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प्रदेश कब तक भुगतेगानेहरू-अब्दुल्ला खानदान की दोस्ती का दंश?

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Oct 13, 2012, 12:00 am IST
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दिंनाक: 13 Oct 2012 16:25:11

जम्मू–कश्मीर/विशेष प्रतिनिधि

प्रदेश कब तक भुगतेगा

नेहरू–अब्दुल्ला खानदान की दोस्ती का दंश?

कांग्रेस में 'युवराज' समझे जाने वाले राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी गत दिनों कश्मीर आए। इस दौरान उन्होंने खुद को कश्मीरी मूल का सिद्ध करने का प्रयास किया। साथ ही अपने परदादा जवाहर लाल नेहरू तथा शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के पारिवारिक सम्बंधों का हवाला देकर उमर अब्दुल्ला के साथ अपने मधुर पारिवारिक संबंधों को कश्मीरी जनता के हित के साथ जोड़ दिया। लेकिन इतिहासकारों, जानकारों और विश्लेषकों का मानना है कि साम्राज्यवादी ताकतों के षड्यंत्रों के साथ ही जम्मू-कश्मीर में समस्याओं का मूल नेहरू-शेख की मित्रता और इन दोनों की महाराजा हरि सिंह से घृणा ही थे। महाराजा हरि सिंह पंथनिरपेक्ष भारत के साथ विलय करना चाहते थे। वे पाकिस्तान में कश्मीर के विलय की बात सोच भी नहीं सकते थे, किन्तु विलय के पश्चात नेहरू के भारत में अपने भविष्य को लेकर अशंकित थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री मा.स.गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी, आचार्य कृपलानी तथा अन्य कई राष्ट्रवादी नेताओं ने महाराजा हरि सिंह को यह आभास कराने का प्रयत्न किया कि नेहरू ही सारा भारत नहीं हैं। महाराजा हरि सिंह नेहरू के कारण ही भारत में विलय पर अनिर्णय की स्थिति में थे, इसी बीच कश्मीर पर पाकिस्तान के आक्रमण ने उन्हें भारत में विलय पर विवश कर दिया। तब भी नेहरू ने विलय से पूर्व अपने मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को सत्ता सौंपने की बात उनसे मनवा ही ली। इस कारण कितनी कठिन परिस्थितियां उत्पन्न हुईं, यह इतिहास का एक लम्बा अध्याय बन चुका है।

आखिरकार शेख अब्दुल्ला को सत्ता मिली और उन्होंने पं. नेहरू के साथ मिलकर महाराजा को जम्मू-कश्मीर की सीमा से बाहर निकल जाने पर विवश कर दिया। महाराजा हरि सिंह की आशंका सही सिद्ध हुई। पूर्ण सत्ता प्राप्त करने के पश्चात शेख अब्दुल्ल ने अमरीका तथा अन्य विदेशी शक्तियों की शह पर कश्मीर को अलग राज्य बनाने तथा भारत से दूरियां बढ़ाने की चाल चलनी आरम्भ कर दी। नेहरू ने दबाव में आकर पहले तो अपने मित्र को प्रसन्न करने के लिए धारा-370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात मान ली, लेकिन जब देखा कि शेख अब्दुल्ला कुछ और ही रास्ते पर चल पड़े हैं तो भारी मन के साथ उन्हें सत्ता से हटाने के लिए शेख के साथियों का सहारा लेना पड़ा। शेख को गिरफ्तार किया गया तो हिंसा शुरू हो गई। 22 वर्षों तक एक लम्बा संघर्ष चला। 1971 के युद्ध में जब पाकिस्तान की भारी पराजय हुई तो शेख अब्दुल्ला को समझ आ गया कि पाकिस्तान के भरोसे रहना ठीक नहीं। इसलिए उन्होंने अपना सुर बदला। बदलते शेख को देखकर 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने अपने इस 'मुंहबोले चाचा' से लम्बी बातचीत के बाद उन्हें पुन: अपना लिया तथा फिर जम्मू-कश्मीर की सत्ता सौंप दी। 1977 के चुनाव में जब श्रीमती इन्दिरा गांधी की कांग्रेस हार गई और जनता पार्टी सरकार बनी तो एक बार फिर कांग्रेस और कांफ्रेंस के रास्ते अलग-अलग हो गए।

