लोकतंत्र बनाम जिहादी तंत्र
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जम्मू–कश्मीर में आतंकवाद का नया दौर
पंथ निरपेक्षता, एक राष्ट्रीयता, संघीय ढांचा इत्यादि भारत की संवैधानिक मान्यताओं को खुली चुनौती दे रहे जम्मू–कश्मीर में सक्रिय अलगाववादियों/आतंकियों ने एक नयी खतरनाक रणनीति के अंतर्गत लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्थाओं को भी हिंसा के बल पर तोड़ डालने का निश्चय किया है। लश्करे तोएबा और जैशे मुहम्मद के दिमाग की उपज इस योजना से हिंसक जिहाद का विस्तार होगा। प्रदेश और केन्द्र की सरकारें तमाशा देख रही हैं। वास्तव में कांग्रेस और एनसी की यही कश्मीर नीति समस्या की जड़ है।
स्वदेश चिन्तन
नरेन्द्र सहगल
जम्मू–कश्मीर में आजादी समर्थक जिहादी आतंकियों ने
पंचों सरपंचों पर तानी बंदूकें
कश्मीर घाटी में व्याप्त पाकिस्तान प्रायोजित एवं पोषित जिहादी आतंकवाद ने एक नया परंतु पहले से भी खतरनाक मोड़ अख्तियार कर लिया है। जम्मू-कश्मीर सहित सारे भारत की जनता द्वारा स्वीकृत संवैधानिक व्यवस्थाओं पंथनिरपेक्षता, एक राष्ट्रीयता और संघीय ढांचे की धज्जियां उड़ाने के पश्चात अब आतंकियों ने लोकतांत्रिक प्रशासन को भी बंदूक की नोक पर समाप्त करने का जिहादी अभियान छेड़ दिया है। गत वर्ष अप्रैल मास में तीन दशकों के पश्चात हुए पंचायत चुनावों में जीतकर आए 29 हजार पंचों और चार हजार सरपंचों को पदों से हट जाने अथवा मौत का सामना करने के फरमान जारी कर दिए हैं। कुख्यात आतंकी संगठन लश्करे तोएबा की कश्मीर आधारित इकाई ने यह जिहादी आदेश जारी करके तीखा संदेश दे दिया है कि जम्मू-कश्मीर में अब लोकतंत्र नहीं बल्कि जिहादी तंत्र ही चलेगा। समाचारों के अनुसार अब तक आतंकियों ने एक दर्जन ग्राम प्रतिनिधियों की हत्या कर दी है। इनमें उत्तरी कश्मीर के नोपुरा गांव के नायब सरपंच मुहम्मद शफी और एक दूसरे गांव के सरपंच गुलाम मुहम्मद शामिल हैं जिन्हें त्यागपत्र न देने पर गोलियों से भून दिया गया।
लोकतंत्र की हत्या करने वाले इन जिहादियों द्वारा फैलाई जा रही दहशत के परिणमस्वरूप पांच सौ से ज्यादा पंचों एवं सरपंचों ने अपने त्यागपत्रों की सार्वजनिक घोषणा स्थानीय समाचार पत्रों तथा मस्जिदों में कर दी है। स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार बेबस हो चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर पंचायत कांफ्रेंस के अध्यक्ष शफीक मीर ने एक बयान जारी करके कहा है कि 'पंचायत सदस्यों को मौत के मुंह में धकेलने की जिम्मेदार राज्य सरकार है। हम गत अप्रैल मास से ही सुरक्षा की मांग कर रहे हैं परंतु सरकारी एजेंसियां हमारी चिंताओं और जरूरतों की जानबूझकर जनदेखी कर रही है।' पिछले सप्ताह जम्मू-कश्मीर के ताजा हालात की जानकारी लेने जम्मू-कश्मीर गए भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इन भयानक परिस्थितियों की जानकारी दी थी परंतु कोयले की कालिख को उतारने में व्यस्त प्रधानमंत्री को लोकतंत्र पर पुत रही कालिख नजर नहीं आ रही।
अब ग्राम स्तर तक पहुंच रहे आतंकवाद के लिए
एन.सी.-कांग्रेस सरकार गुनाहगार
हैरानी की बात है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला प्रदेश में अमन-चैन का माहौल बना देने का दावा ठोके जा रहे हैं और उधर लश्करे तोएबा और जैशे मुहम्मद जैसे जिहादी संगठन संयुक्त रूप से पंचों/सरपंचों की हत्या की योजना बना रहे हैं। प्रदेश की सरकार सहित सभी कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक दल तथा अलगाववादी संगठन जम्मू-कश्मीर से भारतीय सुरक्षा बलों की संख्या कम करने और उनके विशेषाधिकारों को घटाने की मांग उठा रहे हैं और उधर आतंकवादी अपनी हिंसक गतिविधियों को ग्राम स्तर तक ले जाने की तैयारियां कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर पंचायत कांफ्रेंस के संयोजक शफीक मीर ने राज्य सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर वर्तमान हालात पर काबू पाने के लिए सख्त कदम न उठाए गए तो तीन दशकों के बाद अस्तित्व में आई पंचायती राज व्यवस्था के चीथड़े उड़ जाएंगे। मीर के अनुसार 'सरकार का यह निष्कर्ष ही गलत था कि पंचायती चुनाव हिंसा पर विजय के प्रतीक हैं।' सर्वविदित है कि आतंकी संगठनों ने चुनावों के दौरान ही इसमें भाग लेने वालों को धमकियां देनी शुरू कर दी थीं कि वे परिणाम भुगतने को तैयार रहें।
