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संत कबीर ने कहा था-
कबीरा जब हम पैदा भए, जग हंसे हम रोये।
ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोये।।
उक्त पंक्तियां बालासाहब ठाकरे पर पूरी तरह चरितार्थ होती प्रतीत होती हैं। क्या नेता क्या अभिनेता, क्या राजा क्या रंक सबकी आंखें उस दिन नम थीं। महाराष्ट्र के सबसे सशक्त व प्रभावशाली जननायक के निधन पर मानो देश भर में शोक व्याप्त हो गया था। जीवन तो जीवन, इस महानायक की अंतिम यात्रा भी ऐसी कि करोड़ों लोगों को एक संकल्प के साथ जीवन जीने की प्रेरणा दे गयी। वस्तुत: बाल ठाकरे नाम ही पर्यायवाची बन गया था एक संकल्प का, बाल ठाकरे नाम था हिन्दुत्व की पहचान का, मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए संकल्पित एक योद्धा का। बाल ठाकरे नाम था शेर के समान निर्भीक एक सेनापति का, जिसकी शिव सेना ने भारतीय राजनीति में 'शिव शाही' यानी हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने का सपना देखा। ऐसे ऐतिहासिक और विलक्षण व्यक्तित्व ने जब इस संसार से विदा ली तो उनकी विदाई ऐतिहासिक होनी ही थी।
मायानगरी तो 15 नवम्बर से ही व्याकुल थी जबसे यह खबर चर्चा में आने लगी थी कि मुम्बई के बेताज बादशाह कहे जाने वाले बालासाहब ठाकरे गंभीर रूप से बीमार हैं। फिल्मों की शूटिंग रुक गयीं, दीपावली पर्व के अवसर पर आयोजित होने वाले मिलन और रंगारंग कार्यक्रम टाल दिए गए। फिर लगा कि दवा और दुआ का असर हो रहा है तो कुछ चैन की सांस ली। पर 17 नवम्बर की दोपहर बाद 3 बजकर 33 मिनट पर बाला साहब ठाकरे ने अंतिम सांस ली और अपने आवास मातोश्री के भीतर-बाहर जुटे हजारों परिजनों-समर्थकों-सैनिकों को रोता-बिलखता छोड़ गए। प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता सहित राजनीतिक दलों की श्रद्धाञ्जलियों का तांता लग गया तो फिल्म इंडस्ट्री के 'शहंशाह' अभिताभ बच्चन से लेकर भारत के सबसे धनाढ्य परिवार के सदस्य अनिल अंबानी भी श्रद्धाञ्जलि देने पहुंचे। अपनी बढ़ती आयु के कष्टों का परवाह न करते हुए 'ट्रेजडी किंग' दिलीप कुमार, मनोज कुमार, जितेन्द्र सरीखे गुजरे जमाने के अभिनेता भी पहुंचे तो नए जमाने के सलमान और संजय दत्त सहित अधिकांश कलाकार भी। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर भी अपने 'बड़े भाई' के निधन पर द्रवित हो गयीं।
18 नवम्बर को प्रात:मातोश्री से प्रारंभ हुई बालासाहब ठाकरे की अंतिम यात्रा उनके व्यक्तित्व के समान वैशिष्ट्य लिए हुए थी। 'सेना भवन' से होते हुए ऐतिहासिक शिवाजी पार्क तक की उनकी अंतिम यात्रा के दौरान 20 लाख से भी अधिक लोगों ने उनके अंतिम दर्शन किए। पूरी की पूरी मुम्बई बिना किसी आह्वान के अपने इस नेता के शोक में बंद थी। जिस मार्ग से अंतिम यात्रा निकली उन पर तिल रखने भर की जगह नहीं। सब तरफ नम आंखें, श्रद्धा से जुड़े हाथ और उनमें चढ़ाने के लिए फूलों की कुछ पंखुड़ियां। शिवाजी पार्क कर श्रद्धाञ्जलि सभा में भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी, विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज, भाजपा के अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी उपस्थित थे तो अन्य राजनीतिक दलों के वरिष्ठ राजनेता, फिल्म अभिनेता और उद्योग जगत की प्रमुख हस्तियां भी। बालासाहब ठाकरे के पुत्र और शिव सेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने उनकी पार्थिव देह को पंचतत्व में विलीन करने हेतु मुखाग्नि दी तो शिवाजी पार्क 'बाल ठाकरे अमर रहें' से गुंजायमान हो उठा।
