आओ गाएं हिन्दी राग
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व्यंग्य वाण
विजय कुमार
पिछले दिनों जब–जब शर्मा जी को फोन किया, पता लगा कि वे व्यस्त हैं, पर कल उनके घर जाकर मैंने उन्हें पकड़ ही लिया।
– क्या बात है शर्मा जी, इतने दिन कहां फरार रहे.. ?
– भई, पिछले महीने 14 सितम्बर था न..।
– तो..?
– तुम अनपढ़ आदमी इसे नहीं समझोगे। 14 सितम्बर, 1949 को हिन्दी भारत की राजभाषा और देवनागरी उसकी अधिकृत लिपि घोषित की गयी थी। इसलिए हर 14 सितम्बर को हम 'हिन्दी दिवस' मनाते हैं। सरकारी आयोजनों में करोड़ों रुपये का बजट रहता है। पैसा पूरा खर्च हो जाए, इस लिए पहले हम 'हिन्दी सप्ताह' मनाते थे और अब 'हिन्दी पखवाड़ा' चल निकला है।
– तो आप भी कुछ कार्यक्रमों में गये होंगे ?
– कुछ नहीं, कई कार्यक्रमों में गया था। इन दिनों हिन्दी का हर कवि और लेखक व्यस्त रहता है। 15 दिन में 20 जगह जाकर मैंने भी अपना इस साल का हिन्दी सेवा का कोटा पूरा किया है।
उनकी मेज पर अभी तक कई निमन्त्रण पत्र रखे थे। एक को देखते ही मैं चौंका, चूंकि वह तो पूरा अंग्रेजी में ही छपा था।
– शर्मा जी, हिन्दी दिवस पर यह अंग्रेजी का निमन्त्रण पत्र ?
– हां, असल में यह जिस मंत्रालय का कार्यक्रम है, उसके मंत्री जी हिन्दी बिल्कुल नहीं जानते। यदि निमन्त्रण पत्र हिन्दी में होता, तो मंत्री जी न आते, और उनके न आने से कार्यक्रम का होना न होना बराबर ही था। इसलिए…
– और इसे देखिये। बहुत कीमती चिकने कागज पर चार रंगों में छपा यह निमन्त्रण पत्र भी अंग्रेजी में ही है।
– इसकी प्रायोजक अमरीका की एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी थी। पंचतारा होटल में हुए कार्यक्रम में इच्छानुसार खाने और पीने का प्रबंध भी था। कुछ लोग वहां बड़े आनंद में रहे। मैंने भी बहुत दिन बाद….।
– शर्मा जी, यह निमन्त्रण पत्र तो 'हिन्दी सभा' की ओर से है, पर इसमें रोमन अंकावली का प्रयोग किया गया है।
– यह रोग तो पूरे देश में फैल गया है वर्मा। इन्हें अन्तरराष्ट्रीय अंक कहकर हम अपनी विरासत को ही छोड़ रहे हैं। कोई इनसे यह नहीं पूछता कि चीन, रूस, जापान, जर्मनी या जापान जैसे देश अपनी भाषा और अंकावली के साथ लगातार आगे कैसे बढ़ रहे हैं?
– आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं शर्मा जी। नयी पीढ़ी हिन्दी बोलती तो है, पर वह उसे पढ़ना और लिखना नहीं जानती। जैसे संस्कृत की उपेक्षा से ज्ञान–विज्ञान के भंडार लाखों ग्रन्थ बेकार हो गये, ऐसे ही 50 साल बाद हिन्दी की पुस्तकें पढ़ने वाले भी नहीं बचेंगे।
– हां, असल में नेहरू को हिन्दी से घृणा थी और राजीव गांधी को अंग्रेजी से प्रेम। इसलिए एक ने हिन्दी का उर्दूकरण किया और दूसरे ने अंग्रेजीकरण। मनमोहन सिंह जो हिन्दी भाषण पढ़ते हैं, वह उर्दू में लिखा होता है। मैडम जी और राहुल बाबा के भाषण रोमन में लिखे होते हैं। नयी पीढ़ी के आदर्श फिल्मी सितारे और क्रिकेट के खिलाड़ी भी अंग्रेजी में गिटपिट करने में अपनी शान समझते हैं। जब शीर्ष पर बैठे लोगों का ये हाल है, तो युवाओं को दोष क्यों दें?
– तो ऐसे हिन्दी दिवस के आयोजन से क्या लाभ है शर्मा जी?
– कुछ नहीं। जैसे पितृपक्ष में हम अपने पुरखों को याद करते हैं, वैसे ही ये हिन्दी का वार्षिक कर्मकांड है। साल भर हिन्दी के नाम पर नाक सिकोड़ने वाले इन दिनों इसके हितैषी बन जाते हैं।
– तो फिर इस तमाशे को बंद क्यों नहीं कर दिया जाता?
– क्योंकि इस नाम पर करोड़ों रु0 खर्च होते हैं, जिससे ऊपर से नीचे तक सबकी जेब भारी हो जाती हैं। कुछ हिन्दी लेखकों का भी इस बहाने अखबारों में नाम छपता है। कुछ पुस्तकों का विमोचन हो जाता है, तो जिस तमाशे से सबको लाभ हो, उसे बंद क्यों करें?
– पर हिन्दी की इस दुर्दशा से मुझे बहुत कष्ट होता है।
– वर्मा जी, हर घर में कुछ ऐसे कपड़े होते हैं, जिन्हें विशेष अवसर पर ही निकालते और पहनते हैं। ऐसे ही हिन्दी और देवनागरी है, जिसे सितम्बर मास में ओढ़ा और बिछाया जाता है। बस…।
मैं भारी मन से उठ खड़ा हुआ। चलते हुए मैंने देखा, शर्मा जी भी अपनी आंखें पोंछ रहे थे।
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