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ओबामा या रोमनी?

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Oct 27, 2012, 12:00 am IST
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ओबामा या रोमनी?

दिंनाक: 27 Oct 2012 16:50:52

अगले अमरीकी राष्ट्रपति का चुनाव 6 नवम्बर को होना है और दोनों ही उम्मीदवार, राष्ट्रपति बराक ओबामा और मिट रोमनी देशभर में अपने लिए समर्थन जुटाने की कवायद में लगे हैं। पद पर बैठने की अपनी पात्रता सिद्ध करने के लिए दोनों में आमने-सामने बहस के दौर चले। ऐसी ही एक बहस में 23 अक्तूबर को रोमनी और ओबामा ने विदेश नीति पर अपनी-अपनी सोच और एजेंडे का खुलासा किया। बहस में पाकिस्तान की जिस तरह से कलई खुली, वह काबिलेगौर है। रोमनी ने कहा कि अगर वह राष्ट्रपति चुने गए तो पाकिस्तान पर ड्रोन हमला जारी रखेंगे और परमाणु हथियार से लैस उस मुल्क पर पाबंदियां लगाएंगे। रोमनी ने अफगानिस्तान में जड़ें जमाए हक्कानी गुट और आई.एस.आई. की बढ़ती ताकत को लेकर चिंता जाहिर की। रोमनी के शब्द थे, पाकिस्तान दूसरे मुल्कों जैसा नहीं है और यहां जनता के नुमाइंदों के फरमान नहीं चलते। यह पूछे जाने पर कि क्या अमरीका को पाकिस्तान से रिश्ते खत्म कर देने चाहिए, रोमनी ने कहा कि, उसको जाने वाली अमरीकी आर्थिक मदद में शर्तें बढ़ा देनी चाहिए। रोमनी का कहना था कि उस मुल्क से रिश्ते तोड़ने का यह समय नहीं है जिसके पास सौ परमाणु हथियार हैं और जो आगे उन्हें दोगुना करने की दिशा में बढ़ रहा है। हम उसे (आर्थिक) मदद भेजें पर यह सुनिश्चित करें कि वह सभ्य बनने की दिशा में बढ़े।'
बहस में ओबामा और रोमनी अमरीका को सबसे बड़े खतरे की बात पर अलग-अलग सोच वाले दिखे। रोमनी का मानना था कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम अमरीका के लिए सबसे बड़ा खतरा है तो ओबामा ने आतंकवादियों को सबसे बड़ा खतरा बताया। ओबामा की मानें तो, चुने जाने के बाद वे आतंकी ताने-बाने को लेकर चौकन्ने बने रहेंगे।
इस बीच बीबीसी का एक दिलचस्प सर्वे सामने आया है, जिसके अनुसार पाकिस्तान को छोड़कर भारत सहित तमाम देश ओबामा को फिर से राष्ट्रपति बनते देखना चाहते हैं। हालांकि उनके अपने अमरीका में ओबामा और रोमनी के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है। इस सर्वे में 3 जुलाई से 3 सितम्बर के बीच 21 देशों के कुल 21,797 लोगों से पूछा गया था कि वे दोनों में से किसे राष्ट्रपति बनते देखना चाहते हैं। पाकिस्तान के लोगों को छोड़कर बाकी देशों में ओबामा को चाहने वालों की तादाद कहीं ज्यादा रही। पाकिस्तान में लोगों ने रिपब्लिकन को पहली पसंद बताया। मोटे तौर पर रोमनी के पाले में 9 फीसदी के मुकाबले ओबामा के पाले में 50 फीसदी लोग दिखा।

'वाल-मार्ट' पर मुकदमा

दुनिया के सबसे बड़े खुदरा-विक्रेता वाल-मार्ट पर अपने अस्थायी कर्मचारियों को काम पर जल्दी बुलाकर देर तक रोके रखने और भोजनावकाश में भी काम करने को मजबूर करने के लिए मुकदमा ठोका गया है। शिकागो (अमरीका) की फेडरल अदालत में दायर इस मुकदमे में आरोप है कि वाल-मार्ट और उसमें कर्मियों को नियुक्त करने वाली दो एजेंसियों ने न्यूनतम वेतन और 'ओवरटाइम' कानूनों को तोड़ा है जिससे उसके सैकड़ों अस्थायी कर्मियों पर असर पड़ सकता है।
दिलचस्प बात है कि वाल-मार्ट को अमरीका के कई शहरों में भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अक्तूबर की शुरुआत में न्यूयार्क में वाल-मार्ट के कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी थी, जबकि वाल-मार्ट ने मामला रफा-दफा करने को उसे 'रैली' बताया था। वाल-मार्ट की मनमानी की खिलाफत के लिए इसके नए और पुराने कर्मचारियों ने 'आवर वाल-मार्ट' नाम से एक गुट बनाया है। यहां बता दें कि यह वही 'वाल-मार्ट' है जिसे सोनिया पार्टी की अगुआई वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुदरा क्षेत्र में एफ.डी.आई. के रास्ते भारत में बुलाने को उतावले हैं। अमरीका में तो 'वाल-मार्ट' बरसों से है, लेकिन वहां उस पर ढेरों मुकदमे लदे हैं और कर्मचारी तलवारें ताने हैं

नारायणमूर्ति को हूवर

इंफोसिस कम्पनी की बुनियाद डालने वाले देश के जाने-माने उद्यमी एन.आर. नारायणमूर्ति को 2012 का नामी-गिरामी हूवर पदक दिया गया है। यह सम्मान भारत में समाज के प्रति किए गए उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए अर्पित किया गया है। इंजीनियर रहते हुए मानवता के प्रति की गईं नि:स्वार्थ और गैर-तकनीकी सेवाओं के लिए दिए जाने वाले इस सम्मान की शुरुआत 1929 में हुई थी। नारायणमूर्ति को स्वास्थ्य, सामाजिक पुनर्वास, ग्रामीण उन्नयन और शिक्षा में गजब के सुधारों की बुनियाद डालने के लिए इस सम्मान से सम्मानित किया गया है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम 2008 में यह सम्मान पा चुके हैं। हूवर पदक विजेता का चयन एक बोर्ड करता है जिसमें अमरीका के पांच इंजीनियरिंग संस्थानों के प्रतिनिधि होते हैं। ये संस्थान हैं-अमेरिकन सोसायटी ऑफ मेकेनिकल इंजीनियर्स, अमेरिकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजीनियर्स, अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ कैमिकल इंजीनियर्स, अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग, मेटेलर्जिकल एंड पेट्रोलियम इंजीनियर्स और इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियर्स।
दक्षिण कोरिया में दुर्गापूजा
इस बार दक्षिण कोरिया में भी दुर्गापूजा की छटा निराली थी। स्थानीय बंगला समाज ने राजधानी सियोल से सटे पोचियोन शहर के श्री राधाकृष्ण मन्दिर में पूजा पंडाल सजाकर ढाक-मंजीरे की ताल पर मां दुर्गा की आराधना की। नवगठित दक्षिण कोरिया दुर्गा पूजा समिति पूरे जोशो-खरोश के साथ पूजा व्यवस्था आदि में जुटी रही। वैसे इस मन्दिर में हिन्दुओं के सभी त्योहार एक अर्से से मनाए जा रहे हैं। इस बार से दुर्गापूजा भी शुरू हुई है। पूजा को लेकर स्थानीय हिन्दू समाज में खासी रौल-चौल देखी गई। उत्सवी माहौल में सबका मिलना-बैठना, संदेश का आनंद लेना देखते ही बनता था।
आलोक गोस्वामी

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