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आधुनिकता अभद्रता नहीं-सरिता गुप्ता-

by
Sep 15, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 15 Sep 2012 15:34:51

 

आज लोगों का मत है कि आज की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, आज की नारी सशक्त है। मगर नारी तो शुरू से ही शक्ति रूप है। गांधी जी ने कहा था- 'नारी को अबला कहना उसका अपमान करना है।' नारी को अर्द्धांगिनी कहा जाता है और अर्द्धांगिनी का शब्दिक अर्थ है आधा अंग। अर्थात् पुरुष के बिना नारी और नारी के बिना पुरुष अधूरा है। नारी अगर कोमलांगी है तो शक्ति रूप भी वही है। विवाह जैसी पावन परम्परा नारी के त्याग एवं समर्पण के कारण ही कायम है। जब विचार करते हैं कि नारी का शोषण कौन करता है तो साफ होता है कि नारी की शोषक नारी ही है। एक नारी दूसरी नारी के सौन्दर्य, गहने एवं सुखों से ही जलती है। नारी जब बेटी के रूप में जन्म लेती है तो सबसे पहले दादी के मुख पर शोक की लकीरें उभरती हैं, काश लड़का होता…। जैसे-जैसे लड़की बड़ी होती है तो, दादी, ताई, चाची, मां सबसे अधिक रोक-टोक करती है- ऐसे मत चल, ऐसे मत हंस, ये मत कर, वो मत कर, दूसरे घर जाना है वगैरा वगैरा। जब बेटी बहू बनकर ससुराल जाती है तब भी सास, ननद, जेठानी के द्वारा ही दहेज, रूप, रंग व घरेलू कामकाज को लेकर अधिक प्रताड़ित व अपमानित किया जाता है। कैसी विडम्बना है नारी का नारी पर अत्याचार। कभी-कभी मन सोचने को विवश हो जाता है कोमलांगी नारी इतना सब कैसे सह लेती है? तब ये पंक्तियां सत्य प्रतीत होती हैं-

हंसते हंसते हर गम सह जाती,

फिर भी अबला ही कहलाती।

मैथिलीशरण गुप्त ने जहां नारी को अबला रूप में देखा और कहा-

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,

आंचल में है दूध और आंखों में पानी।

तो दूसरी ओर ये कहे बिना भी न रह सके-

अबलाएं हैं शक्तिशाली आत्मिक बल से।

इसे सिद्ध कर दिया उन्होंने समर स्थल में।।

अगर नारी पानी के समान शीतल धार बनकर बह सकती है तो आग के समान जलाना भी जानती है। नारी जब तक प्रेम भाव की डोर से बंधी रहती है तब तक ही वह अबला है। आक्रोश भाव से भरने पर वह किसी दुर्गा या बला से कम नहीं

अबला से गर अ हटा, नारी पूरी है बला।।

जयशंकर प्रसाद ने नारी को श्रद्धा रूप में देखा और कहा

नारी तुम केवल श्रद्धा हो

विश्वास रजत नग पग तल में।।

पीयूष स्रोत सी बहा करो,

जीवन के सुन्दर समतल में।।

केदारनाथ अग्रवाल ने नारी को वीरांगना रूप में देखा,

मैंने उसको जब जब देखा, लोहे जैसा तपते देखा

मैंने उसको जब–जब देखा, गोली जैसा चलते देखा…।

नारी जीवन जीने की कला जानती है। हां, आज कुछ नवयुवतियां अवश्य पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रही हैं। आधुनिक होना गलत नहीं, पर आधुनिकता के नाम पर अभद्र होना सरासर नारी मर्यादा को अपवित्र करना है। साड़ी पहनना, बड़ों का सम्मान करना, पूजा-पाठ तथा मर्यादित होना पिछड़ापन है, ये किस पुस्तक में लिखा है? नारी का पहनावा, बोल-चाल एवं शब्द शैली उसके चरित्र का आईना है।

आज जो लड़कियां फैशन, मॉडलिंग, देह प्रदर्शन करके सफलता हासिल करना चाहती हैं उन्हें सही पथ प्रदर्शक की सख्त जरूरत है, जो उन्हें समझा सके कि नारी की असली सुन्दरता, असली ताकत उसकी अस्मिता है जिसके बल पर वह सदा से विजयी होती आई है। सावित्री के सतीत्व के समक्ष यमराज भी हार गया था। नारी अपने संयम, धैर्य, प्रेम, कोमलता एवं अस्मिता जैसे शस्त्रों को संभाल कर रखे। देहप्रदर्शन से वह कभी मान सम्मान व सफलता हासिल नहीं कर सकती। घर में यदि नारी सुशील एवं शुद्ध आचरण वाली हो तो गृहस्थ जीवन स्वर्ग से कम नहीं। इसके विपरीत फूहड़, असभ्य एवं चरित्रहीन नारी घर को नरक बना देती है। एक नारी सारे परिवार के सदस्यों की जरूरतें बिना किसी तनाव से यथासमय पूरी कर सकती है। मगर एक स्त्री के अभाव में सारे घर की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। नारी के इतने रूप देखकर यही लगता है कि नारी एक सहेली भी है, एक पहेली भी है। यदि नारी शीतल धारा बनकर हरियाली पैदा कर सकती है तो बाढ़ का रूप धारण कर सब कुछ बहा ले जा सकती है। नारी में चट्टान जैसी दृढ़ता तथा फूलों जैसी कोमलता अजीब विरोधाभास है। नारी ने अपने इस स्वभाव को खुद स्वीकारा है-

मुझे गुरूर मैं नारी हूं, शबनम हूं चिंगारी हूं।

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