पाकिस्तान की जिहादी मानसिकता?
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क्या प्रधानमंत्री की सद्भावना यात्रा से समाप्त होगी
वार्ता के लिए उतावले हो रहे प्रधानमंत्री की
पाकिस्तान यात्रा का औचित्य?
प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह की संभावित पाकिस्तान यात्रा की हो रही तैयारियों से यह निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है कि पाकिस्तान की जन्मजात भारत विरोधी जिहादी मानसिकता से भारत सरकार ने अभी तक कुछ नहीं सीखा। प्रधानमंत्री सहित पूरी सरकार इस दुविधा में है कि इस यात्रा के दौरान पाकिस्तान सरकार के साथ होने वाली बातचीत से दोनों देशों के संबंध सुधरेंगे या नहीं? जब तक पाकिस्तान की धरती पर भारत विरोधी आतंकी गतिविधियां समाप्त नहीं हो जातीं तब तक इस तरह की सद्भावना यात्रा अथवा वार्तालाप का कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आ सकता। यह बात तो बार बार दोहराई जाती है कि पाकिस्तान द्वारा 26/11 के मुम्बई नरसंहार के जिम्मेदार आतंकियों पर कार्रवाई करने के बाद ही इस तरह की यात्रा का कोई औचित्य होगा। सरकार ने इस प्रकार के आश्वासन देश की जनता को एक बार नहीं, कई बार दिए हैं। फिर यह दुविधा क्यों?
प्राप्त समाचारों के अनुसार सरकार एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में ही प्रधानमंत्री की संभावित पाकिस्तान यात्रा पर मतैक्य नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि यह यात्रा देशवासियों के साथ विश्वासघात करने जैसी होगी। आखिर कब तक भारत सरकार पाकिस्तान के झांसे में आकर अपने देश की सुरक्षा और स्वाभिमान को दांव पर लगाती रहेगी। पाकिस्तान की जिन सरकारों के साथ वार्ताएं की जाती हैं उनकी रचना और अस्तित्व का आधार ही भारत का विरोध है। पाकिस्तान की सरकारों पर सदैव वहां की फौज, कट्टरवादी मजहबी नेताओं, आईएसआई और यहां तक कि लश्करे तोएबा जैसे जिहादी संगठनों का नियंत्रण है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री अपने दिमाग का इस्तेमाल फौजी अधिकारियों की इच्छानुसार ही करते हैं। पाकिस्तान की सेना, सरकार, मुल्ला मौलवी, आतंकी कमांडर और विभिन्न राजनीतिक दल आपस में भले ही जूतम-पैजार में व्यस्त रहते हों, परंतु यह सभी भारत के विरोध में एकजुट रहते हैं। यही वजह है कि भारत सरकार की सद्भावनाएं पाकिस्तान सरकार की दुर्भावनाओं के आगे बौनी पड़ जाती हैं।
डा.मनमोहन सिंह को भ्रमित करते हैं
प्रगतिशील कांग्रेसी सलाहकार
पाकिस्तान के भारत विरोधी इरादों को जानते हुए भी जो लोग प्रधानमंत्री की पाकिस्तान यात्रा का समर्थन कर रहे हैं वे या तो आतंकवादियों के साथ सहानुभूति रखते हैं या फिर पाकिस्तान के गुनाहों को भूल जाने की विदेश नीति के झंडाबरदार हैं। देश के गृहमंत्री ने पिछले दिनों इसी नीति के अंतर्गत कहा है कि भारत को मुम्बई में हुए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमलों को भूल जाना चाहिए और आगे के सद्भावना मार्ग पर चलना चाहिए। सर्वविदित है कि पाकिस्तान में सक्रिय लश्करे तोएबा के आतंकियों की साजिश और योजना