तलाक से 'हलाक' हो रहे हैं पाकिस्तानी जोड़े
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मुजफ्फर हुसैन
खबर है कि पाकिस्तान में एक वर्ष में 25 हजार जोड़ों ने तलाक लिया है। लेकिन इस बीमारी से केवल पाकिस्तान ही ग्रसित नहीं है। सम्पूर्ण मुस्लिम समाज इससे पीड़ित है। मध्यपूर्व और अन्य देशों की सरकारें तलाक के आंकड़े एकत्रित करने में बहुत सक्रिय नहीं होती हैं। हम अपने देश भारत की बात करें तो यहां न्यायालयों में जरूर जानकारी उपलब्ध रहती है, लेकिन काजियों और मुल्लाओं के यहां इस प्रकार का रिकार्ड नहीं मिलता है। भारत सरकार चाहती है कि उसका पंजीकरण होना चाहिए। लेकिन जब विवाह का पंजीकरण ही नहीं होता है तो फिर तलाक की चिंता कौन करने वाला है? ईश्वर ने स्त्री और पुरुष का जोड़ा इसीलिए बनाया है कि युवा अवस्था तक पहुंचने के पश्चात् उनका विवाह सम्पन्न कर दिया जाए और फिर उनकी संतानों की उत्पत्ति का क्रम जारी रहे। इसलिए दुनिया का कोई भी समाज हो वहां विवाह एक अनिवार्य संस्कार है। लेकिन सभी पुरुष स्त्रियों के स्वभाव समान नहीं होते हैं। इसलिए उनमें जो विवाद पैदा होते हैं उनका अंत करने के लिए तलाक की व्यवस्था की गई। अनेक समाज आज भी ऐसे हैं जिनमें तलाक की प्रक्रिया नहीं है। उनका मानना है कि पति-पत्नी का जोड़ा तो स्वर्ग में ही तय हो जाता है। केवल उसकी पूर्ति धरती पर आने के पश्चात् होती है। पर दुनिया में शायद ही कोई समाज होगा जहां अब तलाक की व्यवस्था न हो। लेकिन इस्लाम में तलाक की विधि सरल होने से इसकी संख्या सबसे अधिक है। एक स्त्री और एक पुरुष यह विवाह के लिए एक आदर्श व्यवस्था है। लेकिन इस्लाम में एक पति को एक साथ चार पत्नी रखने का अधिकार है। इसलिए जब किसी भी पत्नी को छोड़ना हो तो तलाक की आवश्यकता पड़ती है। विवाहित महिलाओं की संख्या अधिक होने से यहां तलाक की संख्या भी बहुत बड़ी होती है।
स्त्रियों का शोषण
दुनिया के जितने मुस्लिम राष्ट्र हैं वहां तलाक और विवाह के कायदे कानून हैं, लेकिन उन कानूनों का बहुत सख्ती से पालन होता हो ऐसा नहीं है। इसमें भारत और पाकिस्तान दोनों अग्रणी हैं। इस्लामी शरीयत और इस्लामी (फिकाह) कायदे कानून में तलाक देने के संबंध में अत्यंत कठोर नियम हैं। विवाह सूत्र में बंधने के लिए निकाह की व्यवस्था है। विवाह के समय लड़की की स्वीकृति अत्यंत अनिवार्य है। साथ ही उसे पति से मेहर लेने का अधिकार होता है। मेहर एक प्रकार से उसके लिए सुरक्षा निधि है। लेकिन व्यावसायिक काजी और लालची मुल्ला इस मामले में लड़की का बड़ा शोषण करते हैं। लड़के ने विवाह के समय यदि मेहर नहीं चुकाई है तो उसे तलाक के समय अनिवार्य रूप से यह धनराशि अपनी पूर्व पत्नी को लौटानी पड़ती है। मेहर मिल जाने की स्थिति में ही तलाक की प्रक्रिया पूर्ण मानी जाती है। पाठकों को यह भी बता दें कि तलाक देने का अधिकार जिस प्रकार से पुरुष को है, उसी प्रकार से तलाक लेने का अधिकार महिलाओं को भी है। पुरुष जब किसी महिला को अपने विवाहित जीवन से अलग करता है तो उसे 'तलाक' कहा जाता है। लेकिन यदि महिला इस संबंध को विच्छेद करना चाहती है तो उसे 'खुला' कहा जाता है।
