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चेन्नै में केलम्बक्कम स्थित श्री शिव शंकर बाबा आश्रम में गत 2-4 नवम्बर, 2012 को रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक सम्पन्न हुई। संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने तमिल मंत्रोच्चार के बीच पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलित करके बैठक का शुभारम्भ किया। उनके साथ सरकार्यवाह श्री सुरेश भैयाजी जोशी भी उपस्थित थे। अलग–अलग सत्रों में 3 दिन चली इस बैठक में देश के समक्ष उपस्थित महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहन चिन्तन–मनन हुआ। बैठक में देशभर से आए 400 प्रतिनिधियों के बीच विशद् विचार–विनिमय के बाद दो प्रस्ताव पारित किये गये, 1. असम की हिंसा तथा बंगलादेशी घुसपैठियों की राष्ट्रव्यापी चुनौती, तथा 2. चीन के संदर्भ में समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की आवश्यकता। बैठक आरंभ होने के दिन सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले ने एक प्रेस वार्ता को संबोधित किया। इस अवसर पर उनके साथ अ.भा. प्रचार प्रमुख श्री मनमोहन वैद्य भी उपस्थित थे।
4 नवम्बर को बैठक के समापन के बाद सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने एक प्रेस वार्ता में बैठक में चर्चा में आए विभिन्न विषयों के बारे में जानकारी दी। उनके साथ संघ के दक्षिण क्षेत्र के क्षेत्र संघचालक श्री वण्णियाराजन, संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डा. मनमोहन वैद्य और अ.भा. सह प्रचार प्रमुख श्री नन्द कुमार भी उपस्थित थे। श्री भैयाजी जोशी ने बताया कि बैठक में साल भर के कार्य की समीक्षा के साथ ही वर्तमान परिस्थितियों और अगले वर्ष हेतु योजना पर चर्चा हुई। संघ के विशद् कार्य की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि संघ की इस समय देश के विभिन्न स्थानों पर 52 हजार शाखाएं चल रही हैं। इनमें से 40 हजार दैनिक शाखाएं हैं और 12 हजार साप्ताहिक अथवा मासिक। कार्य के विस्तार का सतत् प्रयास जारी है, जिसके फलस्वरूप इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में 3 हजार दैनिक शाखाओं की वृद्धि हुई है। दैनिक शाखाओं में 75 प्रतिशत से अधिक उपस्थिति 45 वर्ष से नीचे की आयु के स्वयंसेवकों की है और इनमें से करीब 20 हजार 25 वर्ष से कम आयु के हैं। कालेज के विद्यार्थियों पर विशेष ध्यान दिया गया है। वर्तमान में 11 हजार कालेजों में करीब एक हजार से ज्यादा गतिविधियां चलती हैं। आईटी क्षेत्र से जुड़े युवाओं में विशेष अभियान चल रहा है। पुणे, बंगलूरू और नोएडा जैसे आईटी उद्यमों की बहुलता वाले करीब पांच सौ स्थानों पर ऐसे युवाओं की साप्ताहिक अथवा दैनिक शाखा लगाई जाती है।
उन्होंने आगे कहा कि संघ के स्वयंसेवक सुदूर ग्रामों से लेकर वनवासी क्षेत्रों, शहरों और सेवा बस्तियों में विभिन्न सेवा प्रकल्पों से जुड़े हैं। संघ द्वारा 1,50,000 से ज्यादा सेवा प्रकल्प चलाए जा रहे हैं। पिछले 2-3 वर्ष के दौरान ग्रामीण विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। 15 राज्यों में 250 गांवों को गोद लेकर उनमें स्वास्थ्य, कृषि, स्वावलंबन और सामाजिक सौहार्द के उन्नयन हेतु कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसमें संदेह नहीं कि निकट भविष्य में इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे। इसी प्रकार गोसंरक्षण का कार्यक्रम आरंभ किया गया। संतों द्वारा आरंभ किये गोसंरक्षण के इस अभियान विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा, जिसमें रा.स्व.संघ के कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया, के सुखद परिणाम प्राप्त हुए। 600 नई गोशालाएं/अनुसंधान इकाइयां आरंभ हुई हैं। चेन्नै बैठक में जो दो प्रस्ताव पारित किये गये उनके संपादित अंश यहां दिये जा रहे हैं।
