भाड़े की भीड़ पर ठोंकी पीठ
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अण्णा हजारे, बाबा रामदेव और अरविंद केजरीवाल के आंदोलनों में जुटने वाली भीड़ पर अक्सर व्यंग्यात्मक लहजे में सवाल उठाने वाली कांग्रेस की अपनी कथित महारैली को लेकर बोलती बंद है। भ्रष्टाचार के अनगिनत आरोपों और एफडीआई व महंगे डीजल-रसोई गैस सरीखे जन विरोधी फैसलों पर कठघरे में खड़ी अपनी केंद्र सरकार का मनोबल बढ़ाने के लिए कांग्रेस ने दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में इस रैली का आयोजन किया। भीड़ न जुट सकने की आशंका के चलते एक बार स्थगित कर दी गयी यह रैली अंतत: चार नवंबर को हुई तो भीड़ जुटाने का जुगाड़ भी सबके सामने बेनकाब हो गया। तमाम तरह के भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के आरोप झेल रहे दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने आलाकमान को खुश कर अपनी कुर्सी बचाने के लिए भीड़ जुटाने का कोई भी हथकंडा अपनाने में कसर नहीं छोड़ी। धांधलेबाजी और दादागिरी के बल पर सरकारी व निजी बसें तो लोगों को लाने के लिए लगायी ही गयीं, आने वालों के खानपान के साथ-साथ उन्हें नकद भुगतान की व्यवस्था भी की गयी, तब कहीं जा कर रामलीला मैदान भर पाया। मामला नंबर बढ़ाने का था, सो अपनी-अपनी भीड़ की पहचान कराने के लिए कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने 'ड्रेस कोड' भी तय कर लिया था। हरियाणा से आये स्त्री-पुरुष क्रमश: गुलाबी रंग की पगड़ी-चुनरी पहने हुए थे तो राजस्थानी सफेद रंग में रंगे हुए थे। जाहिर है, बाजी दिल्ली के तीन ओर बसे हरियाणा के हाथ रही। सो अब 'बलात्कार प्रदेश' बन जाने के बावजूद हरियाणा के मुख्यमंत्री की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है। आखिर दामाद की खातिरदारी में भी वह सबसे आगे है।
बोल-अनमोल
देशवासियों को तो खैर कांग्रेस से अब कोई उम्मीद ही नहीं बची, लेकिन मीडिया को उम्मीद थी कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने दामाद राबर्ट वाड्रा समेत अपने पार्टीजन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर शायद कुछ इस रैली में बोलेंगी। हमेशा की तरह रोमन लिपि में लिखा हुआ भाषण पढ़ कर वह बोलीं तो अवश्य, पर गुर्राने के अंदाज में। उन्होंने फरमाया कि 'हम पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले खुद पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबे हैं।' उनकी मंशा तो विरोधियों पर कीचड़ उछालने की थी, जिनके विरुद्ध कांग्रेसी सरकारें पहले से ही तरह-तरह के कुचक्र रचने में लगी हुई हैं, लेकिन उनकी इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक गलियारों में एक सवाल चटकारे ले कर पूछा जा रहा है कि-यानी मैडम ने आखिरकार अपने लोगों के विरुद्ध लगाये जा रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को स्वीकार कर ही लिया? 'युवराज' अपनी मां से भी चार कदम आगे निकल गये। वह बोले: 'आम आदमी की सारी समस्याओं के मूल मे मौजूदा व्यवस्था ही है, जिसके दरवाजे उसके लिए बंद हैं, इसलिए व्यवस्था परिवर्तन की यह जिम्मेदारी युवाओं को उठानी पड़ेगी।' भाड़े की भीड़ ने 'युवराज' के भाषण पर तालियां भी बजायीं, पर इस सवाल पर कांग्रेसी बगलें झांकते नजर आ रहे हैं कि आजादी के बाद के छह दशकों में से लगभग पांच दशक तो देश पर कांग्रेस ने ही शासन किया है, अब भी पिछले आठ साल से वह ही केंद्र की सत्ता में है, इसलिए क्या इस व्यवस्था के लिए वह ही जिम्मेदार और जवाबदेह नहीं है?
हम भ्रष्टन के…
सत्ता के इस शक्ति प्रदर्शन से पहले कांग्रेस ने अपने नेतृत्व वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल भी की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस दूसरे कार्यकाल के तीन वर्ष बाद की गई इस फेरबदल से उन लोगों को निराशा ही हुई जो कामकाज के आकलन के आधार पर बदलाव की उम्मीद कर रहे थे। असल में हुआ उसके एकदम उलट। विकलांग कल्याण के नाम पर केंद्र सरकार से मिले साढ़े इकहत्तर लाख रुपये के गोलमाल के आरोपी सलमान खुर्शीद को कानून मंत्री से प्रोन्नत कर विदेश मंत्री बना दिया गया, तो कोयले की कालिख लगने के बावजूद श्रीप्रकाश जायसवाल और उनका मंत्रालय बरकरार रहा। हां, ईमानदार छवि वाले जयपाल रेड्डी को अवश्य पेट्रोलियम मंत्रालय से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय का रास्ता दिखा दिया गया। ये तो चंद उदाहरण हैं, वरना तो पूरा मंत्रिमंडलीय बदलाव एक ही संदेश दे रहा है: 'हम भ्रष्टन के, भ्रष्ट हमारे….।'
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