ 18 नवम्बर,2012
देश है तो हम सब हैं
चेन्नै बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को देखते हुए ही कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की अवहेलना उसे स्वीकार नहीं है। सत्ता बनाए रखने के लिए चुनौतियों से नहीं निपटना राष्ट्रद्रोह है। हम सबके लिए पहले देश है। देश सुरक्षित है, तो हम भी सुरक्षित हैं। जब हम सुरक्षित हैं तो अपना परिवार भी सुरक्षित है। यह भावना हर नागरिक के मन-मस्तिष्क पर बैठानी होगी।
–विकास कुमार
शिवाजी नगर, वडा, जिला–थाणे (महाराष्ट्र)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने लाखों स्वयंसेवकों के सहयोग से राष्ट्र की सेवा में निरन्तर लगा है। किन्तु दुष्ट-प्रवृत्ति वाले लोग इस राष्ट्रनिष्ठ संगठन की आलोचना करते रहते हैं। ऐसे लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि सोना जितना तपता है उतना ही उसमें निखार आता है। इसी तरह संघ की जितनी आलोचना होती है, वह उतना ही आगे बढ़ रहा है।
–ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह 'सोनगरा'
कांडरवासा, जिला–रतलाम-457222 (म.प्र.)
रा.स्व.संघ ने चेन्नै बैठक में जितने भी प्रस्ताव पारित किए हैं वे राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण हैं। पर दुर्भाग्य से संप्रग सरकार उन विषयों पर गंभीर नहीं है। राष्ट्रवादी विचार वालों को एकजुट होना होगा और सरकार पर दबाव डालना होगा कि वह राष्ट्रीय हितों की अनदेखी न करे।
–हरिहर सिंह चौहान
जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
बंगलादेशी घुसपैठियों की बढ़ती संख्या भारत के लिए खतरे की घंटी है। संघ वर्षों से इस पर चिन्ता जता रहा है। इसके बावजूद यह सरकार आई.एम.डी.टी. एक्ट (जिसके कारण घुसपैठ को मदद मिलती है) को असम में लागू रखना चाहती है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने 2005 में इस एक्ट को रद्द कर दिया था। पर 2006 में थोड़ा संशोधन कर उसी एक्ट को वहां लागू कर दिया गया। यह देश की सुरक्षा के साथ मजाक नहीं तो क्या है?
–महेश सत्यार्थी
टैक्नो इंडिया, उझानी, जिला–बदायूं (उ.प्र.)
कानून का दुरुपयोग
चर्चा सत्र में प्रो. लक्ष्मीकान्ता चावला के लेख 'एक राहत भरा फैसला' में एक ज्वलन्त विषय को उठाया गया है। सही कहा गया है कि दहेज विरोधी कानून का दुरुपयोग हो रहा था। इस कानून की आड़ में अनेक निर्दोष लोगों का परिवार उजड़ गया। ऐसे कई लोगों को मैं जानता हूं, जो पूरी तरह निर्दोष हैं। दुर्भाग्यवश उन पर बहू की हत्या का आरोप लगा और परिवार सहित वर्षों जेल में बन्द हो गए। जब तक जमानत होती है तब तक घर उजड़ जाता है। न्यायालय ने ऐसे लोगों के दर्द को समझा। इस कानून में सुधार की गुंजाइश है। घरेलू हिंसा कानून का भी दुरुपयोग होने लगा है।
–वीरेन्द्र सिंह जरयाल
26-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर, दिल्ली-51
सर्वोच्च न्यायालय का दहेज उत्पीड़न से संबंधित कानून के दुरुपयोग पर चिन्ता व्यक्त करना बड़ी बात है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस कानून से समाज का बड़ा भला हो रहा था। किसी पीड़िता को न्याय मिल जाता था। किन्तु जब से इस कानून का गलत इस्तेमाल होने लगा तब से लोग इस कानून में संशोधन की बात करने लगे थे।
–डा. रघुनन्दन प्रसाद दीक्षित 'प्रखर'
शान्तिदाता सदन, नेकपुर चौरासी, फतेहगढ़, फर्रुखाबाद-209601 (उ.प्र.)