प्रस्ताव क्र. 1
असम की हिंसा तथा बंगलादेशी घुसपैठियों की राष्ट्रव्यापी चुनौती
जुलाई 2012 में असम के कोकराझार, चिरांग व धुबरी जिलों में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के कारण उत्पन्न अशांति और उसके पश्चात देश के विभिन्न नगरों में हुए हिंसक प्रदर्शनों तथा देश के विभिन्न भागों में शांति के साथ रह रहे उत्तर-पूर्वांचल के लोगों के मध्य षड्यंत्रपूर्वक भय और आतंक फैलाकर उन्हें वहां से पलायन के लिए विवश करने जैसे सभी कृत्यों की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल घोर निंदा करता है तथा इन सभी घटनाओं को देश के लिए एक गंभीर चुनौती मानता है। असम व निकटवर्ती क्षेत्रों में अनवरत बढ़ रही घुसपैठ से एक गंभीर संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है।
दूरगामी दुष्प्रभाव
सन 2003 में केंद्र एवं प्रदेश सरकार के साथ हुए एक समझौते के परिणामस्वरूप बने बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट के चारों जिलों में भी बड़ी संख्या में घुसपैठिये बस गये हैं। इन घुसपैठियों के कारण वहां के सामाजिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक वातावरण पर दूरगामी दुष्प्रभाव हुए हैं। बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल में आरक्षण की मांग करने वाले मुसलमानों ने 29 मई, 2012 को बंद का आह्वान किया। देश के कुछ राजनीतिक दलों द्वारा दिये गये मुस्लिम आरक्षण के असंवैधानिक आश्वासनों ने आग में घी का काम किया। 20 जुलाई को चार बोडो युवकों की मुसलमानों द्वारा की गयी निर्मम हत्या ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया। इसके बाद भड़की हिंसक घटनाओं में, सरकारी आकड़ों के अनुसार, 90 लोग मारे गये और चार लाख से अधिक लोग विस्थापित होकर राहत शिविरों में आ गये। इन राहत शिविरों में भी बड़ी संख्या में रह रहे घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें निष्कासित करना आवश्यक है। इस दृष्टि से असम में समाज के अनेक जनसंगठनों द्वारा एक मंच पर आकर घुसपैठियों का वहां पुनर्वास नहीं होने देने का सामूहिक संकल्प लेना भी सराहनीय है।
वस्तुत: निहित स्वार्थ वाले राजनीतिक दलों व मुस्लिम घुसपैठियों के प्रति सांप्रदायिक सहानुभूति रखने वाले स्थानीय निवासियों के अवैध सहयोग व समर्थन के कारण ये घुसपैठिये वहां जमीन, जंगल, रोजगार के अवसरों व अन्य संसाधनों को हथियाने से लेकर स्थानीय राजनीति में अपना वर्चस्व तक बनाने में सफल हो रहे हैं। इन घुसपैठियों को सहयोग व समर्थन दे रहे ऐसे तत्वों के विरुद्ध भी कठोर कार्रवाई आवश्यक है
अ.भा. कार्यकारी मंडल असम की घटनाओं को विशेषकर एवं बंगलादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को एक मुस्लिम मुद्दे के रूप में प्रस्तुत करने के प्रयासों की निंदा करता है। कुछ नेताओं द्वारा 'मुसलमानों में कट्टरवाद की नई लहर उभरने' जैसे संसद के अन्दर व बाहर दिए गए उत्तेजक वक्तव्यों और केवल मुस्लिम समाज के सांसदों का हिंसाग्रस्त क्षेत्र के कुछ ही चुने हुए शिविरों के दौरों द्वारा देश में मूलत: एक स्थानीय बनाम विदेशियों के मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने के प्रयासों की सभी राष्ट्रीय दृष्टि रखने वाले वर्गों द्वारा निंदा की जानी चाहिये।