के तहत 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई के विश्व प्रसिद्ध ताज होटल में हमला किया गया था जिसमें 166 लोग मारे गए थे। यह सबसे बड़ा नरसंहार था जिसने पूरे देश सहित विश्व को हिलाकर रख दिया था। इस जिहादी हमले के मुख्य सूत्रधार जमात उद दावा के सर्वेसर्वा हाफिज मुहम्मद सईद और लश्करे तोएबा के जकीर लखवी न केवल पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं, अपितु वहां की सरकार उन्हें कानूनी संरक्षण देकर उनका बचाव भी कर रही है, यही है पाकिस्तान की जिहादी चाल।
वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और राज्यसभा के सदस्य मणिशंकर अय्यर ने भी प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह से आग्रह किया है कि वे पाकिस्तान की यात्रा पर जरूर जाएं। मणिशंकर के अनुसार इससे दोनों देशों में संबंधों को सुधारने का रास्ता सुगम हो जाएगा। यह वही मणिशंकर हैं जो अपने कथित वामपंथी रूझान के कारण हिंसक नक्सलवादियों और देशद्रोही जिहादी आतंकियों के साथ बातचीत का समर्थन करते रहते हैं। सभी जानते हैं कि अंदमान कारावास में स्वातंत्र्य सेनानी वीर सावरकर की प्रतिमा का विरोध करने वाले मणिशंकर अय्यर ने कभी भी अफजल और कसाब की फांसी का मुद्दा नहीं उठाया। वास्तव में हमारे तथाकथित भोले-भाले प्रधानमंत्री इसी प्रकार के सलाहकारों एवं शुभचिंतकों के प्रभाव में आकर इस तरह के बयान अथवा चर्चा छेड़ देते हैं जिससे देश के शत्रुओं को ही बल मिलता है। गत वर्ष डा. मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी को 'शांति का मसीहा' बता दिया जिनके कार्यकाल में मुम्बई में 26/11 के आतंकी हमले को अंजाम दिया गया था। उन्हीं गिलानी ने कई बार सईद और लखवी को क्लीन चिट दी थी।
भारत को तोड़ने के इरादे पाल रहा है
आतंकवादी पड़ोसी देश
पिछले चार वर्षों से लगातार भारत सरकार पाकिस्तान पर दबाव डालने की कोशिश कर रही है कि वह 26/11 की आतंकी हिंसा के कसूरवारों पर शिंकजा कसे। परन्तु पाकिस्तान अपनी भारत विरोधी जिहादी मानसिकता पर कायम रहकर उलटा भारत पर ही गलत सबूत पेश करने के आरोप लगाता जा रहा है। भारत ने अब तक ठोस सबूतों के साथ डोजियर पाकिस्तान को भेजे हैं। आतंकवाद के संरक्षक पाकिस्तान ने इन सभी को रद्दी की टोकरी में फेंक कर अपनी मंशा का परिचय दिया है। 26/11 हमले के एक और सूत्रधार जाबिमुद्दीन अंसारी को जब सऊदी अरब से भारत लाने की प्रक्रिया चली तो भी पाकिस्तान ने इस कानूनी प्रत्यार्पण का जमकर विरोध किया था। पाकिस्तान की आईएसआई और लश्करे तोएबा के बीच साठगांठ पर भी हमारा यह पड़ोसी देश सदैव आंखें मूंदें रहता है। पिछले लगभग तीन दशकों में भारत में जितने भी आतंकी विस्फोट हुए हैं वे सभी आईएसआई की योजना और इशारे से ही सम्पन्न हुए। यह हिंसक कुकृत्य आज तक जारी है। भारत द्वारा सबूतों के ढेर लगा देने के बावजूद पाकिस्तान की गिरगिटी नजरों ने इन्हें देखने से ही इनकार कर दिया। पाकिस्तान की यही नीति और नीयत है।