विश्व में तलाक के मामले में पाकिस्तान सबसे अग्रणी है। सम्पूर्ण पाकिस्तान की बात छोड़िये पिछले चार वर्षों में केवल कराची नगर की 11 फैमिली कोर्ट में तलाक और खुला की बात करें तो पता चलता है कि तलाक के 75 हजार मामले निबंधित हुए हैं। पाकिस्तानी दैनिक 'नवाए वक्त' का कहना है कि कराची स्थित फैमिली कोर्ट में प्रतिदिन 'तलाक' और 'खुला' के 45 मामले दर्ज होते हैं। निजी तौर पर इन मामलों का कोई लेखा जोखा नहीं होता है। इसलिए उनकी संख्या कितनी होगी इसका अनुमान लगाना कठिन है। जनवरी 2005 से जनवरी 2008 तक फैमिली कोर्ट में तलाक और खुला के 72,900 मामले दर्ज हुए । इनमें सबसे अधिक कराची के जिला शरकी में तलाक और खुला के मामले हुए। इसी प्रकार मुख्य नगर के तलाक संबंधी मामले सुलझाने वाली कमेटियों में तलाक और खुला के कुल 75 हजार 54 मामले हुए जिसका वार्षिक औसत 18,764 है। जबकि इसमें 20 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जो निबंधित हुए ही नहीं। इस प्रकार के मामले दो परिवारों के बीच में ही रहते हैं। इससे सम्पूर्ण पाकिस्तान में तलाक की स्थिति कितनी भयावह है इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
अहं का टकराव
इस समस्या के विश्लेषकों का कहना है कि महिला स्वतंत्रता एवं प्रगतिशील विचारों की मुहिम ने इस प्रतिशत में भारी वृद्धि की है। पाकिस्तान एक रूढ़िवादी देश है इसलिए आधुनिकता के नाम पर की जाने वाली कार्रवाई इस मामले में लाभदायी नहीं होती है। प्रगतिशीलता के नाम पर अब संयुक्त परिवार व्यवस्था भंग होती जा रही है। स्वयं को समाज में स्वतंत्र एवं आधुनिक विचारधारा के पैरोकार सिद्ध करने वाले युगल दोनों के बीच तनाव की स्थिति में आने के पश्चात् धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ते हैं। दोनों ही अहं की शांति के लिए केवल तलाक, तलाक और तलाक को ही प्राथमिकता देते हैं। पाकिस्तान में प्रेम विवाह को प्रगतिशीलता की निशानी माना जाता है। कई मां-बाप अपनी बेटियों के विवाह के लिए इसे आसान रास्ता भी समझते हैं। लेकिन कुछ ही समय बाद जब सम्बंध विच्छेद की नौबत आती है तो मध्यस्थता करने वाला कोई नहीं रहता है। मां-बाप तो पहले ही दूर हो गए। सगे-संबंधियों से अपनी युवा उमंग के नशे में दूर होते गए। इसलिए बीच बचाव करने और समझाने के लिए कौन आए? दोनों ही नौसिखिया होते हैं जिसका परिणाम केवल तलाक के रूप में ही देखने को मिलता है। संयुक्त परिवार व्यवस्था में सेंध लगाने के लिए फैमिली कोर्ट एक्ट 2005 की धारा 4 और 10 के तहत तलाक प्रक्रिया को आसान कर दिया गया है। इसके विपरीत मानवीय एवं पारिवारिक मामलों से संबंध रखने वाले कानून इतने पेचीदा हैं कि उसमें शीघ्र न्याय मिलना बड़ा कठिन होता है। जबकि तलाक के मामले को आधुनिक विचारों के दौर में अत्यंत सरल बना दिया गया है। इसलिए आजादी और तुरंत न्याय के नतीजे में सैकड़ों महिलाएं प्रतिदिन पारिवारिक बंधनों से मुक्त हो रही हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि तलाक, जो एक अनचाहा कृत्य है, वह सरल बनता जा रहा है।
घृणास्पद कृत्य