बालठाकरे अमर तो रहेंगे ही। हिन्दुत्व और देशभक्ति की राजनीति, विशेषकर महाराष्ट्र की राजनीति के लिए उन्होंने जो कार्य किए उन्हें इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में दर्ज किया ही जाएगा। 23 जनवरी, 1926 को पुणे के केशव सीताराम ठाकरे के घर जन्मे बाल ठाकरे मूलत: एक लेखक और व्यंग्य चित्रकार थे। पहले वे 'फ्री प्रेस जर्नल' से जुड़े, फिर खुद की व्यंग्य चित्र पत्रिका 'मार्मिक' निकाली। बाद में सामना (मराठी) और दोपहर का सामना (हिन्दी) नामक समाचार पत्रों की स्थापना व उनका सम्पादन किया। अपने पिता से विरासत में मिले सामाजिक कार्यों को पूर्ण करने के लिए उन्होंने 1966 में शिवाजी पार्क में शिव सेना के गठन की घोषणा की तो लगा एक और संगठन। पर यह संगठन अलग था, इसलिए अलग क्योंकि बाल ठाकरे ने अपने जुझारू नेतृत्व से इसे एक ऐसा तेवर प्रदान किया जो अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा के लिए समझौतावादी रुख नहीं अपनाता, जैसा कि प्राय: राजनेता व राजनीतिक दल किया करते हैं। आतंकवादियों के सरपरस्त देश पाकिस्तान का विरोध हो, पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के मुम्बई आने से पहले वानखेड़े मैदान की पिच खोदने का उदाहरण हो या बाबरी ढांचे के गिरने पर 'गर्व होने' का पहला वक्तव्य-बाल ठाकरे की स्पष्टवादिता ने ही उन्हें भारतीय राजनीति और मराठी समाज में एक ऊंचे स्थान पर पहुंचाया। महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना गठबंधन सरकार के सूत्रधार भी वही थे। सामना में लिखे उनके सम्पादकीय अधिकांशत: चर्चा और विवाद का विषय बने, जिसकी उन्होंने कभी परवाह नहीं की। हिन्दुत्व के प्रति बज्र के समान संकल्पित ऐसे सेनानायक बालासाहब ठाकरे का जाना राजनीति में एक शून्य पैदा कर गया है।
स्पष्ट वक्तृत्व, कठोर कर्तत्व, साहसी नेतृत्व
–मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, रा.स्व.संघ
शिवसेना प्रमुख आदरणीय श्री बालासाहब ठाकरे के निधन से एक स्पष्ट वक्तृत्व, कठोर कर्तृत्व, साहसी नेतृत्व ऐसे अनेक गुणविशेष रखने वाला, जनमानस पर पकड़ रखने वाला और असंख्य लोगों को अपना व्यक्तिगत आधार लगने वाला हिन्दुत्वनिष्ठ वरिष्ठ नेता काल ने हमसे छीन लिया है। मात्र शिवसेना के लिए ही नहीं, अपितु महाराष्ट्र और पूरे देश के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में एक अपूरणीय क्षति हुई है। विशेषत: इस समय बालासाहब जैसे अनुभवी तथा परिपक्व नेतृत्व की कमी सभी को खलती रहेगी। सत्य का आग्रह न छोड़ते हुए हिम्मत से, स्पष्टता से मन–वचन–कर्म पूर्वक आचरण करने का उनका उदाहरण हम सभी के लिए अनुकरणीय है। ऐसा आचरण ही उनको सच्ची श्रद्धाञ्जलि होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से उनकी पवित्र स्मृति को हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए उनकी प्रखर हिन्दुत्व की परम्परा को आगे चलाने की शक्ति और धैर्य सभी सज्जनों को प्राप्त हो, ऐसी ईश्वरचरण में प्रार्थना करता हूं।
दूषित राजनीतिक प्रवाह के विरुद्ध एक सच्चे योद्धा
–अशोक सिंहल, संरक्षक, विश्व हिन्दू परिषद
बालासाहब ठाकरे ने राजनीति के दूषित प्रवाह के विरुद्ध आवाज उठाई। इससे मुम्बई में जड़ जमाए बैठे इस्लामी माफियाओं का वर्चस्व टूट गया और फिर इसका प्रतिफल वहां की राजनीति में भी दिखाई दिया। छत्रपति शिवाजी महाराज, उनकी अजेय हिन्दू शक्ति और राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक श्री बालासाहब ठाकरे ने प्रखरता से शिवसेना को एक हिन्दू दल के नाते पहचान दिलाई। यद्यपि इस कारण उन्हें अन्य दलों का कोपभाजन बनना पड़ा, पर उन्होंने कदम पीछे नहीं हटाये। श्रीराम मंदिर आंदोलन तथा बाबरी ढांचे के विध्वंस के समय वही एकमात्र ऐसे हिन्दू नेता थे जिन्होंने साहसपूर्वक इसके लिए देश की हिन्दू जनता और अपने शिवसैनिकों को बधाई दी। बालासाहब ठाकरे का विश्व हिन्दू परिषद के विचार और कार्यक्रमों के प्रति सदा समर्थन और सहयोग का भाव रहता था। उनसे मिलने पर हर बार मुझमें नई ऊर्जा का संचार होता था। उनका जाना मेरे लिए बड़े भाई समान अविभावक का जाना है। उनका निधन मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है।
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