मजहबी कट्टरता का उत्पात
असम की घटनाओं को लेकर मुंबई, प्रयाग, लखनऊ, कानपुर, बरेली, अमदाबाद, जोधपुर आदि अनेक स्थानों पर मुस्लिम कट्टरवादी तत्वों द्वारा हुए पूर्व नियोजित उग्र और हिंसक प्रदर्शनों ने देश की जनता को चिंता में डाल दिया है। मुंबई में हिंसक प्रदर्शनकारियों ने न केवल प्रसार माध्यमों से जुड़े लोगों तथा सामान्य नागरिकों के ऊपर आक्रमण करने, पुलिसकर्मियों के शस्त्र लूटने तथा राष्ट्रीय स्मारकों को अपमानित कर उन्हें तोड़ डालने जैसे दुस्साहस किये, अपितु महिला पुलिसकर्मियों को भी निशाना बनाकर उनका अपमान व दुर्व्यवहार किया। यह और भी गंभीर विषय है कि प्रशासन न तो इन घटनाओं का पूर्व आकलन कर सका और न ही दोषी तत्वों को ढूंढ कर उनके विरुद्ध उचित कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति दिखा रहा है। अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल इन सभी घटनाओं की घोर भर्त्सना करता है।
इसी कड़ी में राष्ट्रद्रोही तत्वों ने देश के विभिन्न स्थानों पर रह रहे उत्तर-पूर्वांचल के लोगों को प्रत्यक्ष व संचार माध्यमों द्वारा धमकाना भी शुरू कर दिया कि 'रमजान के बाद उनसे बदला लिया जायेगा'। परिणामस्वरूप पुणे, बंगलूरू, हैदराबाद, चेन्नै आदि शहरों से बड़ी संख्या में लोग अपने घरों की ओर पलायन करने को विवश हो गये। इस संकट के समय राष्ट्रीय एकात्मता की उत्कृष्ट भावना तथा अपने दायित्व का परिचय देते हुए स्थान-स्थान पर हजारों देशभक्त खड़े हो गये, जिन्होंने भय से आतंकित लोगों को सभी प्रकार की सुरक्षा एवं सहायता देने के साथ-साथ उनसे अपना स्थान न छोड़ने का आग्रह किया। इसी कारण भय की यह लहर देश के अन्य स्थानों पर बढ़ने से रुक गयी तथा उत्तर-पूर्वांचल के लोगों का आत्मविश्वास बढ़ा। अ.भा. कार्यकारी मंडल इन सभी देशवासियों की सराहना करता है और साथ ही उत्तर-पूर्वांचल के लोगों को यह विश्वास दिलाता है कि देश की जनता उनके साथ खड़ी है। अ.भा. कार्यकारी मंडल सरकार से यह भी मांग करता है कि भय फैलाने वाले राष्ट्रविरोधी तत्वों को ढूंढ कर उन्हें कठोरतापूर्वक दण्डित करे।
सुरक्षा के लिए गंभीर संकट
घुसपैठ का पोषण करने वाले आई.एम.डी.टी. एक्ट-1983 को सर्वोच्च न्यायलय द्वारा अवैध घोषित करने व दिल्ली, गुवाहाटी उच्च न्यायालयों द्वारा घुसपैठियों को बाहर करने के निर्देश तथा जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा बार-बार समस्या की गंभीरता के प्रति ध्यान आकर्षित करने के बाद भी केंद्र तथा अनेक प्रदेश सरकारें वोट बैंक की राजनीति के चलते घुसपैठियों पर दृढ़ कार्रवाई करने के बजाय उन्हें बढ़ावा ही दे रही हैं। इन बंगलादेशी घुसपैठियों ने आज सारे देश में अपना विस्तार कर लिया है। ये घुसपैठिये जनसंख्या के संतुलन को बिगाड़ने के साथ-साथ अनेक प्रकार की आपत्तिजनक एवं अवैध गतिविधियों में लिप्त होकर देश की सुरक्षा के लिए एक गंभीर संकट बन गये हैं। नकली भारतीय मुद्रा का प्रसार, अवैध शस्त्रों का व्यापार, नशीले पदार्थ तथा गोधन की तस्करी और अन्यान्य आपराधिक कार्यों में लिप्त ये लोग आई.एस.आई. की गतिविधियों के भी साधन बन गये हैं।
