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Sep 22, 2012, 12:00 am IST
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भारत माता के सच्चे सपूत

दिंनाक: 22 Sep 2012 15:01:12

 

भारत माता के सच्चे सपूत

बबन प्रसाद मिश्र वरिष्ठ पत्रकार

श्री सुदर्शन जी ने अंतिम प्रयाण से एक दिन पूर्व संध्या के समय जागृति मंडल (रायपुर) में स्वयंसेवकों के बीच पूर्व सांसद श्रीयुत श्रीगोपाल व्यास की नई औपन्यासिक कृति 'सत्यमेव जयते' का विमोचन किया और अपने इस अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम में लगभग पौने दो घंटे अपने धाराप्रवाह उद्बोधन, जिसमें एक वाक्य की न तो पुनरावृत्ति थी और न ही कहीं कोई एक पल की रुकावट, में राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय संदर्भों सहित उन राजनीतिक षड्यंत्रों पर प्रकाश डाला जो भारतीय प्रजातंत्र के लिए संकट बन रहे हैं। तब किसी स्वयंसेवक को एक क्षण के लिए भी उनके स्वास्थ्य के क्षीण होने का आभास नहीं हुआ था, क्योंकि वे तब पूर्ण स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त दिख रहे थे।

श्री श्रीगोपाल व्यास के इस नव रचित उपन्यास में 1975 की आपातकालीन ज्यादतियों का प्रतीक पात्रों के रूप में उल्लेख हुआ है। मुझे उस कार्यक्रम की अध्यक्षता करनी थी अत: हम दोनों जब उन्हें सभा भवन में बुलाने के लिए गये तब तक वे श्री व्यास के इस उपन्यास का केवल स्वरूप ही देख सके, उसे पढ़ना शेष था। श्री व्यास ने मुझसे कहा कि उन्होंने माननीय सुदर्शन जी को अभी अभी यह पुस्तक भेंट की है तो मैं कुछ विचलित हुआ। वह इसलिए कि मैं उनकी गंभीर अध्ययनशीलता से सुपरिचित था। वे पुस्तक के मूल भावों से लेखक के व्यक्तित्व को परखने वाले अद्भुत पारखी थे। पुस्तक की भावभूमि क्या है, लेखक उसके प्रस्तुतिकरण में कितना सफल हुआ है, कहां उसकी लेखनी में विचलन या फिसलन दृष्टिगत हो रही है या शीर्षक का चयन, मुख पृष्ठ एवं मुद्रण, सभी पर वे पैनी नजर डालते थे। इतना ही नहीं, चूंकि उन्हें अंग्रेजी, हिन्दी एवं संस्कृत सहित लगभग 10 भाषाओं का अच्छा ज्ञान था, वे शब्द उद्भव, भाषा विज्ञान, पूर्ण विराम, अर्द्धविराम, चन्द्रबिन्दु आदि के त्रुटिपूर्ण प्रयोगों का बहुत ही बारीकी से अवलोकन करते थे। शायद ही किसी पुस्तक का उन्होंने सिंहावलोकन कर यानी उलट-पुलट कर उसे अलग रख दिया हो अन्यथा पुस्तकें उनके लिए विहंगावलोकन का विषय रहती थीं। इसका अनुभव मुझे दो बार अपनी निजी पुस्तकों के संदर्भ में हुआ। यह संदर्भ केवल किन्हीं भाषाई त्रुटियों के संशोधन या उनके भाषा ज्ञानी होने तक सीमित नहीं है वरन् शाखाओं में, शिविरों में, व्यायाम में, श्लोक वाचन में, संगीत की ध्वनि में, कृषि-विज्ञान, यांत्रिकी, शिक्षण एवं स्वदेशी अभियान में, जहां कहीं उन्हें कोई त्रुटि या खामी दृष्टिगत होती थी, तो एक बड़े भाई एवं मार्गदर्शक की भूमिका का निर्वहन करते हुए उसे तुरंत ठीक करवाते थे।

इसे लिखने का आशय यही बताना है कि वे पत्रकारिता एवं लेखन पर कितनी सूक्ष्म दृष्टि रखते थे। श्री सुदर्शन जी के जीवन की यह विशेषता थी कि वे व्यक्तित्व में संपूर्णता एवं शुद्धता के जीवंत प्रमाण थे, अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करें तो 'परफेक्ट ह्यूमन बीइंग' या 'ए मेन आफ क्वालिटी एंड परफेक्शन'।