1982 में जब शेख अब्दुल्ला का देहान्त हुआ तो कांग्रेस-कान्फ्रेंस फिर से घी-शक्कर हो गए किन्तु 1983 में विधानसभा के चुनाव में दोनों के सम्बंध फिर बिगड़ गए। डा. फारुख अब्दुल्ला ने अकेले ही अपनी सरकार बनाई किन्तु श्रीमती गांधी ने डा. अब्दुल्ला का तख्ता पलट दिया और फारुख के बहनोई जी.एम. शाह की मुख्यमंत्री बनने में सहायता की। 1986 में जब शाह सरकार विफल सिद्ध हुई तो राजीव गांधी ने पुन: कान्फ्रेंस के साथ गठबंधन सरकार बनाई और फारुख अब्दुल्ला फिर से मुख्यमंत्री बने। 1987 में विधानसभा का चुनाव कांग्रेस-कान्फ्रेंस ने मिलकर लड़ा, जिसमें जमकर धंधली की गई। इससे कश्मीर में भारी रोष उत्पन्न हुआ, जिसका लाभ उठाते हुए पाकिस्तान ने कश्मीर के आक्रोशित युवाओं को 'दिल्ली' के खिलाफ भड़का दिया, उनके हाथ में हथियार थमाकर 'छद्म युद्ध' शुरू कर दिया जो आज भी जारी है।

इस आतंकवाद के कारण देश तथा जम्मू-कश्मीर के लोगों को बहुत हानि उठानी पड़ी है, लाखों लोग अपने देश के भीतर ही विस्थापित बने हुए हैं, हजारों मारे गए हैं, देश की एकता के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को बलिदान देना पड़ता है।

गत तीन वर्षों से कांफ्रेंस तथा कांग्रेस पुन: सत्ता की डोर में बंधे हुए हैं और गांधी-अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी, यानी राहुल गांधी तथा उमर अब्दुल्ला की मित्रता का एक नया दौर चल रहा है। यह मित्रता क्या गुल खिलाएगी, इसका पता तो आने वाले समय में ही चलेगा। किन्तु राहुल गांधी के कश्मीर दौरे के दौरान जो कुछ देखने को मिला उससे तो यही संकेत मिलते हैं कि इतिहास फिर से खुद को दोहराएगा। राहुल के आगमन पर यह प्रचारित किया गया था कि जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज लाने के लिए संविधान के 73वें संशोधन को इस राज्य में भी लागू करके पंचों-सरपंचों को अधिकार सम्पन्न बनाया जाएगा। लेकिन उमर अब्दुल्ला ने इस बात को नहीं छुपाया कि वह कश्मीर की स्वायत्तता चाहते हैं। उमर ने इस बात पर भी बल दिया कि कश्मीर तथा केन्द्र के बीच इस संबंध में चर्चा का क्रम आरंभ होना चाहिए तथा नई दिल्ली और पाकिस्तान के बीच भी इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए बातचीत को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। राहुल ने भी अपने भाषणों में कश्मीर के युवकों की बेरोजगारी को ही अपना मुख्य मुद्दा बनाया तथा कहा कि वे चाहते हैं कि कश्मीर के युवक भी भारत में हो रही उन्नति के भागीदार बनें। इसके लिए वे अपने साथ कुछ बड़े उद्योगपतियों को भी ले गए थे जिनमें रतन टाटा सबसे प्रमुख थे। पर सच्चाई यह है कि कश्मीर की समस्या विकास के अभाव से पैदा नहीं हुई है बल्कि उस सोच से पैदा हुई है जो नेहरू-शेख अब्दुल्ला ने उत्पन्न की, फारुख-इंदिरा ने पोषित की और अब राहुल-उमर उसे मजबूत कर रहे हैं।

एक महीने में 14 बलात्कार की घटनाओं ने किया हरियाणा को शर्मसार

0 वंचित वर्ग की महिलाओं के साथ दुष्कर्म से नाराज राष्ट्रीय अनुसूचित जाति  जनजाति आयोग व महिला आयोग व बाल संरक्षण आयोग ने हुड्डा सरकार को लगाई फटकार0पुलिस की अनदेखी से पीड़ित लड़की के पिता ने की आत्महत्या, दूसरे पीड़ित परिवार ने छोड़ा घर, एक लड़की ने आत्मदाह कर जान दी0आखिर सरकार के दो विधायकों– ओ.पी. जैन व जिले राम शर्मा पर किया गया हत्या का मामला दर्ज 0 सोनिया भी पहुंचीं घड़ियाली आंसू बहाने

