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रामलीलाओं के आयोजन में सेकुलरी बाधा-अरुण कुमार सिंह-

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Oct 6, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Oct 2012 16:52:37

 

दिल्ली की रामलीलाएं देशभर में उसी तरह विख्यात हैं जैसे पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा व महाराष्ट्र का गणेशोत्सव। शारदीय नवरात्रों के अवसर पर दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में हजारों रामलीलाएं होती हैं। केवल दिल्ली में ही 1012 रामलीलाएं होती हैं। यानी रामलीला दिल्ली की पहचान बन चुकी है। पर दिल्ली की इस वर्षों पुरानी पहचान को समाप्त करने के लिए लगातार सेकुलर बाधाएं खड़ी की जा रही हैं।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली में रामलीलाएं वर्षों से विभिन्न पाकर्ों, मैदानों और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर होती रही हैं। ये स्थान दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), दिल्ली नगर निगम (एमसीडी), नई दिल्ली नगरपालिका परिषद् (एनडीएमसी) और भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) के अधीन हैं। रामलीला कराने वाली समितियां इन विभागों से पहले स्थान सुरक्षित कराती हैं। किन्तु ये सभी सरकारी विभाग पहले आसानी से रामलीला समितियों को जगह उपलब्ध नहीं कराते हैं। दिल्ली के तीनों नगर निगमों में भाजपा का राज है इसलिए एमसीडी के पार्क आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। किन्तु डीडीए, एनडीएमसी और एएसआई वाले रामलीला समितियों को खूब परेशान करते हैं। ये लोग स्थान उपलब्ध कराने के लिए बेतुकी शर्तें लगाते हैं। बहुत मुश्किल से इन सरकारी विभागों से रामलीला के लिए स्थान मिल पाते हैं। इसके बाद दिल्ली पुलिस से रामलीला के लिए लाइसेंस लेना पड़ता है। लाइसेंस देने के लिए पुलिस ऐसी-ऐसी शर्तें लगाती है कि जिन्हें किसी भी सूरत में पूरा नहीं किया जा सकता है। श्रीरामलीला महासंघ के महामंत्री श्री दिनेश शर्मा कहते हैं, 'पुलिस की एक बड़ी शर्त होती है रामलीला स्थान की चारदीवारी करवाना। क्या यह संभव है? किसी खुले मैदान की चारदीवारी करवाने में कितना खर्च आएगा, वह कौन भरेगा? यह व्यावहारिक भी नहीं है। फिर भी ऐसी शर्तें लगाई जाती हैं। पुलिस यह भी कहती है कि रात 10 बजे तक ही रामलीला करो, यह भी संभव नहीं है। यदि प्रतिदिन 2-3 घंटे ही रामलीला होगी तो 9 या 10 दिन में रावण वध नहीं हो सकता है। इसलिए पुलिस की यह शर्त भी ठीक नहीं है।'

