देश की समृद्धशाली परम्परा के अनुरूप
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ग्वालियर में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना का 9वां राष्ट्रीय अधिवेशन
देश की समृद्धशाली परम्परा के अनुरूप
अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना का नवम राष्ट्रीय अधिवेशन गत 28 अक्टूबर को ग्वालियर (म.प्र.) में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारम्भ दिनांक 26 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. शिवाजी सिंह, राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डा. सतीश चन्द्र मित्तल, राष्ट्रीय संगठन-सचिव श्री बालमुकुन्द पाण्डेय एवं जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर के रजिस्ट्रार एवं स्थानीय सचिव डा. आनन्द मिश्र ने दीप-प्रज्ज्वलित करके किया।
डा. संतोष शुक्ल के संकल्प-वाचन के पश्चात् राष्ट्रीय संगठन-सचिव श्री बालमुकुन्द पाण्डेय ने मंचस्थ अतिथियों का परिचय एवं कार्यक्रम में देशभर से पधारे प्रतिनिधियों का स्वागत किया।
तत्पश्चात् मंचस्थ अतिथियों द्वारा 'लोकायतनम्' (सं. डा. ठाकुर प्रसाद वर्मा), 2. 'राष्ट्रीय चैतन्य के प्रकाश में भारत का स्वाधीनता संघर्ष' (डा. सतीश चन्द्र मित्तल), 3. 'विभूतिम्' (सं. डा. ठाकुर प्रसाद वर्मा), 4. 'युगयुगीन रायसेन' एवं 5. 'युगयुगीन देवास' (डा. तेज सिंह सैंधव) नामक कृतियों का विमोचन किया गया।
उद्घाटन-सत्र की अध्यक्षता कर रहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि भारत एक अत्यन्त प्राचीन और महान् राष्ट्र है। तथ्य यह बताते हैं कि ऋग्वेद कम-से-कम दस हज़ार वर्ष प्राचीन है। परन्तु हम कौन थे, यह हम अपनी दृष्टि से नहीं, बल्कि अंग्रेज़ों की दृष्टि से देख रहे हैं।
सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि इतिहास-संकलन योजना के अधिवेशन में जो तथ्य सामने आएं, उन्हें पन्नों पर संकलित कर जनता के सामने रखने का संकल्प लिया जाए। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने भारत के इतिहास को अपनी तरह से जो तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया, उसी को सभी पढ़ रहे हैं। यह ठीक नहीं है। इस पर गम्भीरता से विचार कर भारत की समृद्धशाली परम्परा को आधार बनाकर इतिहास तैयार किया जाना चाहिए। पूरी दुनिया को चलाने वाली जो शक्ति थी, वह और कोई नहीं, बल्कि हमारी सनातन हिंदू-संस्कृति थी। स्वयं श्री अरविन्द ने भी लिखा था कि भगवान् भी चाहते हैं कि सनातन धर्म का उत्थान हो। भारत की पहचान हमारा सनातन धर्म है।
राष्ट्रीयता के भाव को समझाते हुए श्री भागवत ने कहा कि दुनिया में कोई देश ऐसा नहीं है, जिसकी राष्ट्रीयता को लेकर कोई संकुचित भाव हो। दुनिया में केवल भारत ही ऐसा देश है, जिसकी राष्ट्रीयता को लेकर सवाल किया जाता है। यदि हम संस्कृति को 'कल्चर' कहेंगे, धर्म को 'रिलीज़न' कहेंगे, तो वह भाव नहीं आएगा, जो भाव हमारी संस्कृति हमें बताना चाहती है। हमें अपनी आंखों, अपनी वाणी से भारत को समझना होगा। हमें अपने पुराणों और कथाओं को पढ़कर समझना होगा। उन्होंने कहा कि दुनिया में अन्य देश अपनी भाषा व संस्कृति को मज़बूत करने का सन्देश स्पष्ट रूप से देते हैं। उन्होंने कहा कि जन-मन के 'डी-कालोनाइज़ेशन' करने, यानी विदेशों द्वारा थोपी गई मानसिकता को दूर करने की ज़रूरत है। उद्घाटन-सत्र का संचालन प्रो. आनन्द मिश्र ने किया। सत्र का समापन श्री गुंजन अग्रवाल द्वारा राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम् के गायन के साथ हुआ। अधिवेशन का दूसरा दिन तकनीकी सत्रों का रहा, जिसमें प्रतिनिधियों द्वारा शोध-पत्रों का वाचन किया गया।
तीसरे दिन समापन-सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीयता का अपना इतिहास है। उसका प्रभाव कम-ज्यादा हो सकता है, लेकिन उसकी धारा नहीं टूटी है। अतीत का अपना महत्त्व है। आज की जड़ बीते हुए काल में हैं और वर्तमान समस्याओं का हल अतीत की जड़ों में है। अपने अतीत को जानना आज और आने वाली पीढ़ी के लिए ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि अतीत से कटकर जीवन का प्रवाह नहीं होता है। भारत को भारत बनाना है तो भारत को समझना होगा। भारत का अपना अलग इतिहास है। हर भारतवासी को अपने चित्त में भारत के प्रति मान-सम्मान रखना होगा।
समापन-सत्र की अध्यक्षता 'चाणक्य' व 'उपनिषद् गंगा' धारावाहिक के निर्देशक और अभिनेता डा. चन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने की।
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