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल केंद्र सरकार तथा सभी राज्य सरकारों से यह मांग करता है कि, विदेशी नागरिक अधिनियम-1946 के अनुसार तथा सर्वोच्च न्यायालय सहित विविध न्यायालयों के आदेशों के प्रकाश में बंगलादेशी घुसपैठियों की सम्पूर्ण देश में सूक्ष्मता से पहचान कर इन्हें नागरिकों को देय सुविधाओं से वंचित करते हुए देश से तत्काल निष्कासित करें। जिन घुसपैठियों ने अपने नामों को मतदाता सूची में शामिल करवा लिया है उनको वहां से तुरंत हटाया जाना भी अति आवश्यक है। यह भी ध्यान रखना होगा कि असम में हिंसा से विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास करते समय घुसपैठियों को इन क्षेत्रों में पुन: न बसा दिया जाये और कोई घुसपैठिया आधार कार्ड न बनवाने पाये। अ.भा कार्यकारी मंडल सरकार से यह भी मांग करता है कि भारत- बंगलादेश सीमा पर बाड़ लगाने का अधूरा कार्य अविलम्ब पूरा किया जाये तथा राष्ट्रीय नागरिक पंजिका को पूर्ण कर व्यवस्थित किया जाये।
अ.भा. कार्यकारी मंडल देशभक्त नागरिकों से यह आग्रह करता है कि इस समस्या को राष्ट्रीय समस्या मानकर स्थान-स्थान पर इन विदेशी घुसपैठियों की पहचान तथा इनको मतदाता सूचियों से बाहर निकालने के कार्य में सक्रिय भूमिका निभायें तथा यह भी स्मरण रखें कि विदेशी घुसपैठियों को किसी प्रकार का काम या रोजगार देना गैर कानूनी ही नहीं, अपितु देश के लिए घातक भी है। थ्
प्रस्ताव क्र. 2
चीन के सन्दर्भ में समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की आवश्यकता
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के 50 वर्ष पूर्ण होने पर अपनी सीमाओं की रक्षा करते हुए प्राण न्योछावर करने वाले हजारों बहादुर सैनिकों को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है। हिमालय के लदाख व अरुणाचल प्रदेश के उन बफर्ीले युद्ध क्षेत्रों में पराक्रम की अनेक प्रेरणास्पद गाथायें उन बहादुर सैनिकों के पार्थिव शरीरों के साथ दबी पड़ी हैं। आज 50 वर्ष बाद भी उनके पार्थिव शरीर पर्वत शिखरों पर मिलते हैं।
वास्तव में उन शहीदों को विषम संख्याबल व अपर्याप्त युद्ध सामग्री के साथ युद्ध लड़ना पड़ा था। सर्वाधिक दुखद बात यह है कि अपनी असफलताओं को छिपाने के घिनौने प्रयास में देश के तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने उन वीर सैनिकों के शौर्य एवं बलिदान की गाथाओं को भी दबा दिया। अ.भा. कार्यकारी मंडल समस्त राष्ट्र से उनके पराक्रम एवं बलिदान को श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का अनुरोध करता है।
कब्जाई भूमि वापस लो
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल भारत की अखंडता के प्रति अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता को दोहराता है। 1962 का युद्ध राष्ट्र के लिए एक दुखद स्मृति लिये हुए है। हमारी मातृभूमि का लगभग 38,000 वर्ग किमी. क्षेत्र उस युद्ध में हमें चीनी आक्रान्ताओं के हाथों खोना पड़ा। अक्साई चिन क्षेत्र आज भी चीन के आधिपत्य में है। हमारी संसद ने 14 नवम्बर, 1962 को एक सर्वसम्मत प्रस्ताव द्वारा चीन द्वारा कब्जाई गई हमारी एक-एक इंच भूमि वापस लेने का संकल्प किया था। परन्तु अ.भा.कार्यकारी मंडल इस बात पर व्यथा का अनुभव करता है कि सरकार उस उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में कोई कदम उठाने के स्थान पर केवल वास्तविक नियंत्रण रेखा को ही वैधता प्रदान करने के लिए चीन के साथ सीमा वार्ताओं में संलग्न है। 1962 के बाद भी चीन ने अपने आक्रमण को विराम नहीं दिया है। भारत- तिब्बत सीमा के तीनों ही क्षेत्रों में बार-बार अतिक्रमण करते हुए वह धीरे-धीरे हमारी भूमि हड़प रहा है।