श्री दशहरा कमेटी पंजाबीबाग के अध्यक्ष श्री रतनलाल गुप्ता ने बताया कि उनकी कमेटी पिछले 44 साल से पंजाबीबाग में रामलीला करवाती है। पर इस वर्ष अभी तक पुलिस ने लाइसेंस नहीं दिया है। पुलिस का कहना है कि इस रामलीला के कारण पंजाबीबाग के पास रिंग रोड पर यातायात रुक जाता है, जिससे लोगों को कई दिन तक बड़ी परेशानी होती है। पुलिस यह भी कह रही है कि पंजाबीबाग में होने वाली रामलीला पीरागढ़ी के पास हो। किन्तु कमेटी वाले इसके लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि यातायात जाम की वजह से वर्षों से हो रही रामलीला को रोकना हिन्दुओं की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना है। लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि हर शुक्रवार को मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए दिल्ली की कई सड़कें घंटों बन्द कर दी जाती हैं। क्या उस समय आम लोगों को दिक्कत नहीं होती है? पुलिस नमाजियों को सड़क पर बैठने से क्यों नहीं रोकती है? क्या नियम-कानून सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही हैं? श्री दशहरा कमेटी पंजाबीबाग की कार्यकारिणी के सदस्य श्री रवीन्द्र गुप्ता कहते हैं, 'दिल्ली की रामलीला समितियां रामलीलाओं के द्वारा रामकथा को जन-जन तक पहुंचा रही हैं। इसलिए उन्हें प्रोत्साहन मिलना चाहिए, पर दुर्भाग्य से उन समितियों को हतोत्साहित किया जा रहा है। रामलीला समितियों से यह भी कहा जाता है कि केवल रामलीला करो, मेला मत लगाओ। यह कैसी बेतुकी बात है? लोग बाल-बच्चों के साथ रामलीला देखने आते हैं। उन बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले लगाए जाते हैं, खाने-पीने की चीजों की दुकानें लगती हैं। पर पुलिस कहती है कि रामलीला स्थल पर न तो दुकानें होंगी और नही मनोरंजन का कोई साधन। संस्कृति-विरोधी सेकुलर सरकार व प्रशासन इस देश की उज्ज्वल परम्परा को ही नष्ट करना चाहते हैं। हम उनकी मंशा पूरी नहीं होने देंगे। किसी भी सूरत में रामलीला होगी और धूमधाम से होगी।'

उधर, रामलीला समितियां वर्षों से मांग कर रही हैं कि रामलीला के दौरान उन्हें बिजली मुफ्त दी जाए। इसके लिए हर वर्ष मुख्यमंत्री से मिलकर अनुरोध भी किया जाता है। फिर भी उनकी यह मांग पूरी नहीं होती है। उल्टे व्यावसायिक दर (10 रु. प्रति यूनिट) से रामलीला के लिए बिजली उपलब्ध कराई जाती है। वहीं दूसरी ओर दिल्ली की जामा मस्जिद को बेहिसाब बिजली दी जा रही है। जामा मस्जिद के पास करीब चार करोड़ रु. का बिजली बिल बकाया है। तीन साल से जामा मस्जिद का बिजली बिल नहीं भरा गया है। बिजली बिल न भरने से कुछ दिन पहले जामा मस्जिद की बिजली काट दी गई थी। पर जामा मस्जिद के पास बिजली के इतने 'कनेक्शन' हैं कि उसकी बिजली जलती रही।

सेकुलर सरकार की नजर में सेकुलरवाद शायद यही है कि रामलीलाओं के लिए व्यावसायिक दर पर बिजली दो और जामा मस्जिद को बिजली के अनेक 'कनेक्शन' दो, ताकि बिजली बिल बकाया होने पर एक 'कनेक्शन' कट भी जाए तो दूसरे 'कनेक्शन' से जामा मस्जिद को बिजली मिलती रहे।

दिल्ली पुलिस भी शायद अपने सेकुलर आकाओं के इशारे पर काम करती है। आए दिन दिल्ली में अपराध बढ़ रहे हैं। लोगों की न जान सुरक्षित है, न ही इज्जत, लड़कियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म तो जैसे आए दिन की बात हो गई है, न धन सुरक्षित है, न घर। पर पुलिस तो कानून-व्यवस्था के नाम पर रामलीलाओं के मंचन बाधा डालने का प्रयास कर रही है। सच्चाई तो यह है कि रामलीला के दौरान कभी भी कानून-व्यवस्था नहीं बिगड़ती है। रामलीला समितियों के पास अपने सुरक्षाकर्मी होते हैं और हजारों स्वयंसेवक, जो हर तरह की व्यवस्था को संभालते हैं। रामलीला के माध्यम से सामाजिक सद्भावना भी बढ़ती है। अनेक पात्र मुस्लिम समुदाय से होते हैं। लोग उनकी कला की बड़ी सराहना करते हैं।

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