हर मोर्चे पर डटा संघ
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विजयादशमी–रा.स्व.संघ स्थापना दिवस पर विशेष
राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में तेजस्विता का संचार करते हुए
नरेन्द्र सहगल
संघ वृक्ष का बीजारोपण
विजयादशमी, 1925 को नागपुर महाराष्ट्र में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्मदाता प्रखर राष्ट्रभक्त डा.केशवराव बलिराम हेडगेवार ने प्रत्यक्ष शाखा कार्य को प्रारंभ करने से पहले स्वतंत्रता संग्राम के प्रत्येक रास्ते पर चल कर गहरा अनुभव प्राप्त कर लिया था। डा.हेडगेवार ऐसे एकमेव और पहले स्वतंत्रता सेनानी थे जो कांग्रेस, क्रांतिकारी दलों और सुधार आंदोलनों इत्यादि के कार्य में प्रमुख भूमिका निभाते हुए भी उन वास्तविकताओं की तलाश करते रहे जिनके कारण भारत को निरंतर एक हजार वर्षों तक परतंत्रता का अपमान सहना पड़ा। डा.हेडगेवार के इस बौद्धिक मंथन में से मुख्य कुछ ठोस तथ्य सामने आए। l हिन्दुत्व ही भारत की राष्ट्रीय पहचान है। l हिन्दुस्थान का इतिहास वास्तव में हिन्दुओं के पतन और उत्थान का इतिहास है। l देश विरोधी शक्तियों को पराजित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर के एक शक्तिशाली हिन्दू संगठन की आवश्यकता है। l राष्ट्र हितार्थ सदैव आत्मसमर्पण करने वाले निस्वार्थी कार्यकर्त्ताओं का एक ऐसा समूह जो व्यक्तिनिष्ठ न होकर समाजनिष्ठ हो। l ऐसे संगठन के कार्यकर्त्ता राष्ट्रजीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करने का सामर्थ्य रखते हों।
सन् 1925 का समय ऐसा था जब अंग्रेजों के विरुद्ध सत्याग्रही स्वतंत्रता संग्राम गति पकड़ रहा था। अंग्रेजों द्वारा प्रदत्त विभाजन नीति के अंतर्गत मुस्लिम कट्टरवाद चरम सीमा पर आ पहुंचा था। कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति देश के विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार कर ही थी। पूर्वांचल में ईसाई षड्यंत्र जोरों पर था। भारतीय इतिहास के गौरवशाली पृष्ठों को धूमिल करना, भारतीय संस्कारों को समाप्त करने वाली मैकाले शिक्षा पद्धति का लागू होना, भारत राष्ट्र की जीवन रेखा हिन्दुत्व को पिछड़ी, संकीर्ण और पराजित जीवन धारा साबित करके बहुसंख्यक हिन्दू समाज में हीन भावना उत्पन्न करना आदि षड्यंत्र अंग्रेजों की कुटिल चालें थीं। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1885 में अंग्रेजों की योजनानुसार लार्ड ए.ओ.ह्यूम द्वारा स्थापित कांग्रेस ने इस हिन्दुत्व विरोधी महा षड्यंत्र का रत्ती भर भी संज्ञान नहीं लिया। भारतीय राष्ट्रवाद को समाप्त करने की इस ब्रितानवी साजिश और एक हजार वर्ष तक चले स्वतंत्रता संघर्ष की पृष्ठभूमि के मद्देनजर डा.हेडगेवार को संघ जैसे शक्तिशाली हिन्दू संगठन की आवश्यकता महसूस हुई।
ध्येय समर्पित लाखों स्वयंसेवकों के परिश्रम का फल
संघ कार्य का विस्तार
