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तीस तिया नब्बे, यानी तीस के तिगुने नब्बे ही होते हैं। तुम पूछोगे- इस पहाड़े का प्रयोजन? तो सुनो एक सच्ची कहानी। इंग्लैण्ड के लन्दन नगर में एक व्यक्ति था, जिसका नाम था मेकाइल गिलबर्ट। वह सालिसिटर (वकील) था और दिन-रात अपने इसी व्यवसाय में व्यस्त रहता था। जब वह अपने लन्दन के कार्यालय से गांव वाले घर की ओर चलता तो चाहे मोटर हो या ट्रेन, उसके पास अपने व्यवसाय के अलावा भी कोई न कोई पुस्तक अवश्य होती और होती लिखने की एक दैनन्दिनी या मोटी कापी, जिस पर वह लन्दन से गांव तक की यात्रा में प्रतिदिन ही कुछ न कुछ लिखता दिखाई देता। कोई पूछता- आप यहां गाड़ी में भी इतना लिखते हैं। गांव तक बराबर लिखते ही रहते हैं, न समाचारपत्र पढ़ते हैं, न बातचीत करते हैं, न बाहर के ये लुभावने दृश्य ही देखते हैं, ऐसा क्यों? तब गिलबर्ट कह देते- 'तीस तिया नब्बे'। यात्री पूछते- 'इस पहाड़े का अर्थ?' वे कहते- 'देखो, आप लोग बेकार की गपशप में जो समय लगाते हैं, मैं उतने समय में प्रतिदिन तीन पृष्ठ लिख लिया करता हूं। इस प्रकार महीने भर में 90 पृष्ठ लिखे जाते हैं। इस पहाड़े का यही अर्थ है। सुनने के बाद वे लोग बातचीत करने में संकोच अनुभव करते कि मि. गिलबर्ट के लिखने में बाधा पड़ेगी तो नींद लेने लगते। पर अकेले गिलबर्ट थे जो वहां गांव आने तक लिखते ही रहते थे। एक दिन वही पृष्ठ पुस्तक के रूप में छप कर पुस्तक केन्द्रों पर पाठकों को नयी सामग्री देते। यही सालिसिटर गिलबर्ट अपने देश के एक जाने-माने लेखक के रूप में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं।
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