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तालिबान के गढ़ दक्षिण वजीरिस्तान पर अमरीका के ड्रोन हमलों के खिलाफ कूच पर निकले तहरीके-इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष पूर्व क्रिकेटर इमरान खान को हजारों कार्यकर्ताओं के साथ दक्षिण वजीरिस्तान की सरहद पर रोक ही लिया गया। अमरीका के भारी दबाव पर पाकिस्तानी हुकूमत इमरान को पहले से ही इस मोटर गाड़ियों के काफिले पर निकलने से रोकने की भरसक कोशिश करती रही थी। लेकिन इमरान लाव-लश्कर के साथ 6 अक्तूबर को इस्लामाबाद से करीब 150 कारों के साथ रवाना हो लिए। लेकिन वे 520 किलोमीटर का सफर पूरा करके अगले दिन डेरा इस्माइल खान से कबीलाई इलाके दक्षिण वजीरिस्तान के कोटराई में दाखिल हो पाते उससे पहले ही पाकिस्तानी फौज ने काफिले को रोक लिया। फौज के मुताबिक दिन ढले दक्षिण वजीरिस्तान इलाके में जाना खतरे से खाली नहीं था। सड़क पर घंटे भर की हील-हुज्जत के बाद इमरान का काफिला लौट कर टैंक शहर पहुंचा, जहां रैली हुई और इमरान ने अमरीकी ड्रोन हमलों और पाकिस्तानी हुकूमत के वाशिंगटन के आगे 'बिछ जाने' को लेकर खूब खरी-खोटी सुनाई। दिलचस्प बात यह थी कि इमरान के काफिले में अमरीका के युद्ध विरोधी गुट के करीब 40 लोग भी जुड़ लिए थे।
पाकिस्तान में अगले साल आम चुनाव होने हैं और इसे देखते हुए इमरान की अपना रसूख बढ़ाने की इस कवायद से दूसरी सियासी पार्टियां चिढ़ी हुई हैं।
मलाला और तालिबानी 'बहादुरी'
9 अक्तूबर को जिहादी तालिबानी हत्यारों ने पाकिस्तान के स्वात जिले में अपनी 'बहादुरी' की मिसाल पेश करते हुए 14 साल की मलाला यूसुफजई को उसकी स्कूल बस में घुसकर अपनी गोलियों का निशाना बनाया। मलाला का कसूर यह है कि उसने लड़कियों के पढ़ने-लिखने पर तालिबानी पाबंदी के खिलाफ तब आवाज बुलंद की थी जब वह महज 11 साल की थी। उसने खुद पढ़-लिखकर डाक्टर बनने की बात की थी और दूसरी लड़कियों का हौसला बढ़ाया था। तालिबानी बौखलाकर उसे 'देख लेने' की धमकियां देने लगे। वह डरी नहीं, स्कूल जाती रही। और उस दिन एक 'बहादुर' जिहादी तालिबानी ने उसे 'देख' लिया। गनीमत है सिर में लगी गोली उसके दिमाग के आर-पार नहीं हुई, खोपड़ी से होकर कंधे में धंस गई। बुरी तरह घायल मलाला का पेशावर में इलाज हुआ। डाक्टरों ने कहा, गोली निकाल दी गई है। उसके जिंदा बचने से तिलमिलाए तालिबानी अहसानुल्ला अहसान ने अखबारनवीसों को फोन करके कहा कि 'अबकी बार बच गई, उसे मारने की फिर से कोशिश करेंगे।' मलाला पर कई दस्तावेजी फिल्में बन चुकी हैं और उसे पाकिस्तानी हुकूमत से पहला राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार मिला है।
चिंगारी भड़की तो परमाणु फटेगा
उत्तर कोरिया के कूटनीतिक ने चेताया
