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किसी जंगल में चार बैल रहते थे। चारों मोटे-ताजे और हट्टे-कट्टे थे। चारों एक साथ मिलकर रहते थे। शेर, जो जंगल का राजा कहा जाता था, उनसे डरता था। चारों एक साथ घूमते, रहते और चरते थे। चारों में बड़ा मेल था। जंगल में जहां भी अच्छी घनी हरी घास होती, वे वहीं चरते थे। जंगल के अन्य पशु उनकी इस बात से ईर्ष्या करते थे। लोमड़ी सबसे अधिक जलती थी।
एक बार लोमड़ी की भेंट जंगल में शेर से हो गई। लोमड़ी ने शेर से कहा, 'दद्दा, आप आज कल कहां छिपे रहते हैं, दिखाई ही नहीं देते।' शेर बोला, 'बहिन, क्या बताऊं, बहुत दिनों से भरपेट भोजन ही नहीं मिला है। चारों बैलों ने मुसीबत खड़ी कर रखी है। मेरी हिम्मत ही उनके सामने आने की नहीं होती। इधर-उधर जो कुछ खाने को मिल जाता है, गुजर कर लेता हूं। मैं बड़ी मुसीबत में फंसा हूं।'
लोमड़ी होशियार थी। वह कहने लगी, 'भाई, तुम जंगल के राजा शेर और बैलों से डरते हो। वे तो आपका भोजन हैं। आप उन्हें खाकर ताकतवर बन जायेंगे। आप कहें तो आपकी सहायता करूं।' शेर बोला, 'बहिन, वे चारों इकट्ठे रहते हैं। चारों बहुत बलवान हैं। अगर मुझे देख लिया तो मारते-मारते मेरा तो कचूमर ही निकाल देंगे। हां एक-एक करके तो मैं उन्हें आसानी से मार सकता हूं।'
लोमड़ी कुछ सोचती आगे बढ़ गई। शेर भी चुपचाप अपनी गुफा में घुस गया। लोमड़ी अवसर की तलाश में रहने लगी। उसने उन चारों बैलों में फूट डालने की योजना बनाई। वह उन्हें अलग-अलग करना चाहती थी। उसकी समझ में यह बात आ गई कि उनका बल एकता में है। अलग-अलग होने पर शेर एक-एक कर उन्हें मार सकता है।
इधर भयंकर गर्मी का मौसम आया। गर्मी के कारण पानी सूख गया। जंगल में हरी घास भी कम ही दिखाई देने लगी। तभी अचानक लोमड़ी को एक बैल अलग अकेले एक स्थान पर चरता दिखाई दिया। लोमड़ी तुरन्त दौड़ी-दौड़ी उस बैल के पास पहुंच कर कहने लगी, 'भैया, क्या तुम्हें मालूम है कि तुम्हारे साथी अन्य तीनों बैल क्या गुपचुप योजना बना रहे हैं?'
इतना सुन कर बैल पहले तो चुप रहा। उसने लोमड़ी की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। पर लोमड़ी नमक मिर्च लगा कर कहती रही। आखिरकार बैल को लोमड़ी की बात जंच गई। अब यह बैल उन तीनों से अलग रहने, घूमने और चरने लगा। उसके मन में लोमड़ी ने बार-बार कह-कह कर यह बात पक्की तरह बैठा दी कि शेष तीनों बैल उससे घृणा करते हैं।
लोमड़ी अब प्राय: इस बैल से मिलने लगी। लोमड़ी जब भी मिलती वह बैल से यही कहती कि अन्य तीनों बैल तुम से ईर्ष्या करते हैं। बैल अब पूरी तरह लोमड़ी के कहने में आ चुका था। यह अब बिल्कुल अकेला रहने लगा। उसके लिए अन्य तीनों बैल जैसे शत्रु हो गए थे। यह उनकी ओर आंख उठा कर देखता भी न था। उन तीनों ने भी इसकी चिंता करनी छोड़ दी।
अब लोमड़ी ने इसी प्रकार थोड़े ही दिनों में एक-एक बैल को अकेला पाकर वही बात बता कर चारों बैलों को आपस में एक दूसरे का शत्रु बना दिया। लोमड़ी ने उन बैलों के बीच घृणा और फूट के बीज बो दिए। चारों बैल अब अलग-अलग रहते, घूमते और चरते थे। आश्चर्य की बात यह थी चारों हमेशा साथ मिलकर रहने वाले बैल अब एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए।
लोमड़ी अपनी सफलता पर फूली न समाती थी। वह अब शेर के पास दौड़ी-दौड़ी गई और बोली, 'भैया, मैंने अब सब ठीक-ठाक कर लिया है। आपको चिंता करने की कोई बात नहीं है। मैंने अपनी योजना से उन चारों को अलग-अलग कर दिया है। इतना ही नहीं, वे अब एक-दूसरे के इतने शत्रु बन गए हैं कि एक-दूसरे की मृत्यु पर खुशी मनायेंगे। उनमें अब प्रेम, एकता और संगठन नाम की कोई बात बाकी नहीं रह गई है। आप चलकर अपना काम करें।'
शेर मन ही मन बहुत खुश हुआ। शेर ने दूर से देखा कि चारों सदा साथ रहने वाले बैल अब चारों दिशाओं में अलग-अलग चर रहे हैं। शेर गुफा से निकला। उसने जोर की दहाड़ लगाई। वह आज काफी समय बाद शिकार करने गुफा से बाहर निकला था। बैल निश्चिन्त हो पहले की तरह निडर हो चर रहे थे।
शेर एक बैल की तरफ मुड़ा। लोमड़ी पीछे छिप गई। वह नहीं चाहती थी कि बैल उस पर किसी तरह का शक करे। शेर उस बैल पर झपटा। यह दृश्य देख शेष तीनों बैल खूब खुश हुए। उन्होंने सोचा, चलो एक शत्रु कम हुआ। अब हम चारों तरफ घूम-घूम कर चरा करेंगे। अब घास का अभाव नहीं रहेगा।
उधर शेर ने पलक झपकते बैल को चीर डाला। उसके मुख से एक धीमी चीख निकल कर रह गई। पुष्ट मांस खाकर शेर ने अपनी भूख मिटाई। लोमड़ी ने बाद में बची-खुची हड्डियां खाकर अपनी इच्छा पूर्ण की। कुछ दिन बाद शेर ने दूसरे बैल को धर दबोचा। शेष दोनों बैल खुश हुए। बेचारों को क्या पता था कि उनकी भी वही गति होने वाली है।
कुछ दिन बाद शेर ने तीसरे बैल पर धावा बोल दिया। अब शेर भी पहले जैसा न रह गया था। चौथा बचा बैल सोचने लगा चलो अच्छा ही हुआ अब मैं सारे जंगल की घास का स्वामी बन गया हूं। वह बहुत खुश था। उसने अपनी मृत्यु की कभी कल्पना भी न की थी।
अगले ही दिन शेर ने उसे पकड़ कर मार डाला। उस बेचारे बैल के सारे सपने चकनाचूर हो गए। लोमड़ी ने भर पेट बैलों का मांस खाया, अब शेर शान से निर्भय हो घूमता और मनचाहे पशुओं को मार कर खाता। सही मायने में वह जंगल का राजा था। सच है हमें परस्पर मिलकर एकता से रहना चाहिए। 'संगठन में शक्ति है।' हमें यह सत्य सदा याद रखना चाहिए।
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