आतंकवादी देश पाकिस्तान की विश्व की आंखों में धूल झोंकने वाली विदेश नीति का एक ताजा उदाहरण सामने आया है। एक ओर पाकिस्तान ने भारत के प्रधानमंत्री को यात्रा का निमंत्रण दिया है तो दूसरी ओर उसने कश्मीर में सक्रिय जिहादी आतंक समर्थक हुर्रियत कांफ्रेंस तथा अन्य अलगाववादी नेताओं को पाकिस्तान आकर कश्मीर समस्या पर बातचीत करने का न्योता दिया है। भारत सरकार ने हमेशा की तरह इस बार भी हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तान जाने की इजाजत दे दी है। कहा जा रहा है कि इससे कश्मीर समस्या सुलझाने का मार्ग सुलभ होगा। कितनी बड़ी गलतफहमी है यह। जो हुर्रियत नेता पाकिस्तान के इशारे और मदद से कश्मीर में आजादी की जंग लड़ रहे हैं उनसे किसी रचनात्मक वार्ता की उम्मीद करना अपने आपको गफलत में रखने के समान होगा। हवाला के जरिए अरब देशों से धन लेकर आतंकवाद को कश्मीर घाटी में फैलाने वाले यह हुर्रियत नेता भारत के संविधान, संसद और सेना के विरुद्ध जिहाद कर रहे हैं, मानो पाकिस्तान के एजेंट हैं यह।
पाकिस्तान की कटुतापूर्ण विदेश नीति के मद्देनजर
देशहित में लें फैसला
पाकिस्तान के जिहादी चरित्र को सारी दुनिया ने समझ लिया है। अपने स्वार्थों के लिए पाकिस्तान को आर्थिक और सैनिक सहायता देने वाले अमरीका की आंखें भी उस समय खुल गईं जब ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एक शहर एबटाबाद की सैनिक छावनी के निकट एक सुरक्षित किले नुमा भवन में पाया गया। अमरीका यह भी जान चुका है कि जिस तालिबानी ताकत से वह लड़ रहा है उसकी साठगांठ भी पाकिस्तान की सेना और आईएसआई के साथ है। पाकिस्तान में चलने वाली आतंकवाद की फैक्ट्रियों की जानकारी भी सारे संसार को है। पहले पंजाब और अब कश्मीर में जो जिहादी आतंकवाद चल रहा है वह पाकिस्तान का ही भारत में सैनिक हस्तक्षेप है। यह भी सभी जानते हैं कि पाकिस्तान भारत सहित पूरे संसार की आंखों में धूल झोंक कर इस सैनिक हस्तक्षेप को घटाने के लिए तैयार नहीं है। भारत में आतंकी जिहाद का झंडा उठाने वाले इंडियन मुजाहिद्दीन और सिमी जैसे इस्लामिक संगठनों के तार आईएसआई के साथ जुड़े हुए हैं। पिछले दो वर्षों में दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पकड़े गए प्राय: सभी आतंकी पाकिस्तान के नागरिक थे। यही सब कुछ पाकिस्तान की भारत नीति है।
डा.मनमोहन सिंह को पाकिस्तान की सद्भावना यात्रा की सलाह देने वाले मणिशंकर अय्यर जैसे कांग्रेसी नेता और कुलदीप नैय्यर जैसे प्रगतिशील पत्रकार क्या पाकिस्तान के भारत विरोधी व्यवहार को नहीं जानते? क्या डा.मनमोहन सिंह पाकिस्तान में जाकर वहां की सरकार के साथ इन मुद्दों को उठा सकेंगे? या फिर शर्म अल शेख और भूटान में हुई वार्ताओं की तरह पाकिस्तान में जाकर भी घुटने टेके जाएंगे? भारत के प्रधानमंत्री को अपने देश की जनता को दिए गए आश्वासनों पर कायम रहते हुए दो टूक फैसला लेना चाहिए कि जब तक पाकिस्तान अपनी भारत विरोधी जिहादी मानसिकता को छोड़ने के ठोस सबूत नहीं देता उसके साथ न तो कोई वार्तालाप होगा और न ही भारत ऐसी किसी सद्भावना यात्रा के लिए झांसे में आएगा जिससे देश की भीतरी और बाह्य सुरक्षा ही खतरे में पड़ जाए।
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