बौद्धिक क्षेत्र हो, स्वदेशी जागरण अथवा सांस्कृतिक, राजनीतिक और राष्ट्रवाद, राजनीतिक सम्यक ज्ञान हो, समसामयिक विषयों पर चिंतन-मनन हो, भारतीय कृषि की वैज्ञानिकता हो, जल हो, पशुपालन हो, जैविक खाद एवं नैसर्गिक ऊर्जा के संदर्भ में हो, ज्ञान हो, विज्ञान हो, सभी पर वे किसी विषय-विशेषज्ञ से कम नहीं थे। आज से 20 वर्ष पूर्व उन्होंने अमरीकी साजिश का भारतीय कृषि पर बढ़ते दबाव एवं भारतीय व्यापार को अपने कब्जे में लेकर दूसरा ईस्ट इंडिया काल भारत पर थोपने के प्रयासों के प्रति भारतीयों को आगाह किया था। उनकी तब से अभी तक अभिव्यक्त होती रही भविष्यवाणी एवं स्पष्टोक्ति आज भयावह स्वरूप में, संकट के स्वरूप में विशाल भारत पर मंडराती देखी जा रही है।

रायपुर में मृत्यु से ठीक एक दिन पहले उनका उद्बोधन जिसने भी सुना उसकी जिह्वा पर एक ही वाक्य था, इतना इतिहास तो हम नहीं जानते थे। फिर तारीखवार सप्रमाण अपने धाराप्रवाह उद्बोधन में उन्होंने स्वयंसेवकों से एक ही आग्रह किया कि स्वयंसेवकों को देश को इन षड्यंत्रों से बचाना होगा, जिसमें उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। सुदर्शन जी को दूसरे दिन अभियंता दिवस पर छत्तीसगढ़ के इंजीनियरों के मध्य उद्बोधन करना था। वे उनके आयोजन के मुख्य अतिथि थे। किंतु नियति को कुछ और स्वीकार था। उस कार्यक्रम में जाने के पूर्व उन्होंने विश्व के वैज्ञानिकों एवं अभियंताओं की सफलता पर केन्द्रित पुस्तक मंगवाई, उसे कुछ देखा-पढ़ा, फिर नियमानुसार 10 बजे वे सो गये। प्रात: जल्दी उठकर वे भ्रमण पर गये, लौटकर एकात्मता स्तोत्र का पाठ किया, फिर योग करते हुए वे चिरनिंद्रा में लीन हो गए।

मुझे याद है कि सरसंघचालक बनते ही पत्रकारों ने श्री सुदर्शन जी को घेर लिया था, वे तरह-तरह के प्रश्न करने लगे थे- अब आपका आगामी एजेंडा क्या है, संघ को आप क्या नया मोड़ देंगे, संघ के आगामी कार्यक्रम क्या हैं, भाजपा से आपके संबंध अब कैसे रहेंगे, राममंदिर आंदोलन के बारे में आपके क्या विचार हैं…आदि। श्री सुदर्शन जी ने सबको बताया कि संघ में कोई भी निर्णय व्यक्ति अकेला नहीं लेता। सुदर्शन जी अच्छे वक्ता के साथ ही अच्छे लेखक भी रहे। अपने धाराप्रवाह उद्बोधनों में दोहे, कुंडली, श्लोक तथा कविताओं के उदाहरण देकर वे श्रोताओं के मन पर अमिट छाप छोड़ते थे।

उनका निधन एक राष्ट्रार्पित जीवन की पूरी यात्रा रही। आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं तब भी जीवनोपरांत समाज के एक नेत्रहीन को अपने नेत्रदान कर रोशनी दे गये। वे आजीवन हिन्दुत्व की महानता के साथ ही 'जीवन का धर्म ही देशसेवा' जैसे महानतम उद्देश्यों को लेकर जिए। सादगी से भरे जीवन में उन्होंने सरलता एवं स्पष्टवादिता को अपना आजीवन गुणधर्म बनाकर रखा। उन्हें ज्ञान, साधना, ध्येय, संघ जीवन की कार्यपद्धति की जीवंत प्रतिकाया कहा जा सकता है। वे आदर्श स्वयंसेवक के रूप में एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व और भारत माता के सच्चे सपूत थे। गौरवर्ण, प्रभावी व्यक्तित्व एवं सुशरीर सौष्ठव के धनी सुदर्शन जी की काया भले ही दूर हुई हो, वे हम सबके लिए सतत् आदर्श रहेंगे। उनका अनुशासनप्रिय, ज्ञानवान, क्षमतावान एवं तपोमय जीवन स्वयंसेवकों सहित संपूर्ण हिन्दू समाज के लिए आदर्श बना रहेगा। (लेखक दैनिक युगधर्म और नवभारत में संपादक रहे हैं।)

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