जिहादी आतंकवादियों की इन धमकियों से ग्रामवासी एवं उनके द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि तो भयभीत हो गए हैं परंतु प्रदेश और केन्द्र की सरकारों पर कोई असर नहीं हुआ। अपनी सरकार की पीठ थपथपाने वाले उमर अब्दुल्ला अब शहरों में स्थानीय निकायों के चुनाव करवाने की मंशा पाल रहे हैं। मुख्यमंत्री के अनुसार चुनाव अगले दो महीनों में सफलतापूर्वक करवा लिए जाएंगे। जबकि आतंकी संगठनों ने इन चुनावों को हिंसा के द्वारा विफल करने की रणनीति अभी से तैयार कर ली है। ध्यान देने की बात यह है कि नेशनल कांफ्रेंस सरकार को समर्थन दे रही कांग्रेस के कुछ नेता और मुख्य विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी मुख्यमंत्री के इस विश्वास पर सवालिया निशान लगा रहे हैं कि प्रदेश में शांति का माहौल है और पंचायती चुनावों की तरह शहरी निकायों के चुनाव भी आसानी से करवा लिए जाएंगे।
सत्तालोलुप नेताओं की बुजदिल राजनीतिक मनोवृत्ति से
टूटेगा सुरक्षा जवानों का मनोबल
यह भी कितना हास्यास्पद है कि कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई के नेता मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की ढिलाई से खफा हो रहे हैं परंतु कांग्रेस हाईकमान इस गंभीर मुद्दे पर चिंतित न होकर 'मुलायम स्टाइल राजनीति' कर रही है। जम्मू-कश्मीर में हिंसा पर काबू पाने में विफल रही नेशनल कांफ्रेंस की आलोचना भी करती है और इस पूर्णतया विफल सरकार से समर्थन भी वापस नहीं लेती। जम्मू स्थित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य गुलचैन सिंह चाड़क ने तो यहां तक कह दिया है कि राज्य सरकार ने पंचायती राज एक्ट के अंतर्गत सभी पंचायतों को अभी तक पूरे अधिकार ही नहीं सौंपे, इसीलिए पंच और सरपंच निहत्थे और असुरक्षित हो गए हैं। कांग्रेसी नेता के इस रहस्योद्घाटन के बहुत गंभीर अर्थ निकलते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि अलगाववादी/आतंकी संगठनों से डरकर मुख्यमंत्री ने पंचों/सरपंचों को सुरक्षा अधिकारों से वंचित किया है? वास्तविकता तो यही है कि जम्मू-कश्मीर सरकार ऐसे प्रत्येक अवसर पर जिहादी तत्वों के आगे घुटने टेककर जनता की सुरक्षा को ही खतरे में डाल देती है।
इस सीमावर्ती राज्य में लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था पर मंडराया यह नया खतरा इसी घुटनेटेक नीति का परिणाम है। यह भी एक सच्चाई है कि लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था की सबसे छोटी ग्राम स्तरीय इकाई पर जिहादी तंत्र के हो रहे कब्जे पर कांग्रेस पार्टी अपने राजनीतिक स्वार्थों की रोटियां सेंक रही है। इसी सप्ताह दिल्ली में सम्पन्न आल इंडिया कांग्रेस कमेटी की बैठक में राहुल गांधी ने इस विषय पर चिंता तो प्रकट की परंतु अपने मित्र मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को किसी सख्त कार्रवाई के लिए कुछ भी कहना उन्होंने उचित नहीं समझा। आखिर क्यों? क्या इसलिए कि जम्मू-कश्मीर की गठबंधन सरकार में कांग्रेस शामिल है और केन्द्र में नेशनल कांफ्रेंस के नेता और उमर के अब्बा मंत्री हैं? और तो और जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के प्रधान सैफुद्दीन सोज ने तो यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया कि ग्राम स्तर पर प्रत्येक पंच और सरपंच को सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई जा सकती। इस प्रकार के कायराना बयानों से क्या आतंकवाद से जूझ रहे सुरक्षा जवानों का नैतिक बल कमजोर नहीं होगा?