भ्रष्टाचार बनता शिष्टाचार
श्री नरेन्द्र सहगल ने अपने लेख 'भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए चाहिए गैर-राजनीतिक सामाजिक क्रांति' में समाज और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को रेखांकित किया है। सत्ता पाने और उसे बचाए रखने की कोशिशों ने पूरी व्यवस्था को भ्रष्ट कर रखा है। इस महत्वपूर्ण तथ्य और तर्क को गहराई से समझने की जरूरत है।
–मनोहर 'मंजुल'
पिपल्या–बुजुर्ग, प. निमाड़-451225 (म.प्र.)
भ्रष्टाचार पर अंकुश तब लगेगा जब हमारे जन प्रतिनिधि आदर्श उपस्थित करेंगे। ऐसा नहीं होगा कि नेता भ्रष्टाचार में डूबे रहें और लोगों को नसीहत देते रहें कि 23 रु. में एक दिन का गुजारा करो। जिन संस्थाओं को भ्रष्टाचारियों पर निगरानी रखनी है वे भी इन्हीं नेताओं के इशारे पर काम करती हैं। ये संस्थाएं शिष्टाचार की आड़ में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही हैं। सीबीआई से लोगों का भरोसा टूट ही गया, अब न्यायपालिका पर भी लोगों का विश्वास टूट रहा है। यह विकट स्थिति है।
–सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर
द्वारकापुरम, दिलसुखनगर, हैदराबाद-60 (आं.प्र.)
सऊदी की करतूत
श्री मुजफ्फर हुसैन ने अपने लेख में बताया है कि सऊदी अरब भारत-विरोधी आतंकवादियों का अड्डा बन चुका है। पड़ोसी पाकिस्तान तो अपने जन्मकाल से ही भारत के विरुद्ध काम करता है। पाकिस्तान ने भारत को वांछित अनेक अपराधियों को शरण दे रखी है। अब इस सूची में सऊदी अरब भी शामिल हो गया है। इस बदलते परिदृश्य में हमें बेहद सतर्क रहना होगा। यह भी पता करना चाहिए कि सऊदी अरब आखिर क्यों भारत-विरोधियों को शरण दे रहा है?
–रामावतार
कालकाजी, नई दिल्ली
आत्मघाती है एफडीआई
खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का रास्ता खोलकर सरकार ने एक विवाद के कई द्वार खोल दिये हैं। दुनिया में जब उपभोक्तावाद के खिलाफ आवाज उठ रही हो, तब भारत में खुदरा व्यवसाय में वालमार्ट जैसी विदेशी कम्पनियों को लाने का फैसला करने का क्या उद्देश्य हो सकता है? मुक्त पूंजी का उपयोग एक सीमा तक ही उचित है। मुक्त विदेशी पूंजी का प्रवेश देश के लिए कई खतरे पैदा कर रहा है। मनमोहन सरकार कहती है कि खुदरा व्यापार में विदेशी पूंजी के निवेश से किसानों को उत्पादों की ज्यादा कीमत मिलेगी और उपभोक्ताओं को कम दाम चुकाने होंगे। इससे ज्यादा रोजगार के दरवाजे खुलेंगे। इसका अर्थ है कि अब सरकार नहीं बल्कि वालमार्ट, टेस्को जैसी कम्पनियां हमारा उद्धार करेंगी? संप्रग सरकार का खुदरा क्षेत्र में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देना एक ऐसा खतरनाक कदम है जिसका किसी भी तरह कोई औचित्य सिद्ध नहीं किया जा सकता है। भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में जहां करोड़ों लोग खुदरा कारोबार कर रहे हैं, उन्हें बेरोजगार करके किन लोगों को रोजगार देने की बात सरकार कर रही है, यह समझ से परे है।
दुनिया भर से आईं विभिन्न रपटों से यह सिद्ध हो चुका है कि वालमार्ट और केयरफोर जैसी दिग्गज कम्पनियां स्थानीय बाजारों का गला घोटने के एकाधिकार का रवैया अपनाती हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार गुणवत्ता मानकों और इन कम्पनियों की विपणन नीतियों के कारण किसानों को भारी हानि होती है। इनका उद्देश्य खेती और भारत के खनिज संसाधनों को हथियाने का है।