संयुक्त राष्ट्र में आमसभा की एक बैठक में उस वक्त दुनियाभर के नुमाइंदों के होश फाख्ता हो गए जब उत्तर कोरिया के एक बड़े वाले कूटनीतिक पाक किल योन ने अपने भाषण में कहा कि कोरियाई प्राय:द्वीप तनाव और संघर्ष के उस मुकाम पर जा पहुंचा है जहां जरा सी चिंगारी भड़की तो परमाणु युद्ध छिड़ सकता है। उत्तर कोरिया के उपविदेश मंत्री पाक ने उस भाषण में दक्षिण कोरिया की ली म्युंग बाक सरकार की अमरीका से नजदीकियां बढ़ाने वाली नीतियों पर इसका ठीकरा फोड़ा। पाक ने यह भी कहा कि बाक की सरकार ने दोनों कोरियाओं के बीच तमाम करारों को धता बताते हुए दोनों देशों के बीच रिश्तों को ताक पर रख दिया है। अमरीका की उत्तर कोरिया पर हमेशा से रहीं तिरछी नजरों ने कोरियाई प्राय:द्वीप में तनाव सातवें आसमान पर चढ़ा दिया है। इससे ये इलाका दुनिया का सबसे खतरनाक संवेदनशील इलाका बन गया है जहां जरा सी चिंगारी परमाणु युद्ध भड़का सकती है।
इतना ही नहीं, उत्तर कोरिया के एक फौजी अफसर ने 9 अक्तूबर को यहां तक कह दिया कि उत्तर कोरिया 'परमाणु के बदले परमाणु' और 'मिसाइल के बदले मिसाइल' दागने को तैयार है। उस अफसर ने कहा कि 'हम यह बात बिल्कुल नहीं छुपा रहे हैं कि राकेटों से लैस हमारी क्रांतिकारी फौज के निशाने की जद में न केवल कोरियाई प्राय:द्वीप में दुश्मन दक्षिण कोरिया और अमरीका की फौजें हैं बल्कि जापान, गुआम और अमरीकी धरती तक है।'
वाह, मालावी की बांदा!
भीषण कड़की के दौर से गुजरते अफ्रीकी देश मालावी की राष्ट्रपति जोएस बांदा भी कमाल की हैं। 'मुश्किल दौर' में देशवासियों के साथ उनका दर्द बांटते हुए बांदा ने अपनी पगार में 30 फीसदी की कटौती की खुद ही घोषणा कर दी। उनकी पगार अब सैंतीस हजार पौंड से घटकर छब्बीस हजार पौंड सालाना हो जाएगी। बांदा की पगार में कटौती की तपिश उपराष्ट्रपति की पगार पर भी पड़ने वाली है और वहां के आलीशान मर्सिडीस कारों में घूमने वाले मंत्रियों को भी अपनी जेब ढीली होने के सौ फीसदी आसार नजर आने लगे हैं। अभी अगस्त में मालावी में मुद्रास्फीति 25 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, उससे पहले मई में मालावी की मुद्रा में एक तिहाई का अवमूल्यन हुआ था। इसके चलते पहले ठीक-ठाक रसूख रखने वालों के लिए भी आटा-दाल खरीदना भारी पड़ने लगा है। यह देखकर 62 साल की बांदा ने भी अपनी पगार में कटौती का फरमान जारी कर दिया। उनका कहना है कि 'हमें अपने देश को खड़ा करना है। इस कदम से अगले राष्ट्रपति को शायद बेहतर पगार मिल सकेगी।' अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता है जब बांदा ने राष्ट्रपति के हवाई जहाज और पूर्व राष्ट्रपति मुतारिका द्वारा हासिल की गईं चमचमाती लंबी कारों के बेड़े को बेचने की घोषणा की थी। बहरहाल, बांदा के इस कारनामे से वहां के मंत्रियों के पसीने छूट रहे हैं कि अब उनके भत्तों और पगार पर गाज गिरेगी। उनकी सरकारी मर्सिडीस कारें भी ले ली जाएंगी।
दूसरी तरफ भारत के प्रधानमंत्री, मंत्री और सांसद हैं जो महंगाई से बेहाल जनता की दुश्वारी पर मुंह बिचकाकर मुस्कुराते हुए संसद में एक झटके में सर्वसहमति से अपनी तनख्वाहें, इलाके के लिए फंड और भत्ते बढ़ाने के प्रस्ताव पर मेजें ठोंककर 'आई' कह देते हैं। क्या छोटे से मालावी से बड़े से भारत के छोटे दिल के नेता कुछ सीखेंगे?आलोक गोस्वामी
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