यह सर्वविदित है कि 1962 की पराजय के लिए अपना राजनीतिक एवं कूटनीतिक नेतृत्व सीधा-सीधा उत्तरदायी है। तत्कालीन नेतृत्व ने वास्तविकताओं की अनदेखी करते हुए विश्व के बारे में अपनी अव्यावहारिक दृष्टि के चलते सरदार पटेल एवं श्री गुरुजी सहित देश के कई सम्मानित व्यक्तियों की चेतावनी को भी अनसुना कर दिया था। चीन ने पहले तिब्बत पर कब्जा किया और फिर हमारे ऊपर आक्रमण कर दिया। दुर्भाग्य से उस युद्ध के तथ्य आज भी साउथ ब्लॉक की अलमारियों में बंद पड़े हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब तक की सभी सरकारों ने हेंडरसन ब्रुक्स-पी.एस. भगत रपट सहित इन सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किया है। अ.भा. कार्यकारी मंडल यह मांग करता है कि इस रपट को अविलम्ब सार्वजनिक किया जाये ताकि यह राष्ट्र उस रपट के निष्कर्षों का उपयोग कर सके तथा राजनीतिक, कूटनीतिक एवं सैन्य नेतृत्व भी उन भूलों से सीख ले सके।
चीन ने पूरी भारत – तिब्बत सीमा पर सामरिक दृष्टि से वायुसेना अड्डे, प्रक्षेपास्त्रों की तैनाती तथा सैन्य छावनियों एवं अन्य आधारभूत संरचनाओं का जाल बिछा दिया है। अ.भा. कार्यकारी मंडल भारत सरकार से यह आग्रह करता है कि सीमा पर चीन की आक्रामक गतिविधियों के कारण बढ़े खतरे को दृष्टिगत रखते हुए वह सीमा प्रबंधन एवं सुरक्षा तैयारियों के लिए पर्याप्त आर्थिक प्रावधान करे। भारतीय सेना का 'पर्वतीय आक्रामक सैन्यबल' विकसित करने की मांग सरकार के अनिर्णय व लाल फीताशाही के कारण लंबित पड़ी है। आधुनिक युद्ध केवल सीमा पर ही नहीं लड़े जाते, इसलिए हमें चीन की अप्रत्याशित प्रहारक क्षमता को दृष्टिगत रखते हुए सैन्य तकनीकी श्रेष्ठता को समग्रता से विकसित करने की आवश्यकता है। प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी के विकास के क्षेत्र में जहां हम अपनी सफलताओं पर गौरवान्वित हैं, वहीं हम आज भी अपनी अधिकांश सैन्य आवश्यकताओं के लिए आयातों पर अत्यधिक निर्भर हैं। अपने देश के ऊर्जा, सूचना व संचार प्रौद्योगिकी, उद्योग एवं वाणिज्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में चीन की गहरी पैठ और हमारी नदियों के जल को मोड़ने के उसके मंसूबे गंभीर चिंता का विषय हैं।
'62 से सबक ले सरकार
अ.भा. कार्यकारी मंडल साइबर तकनीकी एवं संचार के क्षेत्र में चीन से उभरते खतरों की ओर भी ध्यान आकर्षित करना चाहता है। साइबर युद्ध तकनीक में भारी निवेश कर चीन ने ऐसी क्षमता विकसित कर ली है जिसका उपयोग कर वह अमरीका जैसे अति- विकसित देश की तकनीकी क्षमताओं को भी पंगु बना सकता है। वे देश चीन से इस खतरे के प्रति सजग हैं तथा आवश्यक प्रतिरोधी कदम उठा रहे हैं। अ.भा. कार्यकारी मंडल भारत सरकार से आग्रह करता है कि जहां उच्च प्रौद्योगिकी के विकास में देश की प्रगति सराहनीय है वहीं उसे साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में आवश्यक विकास को भी समुचित महत्व देना चाहिए।
भारत सदैव विभिन्न देशों के साथ अच्छे संबंधों के निर्वहन हेतु प्रयासरत रहा है। आज से दो दशक पूर्व हमने अपनी पूर्वाभिमुख विदेश नीति के अंतर्गत पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व के देशों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने के प्रयत्न आरंभ किये थे। भारत सदैव विश्व शांति का पुरोधा रहा है। अ.भा.कार्यकारी मंडल भारत सरकार से यह आग्रह करता है कि 1962 के अनुभवों से सीख लेते हुए चीन के सन्दर्भ में वह एक 'समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति' के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दे ताकि हम अपने उदात्त आदर्शों की प्रस्थापना कर सकें। प्रतिनिधि
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