फुंकार भर रहे अलगाववादी अजगर का सिर कुचलने के लिए
प्रचंड राष्ट्रव्यापी प्रतिकार चाहिए
भारतीय सुरक्षा जवानों की हिम्मत की दाद देनी चाहिए कि वे कमजोर और किसी हद तक अलगाववाद समर्थक राजनीतिक नेतृत्व की अदूरदर्शिता के बावजूद आतंकवादियों से लोहा लेकर पाकिस्तान और अरब देशों के मंसूबों को विफल कर रहे हैं। यद्यपि सतही तौर पर जिहादी आतंक कम होता हुआ नजर आ रहा है परंतु भीतर से यह देशघातक मजहबी लावा पूरी ताकत से फूट जाने के लिए तैयार है। पंचों/सरपंचों की हत्याएं करके जम्मू-कश्मीर की जनता में भारी दहशत फैलाने की रणनीति पहले से व्याप्त हिंसक जिहाद की आग में तेल छिड़क सकती है। ग्राम स्तर तक पहुंचे इस प्रकार के आतंकवाद के भयानक परिणाम होंगे। इस नए खतरे को जम्मू-कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी/कट्टरवादी शक्तियां और हिंसक जिहाद के झंडाबरदार दोनों का ही सहारा मिलेगा। कट्टरवादी जहां जुनूनी आग लगाकर लोगों की भावनाएं भड़काएंगे वहीं जिहादी आतंकी आम समाज में भय उत्पन्न करेंगे। पिछले 65 वर्षों से कश्मीर को निगल जाने के लिए तैयार बैठा पाकिस्तानी अजगर अपना डंक मारने से बाज नहीं आएगा। अभी तक का अनुभव यही बताता है।
जम्मू-कश्मीर को 'भारतीय वर्चस्व' से मुक्त करवाकर स्वायत्तता के एजेंडे पर काम कर रहे अलगाववादी मनोवृत्ति के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से यह उम्मीद करना कि उनके नेतृत्ववाली सरकार आतंकवाद के विस्तार को रोक लेगी, कोरी मृगमरीचिका ही होगी। जम्मू-कश्मीर में कभी कम तो कभी ज्यादा परंतु निरंतर गहरे होते जा रहे विदेश प्रेरित आतंकवाद को रोकने में कांग्रेस भी कोई सशक्त भूमिका निभाएगी इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। वास्तव में दिल्ली और जम्मू-कश्मीर की सत्ता पर पिछले छह दशकों से काबिज कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस दोनों ही कश्मीर में अलगाववाद को जन्म देने, पालने-पोसने और संरक्षण देने की गुनाहगार हैं। अत: कश्मीर समस्या के इस नए बदल रहे खतरे से निपटने के लिए देश की सभी राष्ट्रवादी शक्तियों को एक मंच पर आकर राष्ट्रव्यापी प्रतिकार के लिए तैयार होना चाहिए। यही एकमेव रास्ता है कश्मीर सहित पूरे देश में उभर चुके अलगाववादी अजगर का सिर कुचलने का।
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