|
संक्षिप्त शिव पुराण (गीता प्रेस) की कैलाश संहिता के अध्याय 15-16 में शिव तत्व जगत प्रपंच तथा जीव तत्व के विषय में विवेचना की गई जिसके अनुसार शिव से ईशान उत्पन्न हुए तथा ईशान से पांच मिथुन की उत्पत्ति हुई। पहला मिथुन आकाश, दूसरा मिथुन वायु, तीसरा मिथुन अग्नि, चौथा मिथुन जल तथा पांचवां मिथुन पृथ्वी है। इन पांचों का स्वरूप इस प्रकार बताया गया है- आकाश में एक शब्द ही गुण है। वायु में शब्द, और स्पर्श दो गुण हैं, अग्नि में शब्द, स्पर्श और रूप इन तीनों गुणों की प्रधानता है। जल में शब्द, स्पर्श, रूप और रस ये चार गुण माने गये हैं। जबकि पृथ्वी शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध इन पांच गुणों से सम्पन्न है। उपरोक्त पांचों तत्वों से संबंधित शिव मंदिर दक्षिण भारत में हैं, जिनका विवरण निम्न प्रकार है:-
आकाश
आकाश संबंधित शिव मंदिर का नाम नटराज मंदिर है। यह तमिलनाडु के चिदम्बरम शहर में स्थित है। मुख्य मंदिर में दीक्षितकार पुरोहित पूजा करते हैं। मुख्य मूर्ति नृत्य करते हुए भगवान शिव की है। उनके बायें हाथ पर माता पार्वती की मूर्ति है तथा दाहिनी ओर एक सोने के छोटे से बाक्स में स्फटिक के शिवलिंग रखे रहते हैं, जिनका बाहर लाकर अभिषेक किया जाता है। गर्भगृह में केवल पुजारी प्रवेश करते हैं। यह मंदिर निजी है तथा परिसर में स्थापित सभी मंदिरों के अलग-अलग गोत्र के पुजारी हैं। अलग-अलग बहुत मंदिर हैं। प्रांगण बहुत विशाल एवं मनोहारी है।
पृथ्वी
इस तत्व से संबंधित मंदिर का नाम श्री एकम्बर नाथ जी है तथा कांचीपुरम (तमिलनाडु) में स्थित है। इसके शिवलिंग बालू के माने गये हैं तथा जल आदि से अभिषेक नहीं होता है। शिवलिंग का आकार गोल एवं लगभग ढाई फीट ऊंचा है। केवल तेल का छींटा लगाते हैं और रुद्र पाठ कर पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर में एक आम का वृक्ष है जो लगभग 3500 वर्ष पुराना बताया जाता है। इसके तने को काटकर मंदिर में धरोहर के रूप में रखा गया है। इस मंदिर से कुछ दूरी पर माता पार्वती का मंदिर कामाक्षी देवी के नाम से है तथा विष्णु भगवान का मंदिर भी अलग है जो विष्णु कांची के नाम से प्रसिद्ध है।
अग्नि
अग्नि तत्व से संबंधित शिव मंदिर का नाम श्री अरुणाचलेश्वर है तथा तिरुवन्नामलाई (तमिलनाडु) में स्थित है। बहुत ही विशाल मंदिर है तथा गर्भगृह में अत्यधिक गर्मी है। पूजा-अर्चना के लिए रुपये देकर कार्यालय से पर्ची कटती है। हर प्रकार की पूजा-अर्चना का समय निश्चित है। शिवलिंग का आकार गोलाई लिए हुए चौकोर है तथा ऊंचाई लगभग तीन फीट होगी। शिव मंदिर के अभिषेक की पर्ची से ही माता पार्वती का अभिषेक कराते हैं। शिव एवं पार्वती का श्रृंगार बहुत ही सुंदर, मनोहारी, लुभावना और मन को शांति देने वाला लगता है।
वायु
इस तत्व के मंदिर का नाम श्री कालाहस्ती है, जो आंध्र प्रदेश के जिला चित्तूर के कालाहस्ती में स्थित है। यह मंदिर ऊंचाई वाली पहाड़ी पर बना हुआ है। इस मंदिर में पिंडी की ऊंचाई लगभग चार फीट है तथा पिण्डी पर मकड़ी एवं हाथी की आकृति प्रतीत होती है। दर्शन एवं सभी प्रकार की पूजा-अर्चना की निश्चित समय के अनुसार मंदिर कार्यालय से पर्ची कटती है। अभिषेक के लिए धोती पहनकर जाना होता है। मंदिर का प्रांगण अत्यंत विशाल है तथा बैरिकेटिंग इस प्रकार की गई है कि व्यक्ति लगभग एक किलोमीटर मंदिर के अंदर ही चलता रहता