नागपुर में प्रारंभ हुई संघ की शाखाओं में प्रखर राष्ट्रवाद, उत्कट देशभक्ति और नि:स्वार्थ समाजसेवा के संस्कार लेकर तैयार हुए स्वयंसेवकों ने बहुत थोड़े समय में ही देश भर में शाखाओं का जाल बिछाने में सफलता प्राप्त कर ली। कांग्रेस सहित कई बड़े संगठनों के नेताओं को यह बहुत विचित्र लगा कि बिना किसी साधन के डा.हेडगेवार ने इतना बड़ा और अनुशासित संघ कैसे बना लिया? नगर के भीतर ही एक खुले स्थान पर भगवा झंडा लगाकर कुछ युवकों की परेड करवाने के मात्र एक घंटे के उपक्रम में से वे सैकड़ों प्रचारक कैसे तैयार हो गए जिन्होंने दूरदराज के प्रांतों में जाकर भाषा, मौसम और रहन-सहन जैसी कठिनाइयों के बीच, बिना धन/सुविधाओं के संघ कार्य का विस्तार कर दिया? विशेषतया कांग्रेस के नेताओं को सार्वजनिक कार्यपद्धति से तैयार हुए इस अतुलनीय समाज सेवी संगठन पर हैरानी इसलिए होती थी क्योंकि कांग्रेस की स्थापना तो अंग्रेज शासकों की योजना, सरकारी धन और राज्य के वेतनभोगी कर्मचारियों की मदद से हुई थी। यह अलग बात है कि बाद में महात्मा गांधी के कुशल नेतृत्व, उनकी तपस्या और रामराज्य की कल्पना के कारण सरकारी कांग्रेस स्वतंत्रता संग्राम की ध्वजवाहक बन गई।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उत्कर्ष के कालखंड में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों की ऐतिहासिक विशेषता यह थी कि उन्होंने महात्मा गांधी के मार्गदर्शन/नेतृत्व में विदेशी शासकों के विरुद्ध चलने वाले स्वतंत्रता संग्राम की गतिविधियों में पूरी भागीदारी करने के साथ हिन्दुत्व(संघकार्य) की लौ भी जलाए रखी। इस तरह से संघ ने स्वतंत्रता संग्राम को भारत की राष्ट्रीय पहचान का आधार प्रदान करने का भरसक प्रयास किया। अगर उस समय के स्वतंत्रता सेनानियों को डा.हेडगेवार की भारतीय चेतना से जुड़ी हुई हिन्दुत्व की विचारधारा पूरी तरह समझ में आ गई होती तो 1947 में भारत का दुखदायी विभाजन कभी नहीं होता। विभाजन के बाद बनी परिस्थितियों के मद्देनजर संघ ने समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हिन्दुत्व के जागरण की आवश्यकता महसूस की और देखते ही देखते स्वयंसेवकों ने अनेक राष्ट्रवादी संगठन तैयार कर दिए।
देश रक्षा/सेवा के प्रत्येक मोर्चे पर अग्रणी
संघ के वीरव्रती स्वयंसेवक
आज संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र जीवन की दसों दिशाओं में जाकर भारत की राष्ट्रीय पहचान हिन्दुत्व अर्थात भारतीयता की अलख जगा रहे हैं। विद्यार्थी, मजदूर, राजनीति, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और वनवासी इत्यादि प्रत्येक क्षेत्र में स्वयंसेवक प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं। इन सभी क्षेत्रों विशेषतया मजदूर और विद्यार्थी संगठनों पर प्रारंभ में चीन और रूस प्रेरित साम्यवादी (देशद्रोही) विचारधारा के शिकंजे को विद्यार्थी परिषद और मजदूर संघ ने पूर्णतया काट डालने में सफलता प्राप्त की है। इसी तरह वनवासी क्षेत्रों में हिन्दू विरोधी ईसाई कुचक्र को भी जड़मूल से समाप्त करने के लिए कल्याण आश्रम पूरी ताकत के साथ सक्रिय है। देश के प्रत्येक प्रांत में विद्या भारती नामक संगठन हजारों की संख्या में विद्यालयों का संचालन करके नई पीढ़ी को राष्ट्रीयता, देशभक्ति और समाजसेवा के संस्कार दे रहा है। शिक्षा बचाओ आंदोलन के माध्यम से भारतीय इतिहास में जोड़ी गई विकृतियों को समाप्त करवाने का सफल अभियान चल रहा है। सेवा भारती के माध्यम से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवक ढाई लाख से भी ज्यादा सेवा प्रकल्प चला रहे हैं।