आखिरकार कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी की नजर अपनी पार्टी द्वारा शासित और दिल्ली से सटे हरियाणा में महिलाओं के विरुद्ध बढ़ रहे अत्याचारों पर पड़ ही गई। वैसे तो उन्हें भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की नाकामयाबी और प्रदेश सरकार की बदनामी की खबर पहले से ही है। पर जींद जिले के नरवाना के पास सच्चा खेड़ा गांव की एक युवती द्वारा बलात्कार के बाद आग लगाकर जान देने की घटना पर वे गत 9 अक्तूबर को घड़ियाली आंसू बहाने उसके घर पहुंचीं। सोनिया पीड़ितों को ढांढस बंधा आयीं और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दे आयीं। पर उनके साथ गांव का दौरा करने पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के माथे पर शिकन तक नहीं थी और न ही चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव, जबकि लगातार हो रही दुष्कर्म की घटनाओं से प्रदेशवासी शर्मसार हो गए हैं। जिस तरह ये घटनाएं घट रही हैं उससे साफ दिख रहा है कि गुंडा तत्व बैखौफ हैं। यदि प्रशासन बिना भेदभाव और निष्पक्षता से कार्रवाई कर दोषियों को पकड़ कर सलाखों के पीछे पहुंुचा दे तो ऐसी घटनाओं पर रोक लग सकती है। परन्तु संवेदनहीन प्रदेश सरकार गहरी नींद में सो रही है और प्रशासन लाचार है। हुड्डा सरकार में मंत्री रहे गोपाल कांडा पहले ही जेल में हैं। अब उसके दो और सहयोगी विधायकों पर केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) ने करनाल के कंबोपुरा के सरपंच की हत्या के आरोप में मुकदमा दर्ज कर लिया है। मृतक सरपंच के परिजनों ने इस मामले में पहले ही दोनो विधायकों पर आरोप लगाया था। फिर भी सी.बी.आई. को मामला दर्ज करने में 1 साल से भी ज्यादा का समय लग गया। साफ है कि हुड्डा ने दोनों विधायकों को बचाने की भरपूर कोशिश की। हालांकि अभी भी संदेह है कि जांच निष्पक्ष हो पाएगी या नहीं।

हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने जब से प्रदेश की सत्ता संभाली है तभी से समाज विरोधी तत्व सक्रिय हो गए हैं और वे अपहरण, फिरौती और हत्या की घटनाओं को अंजाम देकर दहशत फैलाने का काम कर रहे हैं। इसके बावजूद हुड्डा सरकार चैन की नींद सो रही है और पुलिस-प्रशासन निष्क्रिय हो गया है। मिर्चपुर कांड, स्वीटी कांड, अपना घर कांड, एयरहोस्टेस आत्महत्या कांड सहित कई ऐसे दिल दहलाने वाले कांड हुए हैं, जिनसे प्रदेश की कांग्रेस सरकार के दामन पर दाग लगा है और सरकार पर आरोपियों को बचाने व पुलिस पर कार्रवाई न करने का आरोप लगा है। पिछले सात सालों में वंचितों के साथ करीब 35 प्रतिशत तक घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। गत एक माह में 14 दुष्कर्म के मामले सामने आए है। 9 सितंबर को हिसार के डाबड़ा में वंचित वर्ग की एक नाबालिग लड़की के साथ आठ युवकों ने दुष्कर्म किया। पीड़ित लड़की के परिजनों द्वारा गुहार लगाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई तो मजबूर व शर्मसार पिता ने जहर खाकर अपनी जान दे दी। जींद जिले के पिल्लू खेड़ा में विवाहित महिला के साथ दुष्कर्म की घटना से पूरे प्रदेश में दहशत का वातावरण बन गया है। दु:ख की बात है कि पीड़ित महिला को घर छोड़कर जाने पर मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उसको पुलिस से सुरक्षा की कोई उम्मीद नजर नहीं आई। उधर गोहाना में एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म व भिवानी के तोशाम के गांव में लगातार बलात्कार फिर रोहतक में 2 दुष्कर्म व करनाल और यमुनानगर के बिलासपुर व  नरवाना के सच्चाखेड़ा व पानीपत में भी हुई घटनाओं ने लोगों में दहशत पैदा कर दी है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 10 अक्तूबर को कैथल जिले के कलायत व यमुनानगर के साढौरा में भी एक-एक लड़की को दुष्कर्म का शिकार बनाया जाना पुलिस-प्रशासन की लापरवाही को ही उजागर करता है। महिलाओं के साथ हो रही घटनाओं और पुलिस की लापरवाही व कार्रवाई न करने की भनक लगते ही राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य शमीना सफी और अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के अध्यक्ष ने हिसार, जींद, गोहाना में पीड़ितों की पुकार सुनी और हरियाणा सरकार से वंचित वर्ग की महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार पर जवाब मांगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को वंचितों के प्रति सजग रहना होगा और उनके साथ भविष्य में कोई और घटना न हो, इसका ध्यान रखना होगा।

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