पाकिस्तान में तलाक तो समस्या है ही लेकिन उससे भी बढ़कर कोई घृणास्पद कृत्य है तो वह है 'हलाला'। पति-पत्नी में कुछ बातों को लेकर भावुकता में भी तलाक हो जाता है। किसी एक की गलती के कारण जल्दबाजी में पति जब तलाक तलाक तलाक कहकर उससे सम्बंध विच्छेद कर लेता है तब समस्या अत्यंत विकट हो जाती है। क्रोध ठंडा पड़ जाने के बाद पति सोचने लगता है कि उसने यह क्या कर दिया? तलाक के बाद पत्नी को 'इद्दत' की अवधि का पालन करना पड़ता है। जिसकी अवधि तीन माह और दस दिन की होती है। कहीं कहीं 'इद्दत' की अवधि चार महीना दस दिन भी होती है। इस अवधि में यह पता लग जाता है कि जिस पति से उसने तलाक लिया है अथवा पति ने दिया है उससे कोई संतान उसके गर्भ में नहीं पल रही है। गर्भधारण नहीं हुआ है यह पता लग जाने के बाद भी पहले वाले पति पत्नी निकाह पढ़कर पुन: एक नहीं हो सकते हैं। पत्नी को किसी और व्यक्ति से निकाह पढ़ना पड़ता है। उसके साथ वह पत्नी बनकर रहती है। उक्त महिला अपने दूसरे पति से गर्भवती नहीं हुई है इस हेतु उसे पुन: तीन माह दस दिन की इद्दत का पालन करना पड़ता है। जब यह सिद्ध हो जाता है कि वह दूसरे पति के साथ रहने के बावजूद गर्भवती नहीं हुई है इसी स्थिति में वह पहले वाले पति से पुन: निकाह कर सकती है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को 'हलाला' की संज्ञा दी जाती है। यह स्थिति पति और पत्नी को कितनी अपमानित करने वाली है और वे किस मानसिक पीड़ा से गुजरते होंगे इसकी कल्पना से ही शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बहुत सारे मुस्लिम सम्प्रदाय ऐसे भी हैं जिनमें इस प्रक्रिया को मान्य नहीं किया गया है। पति-पत्नी का विवाद सुलझ जाने और दोनों के पश्चाताप के पश्चात भी वे निकाह पढ़ाकर पुन: पति-पत्नी बन सकते हैं। हलाला के संबंध में प्रसिद्ध लेखक अरुण शौरी की एक पुस्तक है। जिसे पढ़ लेने के पश्चात् पता लगता है कि दिल्ली और अन्य बड़े नगरों में मुल्लाओं की एक ऐसी टीम है जो इस प्रकार के हलाला करके पति-पत्नी को पुन: अपना परिवार रचने का मार्ग प्रशस्त कर देते हैं। लेकिन कुछ हलाला करने वाले मुल्ला ऐसे होते हैं कि जिस महिला के साथ हलाला किया है उसे तलाक देने से इनकार कर देते हैं। अथवा तलाक के पूर्व पति से भारी भरकम पैसा ऐंठने में कोई कसर नहीं रखते। जिस पति पत्नी पर हलाला करने की नौबत आती होगी वे कितने अपमानित होते होंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
बेचारे बच्चे
पाकिस्तान के समाज शास्त्रियों का कहना है कि तलाक होने का प्रमुख कारण पति-पत्नी का घरेलू विवाद है। संयुक्त परिवार में यदि पति पत्नी को एकांत नहीं मिलता है तो अनेक अड़चनें और शंकाएं मन में घर कर लेती हैं। इसलिए विवाहित युगल के लिए ऐसा वातावरण होना चाहिए कि वे सरलता से मिल सकें ताकि कोई मतभेद उभरता है तो शीघ्र ही उसका निराकरण हो सके। पाकिस्तान में तलाक का मुख्य कारण नशा और सट्टा है। पति के आचार विचार पत्नी को दुखी कर देते हैं। उसके बालकों का जब भरण-पोषण ढंग से नहीं होता है तो लाचारी में बेचारी मां के पास तलाक लेने के अतिरिक्त कोई मार्ग शेष नहीं रहता है। तलाक के कारण मां को सबसे अधिक कष्ट भुगतना पड़ता है। मां के पश्चात् इस दूषण के शिकार बेचारे बच्चे होते हैं, जिन्हें समय पर न तो भोजन मिलता है और न ही शिक्षा। अनपढ़ महिला छोटा बड़ा काम करके अपने परिवार को पालती है लेकिन बेचारे बच्चों को कोई देखने वाला नहीं होता है। इस प्रकार के बच्चे, जो दोनों के लिए अनचाहे बन जाते हैं, का जीवन कितना कष्टमयी होता होगा यह कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है।
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