देशरक्षा और समाजसेवा के प्रत्येक मोर्चे पर अग्रणी रहने वाले स्वयंसेवकों ने विदेशी आक्रमणों और प्राकृतिक आपदाओं के समय समाज का मनोबल बनाए रखने, सीमांत क्षेत्रों में सैनिकों की सहायता करने और संकटग्रस्त लोगों के लिए राहत के कार्य प्रारंभ करने में मुख्य भूमिका निभाई है। राष्ट्रवादी दलों द्वारा चलाए गए कश्मीर बचाओ अभियान, राष्ट्रभाषा हिन्दी आंदोलन, गोवा स्वतंत्रता संघर्ष, संतों द्वारा प्रारंभ किए गए गो रक्षा संघर्ष और श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन तथा समाजसेवियों द्वारा छेड़े गए भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलनों में स्वयंसेवकों ने न केवल भाग ही लिया है अपितु जरूरत पड़ने पर नेतृत्व भी प्रदान किया है। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लोकतंत्र की हत्या करके देश पर थोपे गए आपातकाल के विरोध में जयप्रकाश नारायण द्वारा छेड़े गए देशव्यापी आंदोलन में संघ के दो लाख से अधिक स्वयंसेवकों ने जेलों में रहकर अपने राष्ट्रीय कर्तव्य को निभाया था।
राष्ट्रवादी शक्तियों के जागरण से आगे बढ़ रहा है
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का रथ
अपने राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए साधनारत संघ के कार्यों के प्रत्यक्षदर्शन चार प्रकार के कार्यों में किए जा सकते हैं। l नियमित शाखा में संस्कारित हो रहे स्वयंसेवकों का समूह अर्थात प्रत्यक्ष शाखा कार्य। l संघ की प्रेरणा से अन्य क्षेत्रों में चल रहे संगठन l स्वयं की प्रेरणा से स्वयंसेवकों द्वारा संचालित किए जा रहे व्यक्तिगत सामाजिक प्रकल्प, जिनमें स्कूल, चिकित्सालय, समाचार पत्र, पत्रिकाएं और स्थानीय धार्मिक क्रियाकलाप इत्यादि आते हैं। l संघ के अतिरिक्त समाज के अन्य संगठनों/व्यक्तियों द्वारा प्रारंभ किए गए ऐसे सभी कार्य जिनका संबंध संघ के ध्येय अर्थात सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जागरण है। ऐसे सभी कार्यों में स्वयंसेवकों का भरपूर योगदान रहना उनके स्वभावगत राष्ट्र समर्पित और धर्मपरायण चरित्र का अभिन्न हिस्सा है। स्वयंसेवक का एक अर्थ देश का आदर्श नागरिक होता है। अत: संघ के स्वयंसेवक अनुशासित ढंग से देशहित के प्रत्येक कार्य में स्वत: भाग लेते हैं और इसी तरह से देश के विरोध में होने वाले प्रत्येक कार्य का डटकर विरोध भी करते हैं।
संघ ने गत 9 दशकों में कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ऐसा राष्ट्रवादी हिन्दुत्वनिष्ठ आधार तैयार कर दिया है जिस पर खड़े होकर अनेक सामाजिक एवं धार्मिक संगठन कार्य कर रहे हैं। ऐसे अनेक संगठनों में संघ के स्वयंसेवक न केवल सक्रिय हैं अपितु उनकी संचालन व्यवस्था में भी सहयोग करते हैं। संघ के ऐसे लाखों नए और पुराने स्वयंसेवक हैं जिनका प्रत्यक्ष शाखा, विविध क्षेत्र और स्वयंसेवकों के निजी प्रकल्पों से कोई सीधा संबंध नहीं हैं, परंतु ये स्वयंसेवक अन्य लोगों द्वारा खड़े किए गए सेवा कार्यों में मुख्य भूमिका में रहते हैं। संघ का यह अदृश्य स्वरूप इतना विस्तृत एवं प्रभावी है कि आज देश में राष्ट्रोत्थान अथवा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के जागरण का कोई भी काम संघ के स्वयंसेवकों के बिना पूरा नहीं होता। संघ इसी साधना में जुटा है और अपने कदमों को अंगद के पांव की तरह जमाता जा रहा ½èþ*n
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