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चित्तौड़ ही नहीं, भारत और विश्व के इतिहास में पन्ना धाय की चरित्र-गाथा एक विलक्षण-सी वस्तु है! उसने जिस तत्परता से मेवाड़ के राजकुमार उदय सिंह के प्राणों की रक्षा की, वह इतिहास की एक अमिट घटना है। राणा संग्रामसिंह के स्वर्गवास के बाद चित्तौड़ की गद्दी पर राणा विक्रमादित्य बैठा, लेकिन वह निकम्मा और अयोग्य था। थोड़े ही दिनों में वह शासन से अलग कर दिया गया। राणा सांगा का कनिष्ठ पुत्र उदय सिंह वनवीर की सुरक्षा में उत्तराधिकारी घोषित किया गया और पन्ना धाय की देख-रेख में रख दिया गया, क्योंकि उसकी अवस्था छोटी थी और उसकी मां रानी करुणावती का स्वर्गवास चुका था। चित्तौड़ के इतिहास में यह समय अत्यन्त कठिन था, बड़े से बड़े परिवर्तन की सम्भावना थी।
पन्ना धाय खींची जाति की राजपूत रमणी थी। उसका हृदय अत्यन्त विशाल था। एक दिन वनवीर ने निश्चय कर लिया कि रात आते ही वह उदय सिंह के खून से अपनी तलवार की प्यास बुझायेगा। काली रात आ गयी, चारों ओर अन्धकार छा गया। पन्ना को पता नहीं था कि दुष्ट वनवीर ने राजकुमार की हत्या करने की योजना बना ली है। राजकुमार सो चुका था, इतने में बारी आया जो नित्य पत्तल आदि हटाने के लिए आया करता था। बारी ने राजकुमार के कमरे में आते समय देख लिया था कि पापी और नमकहराम वनवीर की तलवार विक्रमादित्य के दो टुकड़े कर चुकी थी। उसके बदन का खून सूख गया। परन्तु उसने साहस से काम लिया। उसने पन्ना को सारी बातें बता दीं। पन्ना उदय सिंह को अपने बच्चे से भी अधिक प्यार करती थी। पन्ना अपने पुत्र चन्दन और मेवाड़ के उत्तराधिकारी उदय सिंह को छाती से चिपकाकर सोयी हुई थी। उसकी समझ में यह बात आ गयी कि दुष्ट खूनी इस कमरे में भी आयेगा और अबोध तथा निरीह बालक का वध कर अपनी पापमयी इच्छा पूरी करेगा।
उसने उदय के गाल चूमकर उसे फल के टोकरे में रख कर पत्तों से ढक दिया और बारी से कहा कि 'तुम इसे लेकर वीरा नदी के तट पर मेरी प्रतीक्षा करना।' बारी टोकरे में सोये हुए मेवाड़ के वैभव को लेकर किले के बाहर चला गया। उसके बाद वीर हृदया पन्ना ने जो कुछ भी किया, उसका उदाहरण विश्व के इतिहास में कहीं नहीं मिल सकता। अपने कलेजे के टुकड़े चन्दन को सेज पर सुलाकर वह वनवीर की राह देखने लगी। दुष्ट हत्यारा आ पहुंचा। वह बोला, 'उदय कहां है?' पन्ना संभलकर दूर खड़ी हो गयी। उसके मुख से एक भी शब्द नहीं निकला। अंगुलियों से उसने चन्दन की ओर संकेत किया, तलवार गिरी, बालक के मुख से एक चीख निकली। पन्ना की आंखों से एक बूंद भी जल नहीं गिरा, परन्तु पुत्र स्नेह से उसका हृदय भीतर-ही भीतर फटा जा रहा था। वह शक्ति थी, शक्ति अत्याचारों से कभी नहीं डरती और न पराजित होती है। वनवीर चला गया।
मां ने मृत पुत्र का अन्तिम संस्कार वीरा नदी के तट पर किया। रात की नीरव भयानकता उसे संकल्प से डिगा नहीं सकी। वह उदय को कलेजे में छिपाकर मेवाड़ से बाहर निकल पड़ी। किसी ने भी उसे प्रश्रय न दिया। अन्त में वह देयरा पहुंची। वहां का शासक आशाशाह था। धाय ने उससे कहा- 'अपने राजा की जान बचाओ' और राजकुमार को गोद में रख दिया।
कुछ दिनों के बाद वनवीर इस समाचार से दंग हो उठा कि उदय सिंह जीवित है। वनवीर को अपने पापकर्मो का दण्ड मिला। पन्ना जीवित थी। उसने उदय सिंह का राज्याभिषेक देखकर अपने आपको धन्य माना। राणा उदय सिंह उसके पवित्र चरणों की धूलि सिर पर चढ़ाकर आनन्दित हो उठे।
पन्ना अपने आदर्श त्याग से अमर हो गयी।
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