|
गत दिनों हरियाणा के कुरुक्षेत्र स्थित गीता निकेतन वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय परिसर के विद्या भारती संस्कृति शिक्षण संस्थान के सभागार में 'जम्मू-कश्मीर समस्या एवं समाधान' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें शहर के प्रतिष्ठित गण्यमान्य लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सह सम्पर्क प्रमुख श्री अरुण कुमार ने कहा कि कश्मीर की समस्या को बढ़ाने में मुख्य रूप से केन्द्र की सरकार है जो लगातार कई साल से भेदभाव का रवैया अपना रही है और तुष्टीकरण की नीति पर चल रही है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर अलगावादी राज्य नहीं है। वहां अनावश्यक रूप से देश-विरोधी विचारधारा को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसके पीछे मुट्ठी भर लोग हैं। इससे भी ज्यादा दोषी ऐसे लोगों के प्रति सरकार की भूमिका है। उन्होंने कहा कि जम्मू की बहुमत आबादी कभी भी भारत से जुदा होना नहीं चाहती। वह कई बार इस बात को स्पष्ट भी कर चुकी है लेकिन केन्द्र की सरकार ने कभी भी हकीकत को समझने की कोशिश नहीं की। इसी कारण आज अलगाववादी लोग मुंह उठा रहे हैं और देश में करीब 85 प्रतिशत आबादी के बावजूद देशभक्त हिन्दू समाज सरकार की दोगली नीति का शिकार होकर बेगाना महसूस कर रहा है।
श्री अरुण कुमार ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का 85 प्रतिशत भू-भाग जम्मू एवं लद्दाख क्षेत्र है। जिसमें आज तक भारत के खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं हुआ है। जम्मू कश्मीर में डोगरा, बौद्ध, कश्मीरी हिंदू, गुर्जर, पहाड़ी, शिया मुसलमान, सिख जैसे समुदाय बहुमत में हैं जो कभी अलगाववाद का समर्थन नहीं करते। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को लेकर कोई विवाद नहीं है। यहां तक कि पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय, संविधान एवं आजाद जम्मू-कश्मीर के न्यायालयों ने भी कई निर्णयों में आज तक जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के दावे को स्वीकार नहीं किया। वहां के शासनकर्ताओं ने दिल्ली के राजनेताओं के सहयोग से पिछले 64 वर्षों में धारा-370 का संवैधानिक दुरुपयोग किया है। श्री अरुण कुमार ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में महिलाओं से भेदभाव, जम्मू एवं लद्दाख के साथ भेदभाव एवं शोषण पिछले कई दशकों से हो रहा है। वास्तव में जम्मू-कश्मीर की देशभक्त शक्तियों के साथ आज देश को खड़ा होने की आवश्यकता है। डा. गणेश दत्त वत्स
टिप्पणियाँ