है। काल सर्प दोष की यहां विशेष पूजा होती है। अभिषेक कराने वाले को प्रसाद के रूप में एक वस्त्र एवं अन्य प्रसाद मिलता है। शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ता है अलग शिला रखी है। उसी पर जल चढ़ाते हैं तथा लोहे के स्टैंड पर श्रृंगार कर उसे खिसका कर पिंडी के पास रखते हैं। इस मंदिर में गाय माता की विशेष पूजा होती है। मंदिर में एक स्थान ऐसा है जहां से मंदिर के शिखर के दर्शन होते हैं। कालाहस्ती में रुकने के लिए अच्छी व्यवस्था है। तिरुपति यहां से लगभग 40 किलोमीटर है।
जल
इस तत्व के मंदिर का नाम श्री जम्बूकेश्वर है, जो त्रिची त्रिचिरापल्ली (तमिलनाडु) में स्थित है। परंतु त्रिची के इस मंदिर को जम्बूकेश्वर के नाम से बहुत ही कम लोग जानते हैं। तमिल भाषा होने के कारण भी कठिनाई होती है। यह मंदिर थिरुवनाईकावल में स्थित है जो त्रिची से लगभग छह-सात किलोमीटर है। अत: त्रिची में इस मंदिर में जाने के लिए टैक्सी वाले से यह कहना पड़ता है कि हमें थिरुवनाईकावल के शिव मंदिर में जाना है। मंदिर के अंदर पहुंचकर बड़ी तसल्ली होती है। मंदिर का प्रांगण इतना बड़ा है कि उसकी परिधि 8000 फीट है तथा चारदीवारी बहुत ऊंची एवं चौड़ी बनी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह प्रचलित है कि जब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव शांत मुद्रा में थे तो माता पार्वती उन्हें देखकर हंस पड़ीं जिस पर नाराज होकर भगवान शिव ने उन्हें यह आदेश दिया कि किसी गुप्त स्थान पर मेरी आराधना करो। अत: माता पार्वती ने कावेरी के तट पर जामुन के घने जंगलों में तपस्या की और अपनी दैविक शक्ति से कावेरी के थोड़े से जल को लेकर शिवलिंग बनाया और उसकी पूजा की।
दर्शन एवं पूजा-अर्चना के लिए मंदिर कार्यालय से पर्ची कटती है। अभिषेक कराने के लिए पहले दिन पर्ची कटवानी होती है तथा लगभग 11.30 बजे अभिषेक होता है जिसके लिए विशेष वेशभूषा से हाथी एवं नगाड़ों के साथ पुजारी आते हैं और अभिषेक एवं आरती होती है। इसके बाद गो माता की पूजा करते हैं तथा फिर माता पार्वती के मंदिर जाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं।
कैसे पहुंचें
इन सभी पांचों मंदिरों के दर्शन हेतु केन्द्रीय स्थान चेन्नै है, जहां से आप निम्नक्रम में यात्रा कर सकते हैं। प्रथम दिन-किसी भी स्थान से चेन्नै पहुंचें। सुबह कालाहस्ती के लिए प्रस्थान। 150 किलोमीटर चलकर तीन घंटे में कालाहस्ती। दिन में पूजा एवं अभिषेक एवं रात्रि विश्राम।
दूसरे दिन-सुबह पांच बजे कालाहस्ती से प्रस्थान 180 किलोमीटर चलकर 4 घंटे में कांची पहुंचें। 12 बजे तक मंदिर बंद हो जाते हैं। अत: सर्वप्रथम श्री एकम्बर नाथ जी के दर्शन फिर माता कामाक्षी देवी के दर्शन एवं श्री विष्णु मंदिर। दोपहर एक बजे भोजन एवं प्रस्थान दो बजे। 150 किलोमीटर चलकर तीन घंटे में तिरुवन्नमलाई वहां से अरुणाचलेश्वर के दर्शन एवं अभिषेक रात्रि विश्राम।
तृतीय दिन-प्रस्थान सुबह पांच बजे तथा 250 किलोमीटर चलकर त्रिचीपल्ली (त्रिची) पहुंचें वहां श्री जम्मूकेश्वर के दर्शन। इसके बाद श्री रंग जी का मंदिर एवं अन्य देवी मंदिर। रात्रि में विश्राम।
चतुर्थ दिन-सुबह चार बजे प्रस्थान 250 किमी.चलकर 5 घंटे में चिदम्बरम पहुंचें। पूजा- अर्चना के बाद प्रस्थान एक बजे तथा पांडिचेरी होते हुए 200 किलोमीटर चलकर रात्रि में चेन्नै पहुंचें। द
टिप्पणियाँ