यदि यह केवल कुछ कम्पनियों के लिए ही है तो निश्चित रूप से प्रतिस्पर्धा के सभी रास्ते बंद होते जा रहे हैं। इससे भारत के किसान और उनकी खेती चंद कम्पनियों की बंधक बन जाएगी। आज से 10 साल पहले जब गेहूं किसानों से 6 रु. किलो खरीदा जाता था तो बाजार में आटे का भाव 7 रु. होता था। लेकिन आज इन कम्पनियों द्वारा अनाज की भारी खरीद के चलते आटे का भाव 22 से 25 रुपए किलो तक पहुंच गया है, जबकि किसानों को अभी भी सिर्फ 12 या 13 रुपए किलो भाव ही मिलता है। जिन देशों में ये कंपनियां किसानों से सीधी खरीद कर रही हैं वहां किसानों को शिकायत है कि कंपनियों के अधिकारी खरीददारी व भुगतान करते समय मनमानी करते हैं और अपने काम निकालने के लिए कम्पनियों के अधिकारियों को रिश्वत या उपहार देने पड़ते हैं।
यदि सरकार यह दावा करती है कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों के आने से देश में भंडारण और शीतगृह (कोल्ड स्टोरेज) की कमी दूर हो जाएगी तो यह भ्रम होगा। सरकार ने दशक पहले भंडारण और शीतगृह में विदेशी निवेश खोल दिया था, लेकिन इस क्षेत्र में कोई विदेशी निवेश प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए अगर खुदरा क्षेत्र में आने वाली विदेशी कम्पनियां भंडारण और कोल्ड स्टोरेज बनाती हैं तो यह अपने हित साधन और किसानों एवं उपभोक्ताओं के शोषण के लिए ही बनाएंगी।
सरकार दावा करती है कि कंपनियां जब किसानों से सीधी खरीदारी करेंगी तो बिचौलिए की भूमिका समाप्त हो जाएगी। अब प्रश्न उठता है कि सरकार बिचौलिया किसे मानती है? सरकार की नजरों में किसानों के खेत से फसल की लदाई करने वाला खेत मजदूर, उसे मंडी तक पहुंचाने वाला परिवहनकर्मी, मंडी में उतराई करने वाला मजदूर, व्यापारी व दुकानदार आदि बिचौलिए हैं। प्रश्न उठता है कि क्या कंपनियों के आने से यह काम समाप्त हो जाएंगे? उत्तर है नहीं, क्योंकि उक्त काम जरूरी काम हैं और इनके बिना किसान के उत्पाद को उपभोक्ता तक नहीं पहुंचाया जा सकता। अंतर केवल इतना आएगा कि इन सभी भूमिकाओं में बड़ी कंपनियां आ जाएंगी। अर्थात् इन मजदूरों, परिवहनकर्मियों, व्यापारियों, छोटे दुकानदारों, रेहड़ी–फड़ी वालों का सारा काम कंपनियां करेंगी। उक्त सभी लोग बेरोजगार हो जाएंगे। किसानों के लिए केवल बिचौलियों की शक्लें बदलेंगी जबकि बिचौलिए तब भी कंपनी के रूप में मौजूद रहेंगे। सारा काम कंपनियों के हाथों में आ जाने से किसानों का किस तरह से शोषण होगा इसका अनुमान अभी किसान नहीं लगा सकते।
बड़ी कंपनियों के परचून में आने से वे उसी उत्पाद को उपजाने के लिए किसान पर दबाव डालेंगे जिसकी खपत अधिक है या जो माल उनकी दुकानों पर बिकेगा। किसानों को स्वतंत्रता नहीं रहेगी कि वह किसका उत्पादन करे और किसका नहीं। यह सारा काम कंपनियां तय किया करेंगी। इससे खेती व वातावरण में कई तरह की विसंगतियां आ जाएंगी और किसानों की स्वतंत्रता भी जाती रहेगी।
–राकेश सैन
पथिक सन्देश, भगत सिंह चौक, नई रेलवे रोड, जालंधर (पंजाब)
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