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नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जनेवि) पूरी दुनिया में अपनी वामपंथी पहचान के लिए जाना जाता है। पर दुर्भाग्य से यह हिन्दुत्वविरोधी शक्तियों का केन्द्र बन गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यहां देश-विरोधी लोगों के भाषण कराए जाते हैं, तो खाने-पीने की आजादी की आड़ में हिन्दुओं की भावना के साथ खिलवाड़ किया जाता है। अभी हाल ही में सम्पन्न जनेवि छात्र संघ के चुनाव के दौरान इस बात पर बहस खूब हुई कि जनेवि में गोमांस क्यों नहीं खाया जाए? अपने आपको अति प्रगतिशील कहने वाले कई छात्र नेताओं ने चुनावी घोषणापत्र में यह भी कहा कि वे चुनाव जीत गए तो जनेवि परिसर में गोमांस परोसने के लिए संघर्ष करेंगे। चुनावी माहौल को गरमाने के लिए कुछ छात्र नेता तो यह भी घोषणा कर गए कि 17 सितम्बर को जनेवि परिसर में गोमांस और सूअर मांस का सेवन किया जाएगा। पर किसी कारणवश यह आयोजन नहीं हुआ और अब कहा गया है कि यह आयोजन 28 सितम्बर को होगा।
उस्मानिया की पृष्ठभूमि
उल्लेखनीय है कि इसी तरह का आयोजन इस वर्ष 15 अप्रैल को हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में हुआ था। इसके बाद वहां खूब हंगामा हुआ था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने इसका जमकर विरोध किया था। कई दिन तक विश्वविद्यालय परिसर में तनाव रहा था। निश्चित रूप से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी उस्मानिया विश्वविद्यालय जैसी हरकत करने की कोशिश की जा रही है। जनेवि के अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान से पीएच.डी. कर रहे और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (अभाविप) जनेवि संभाग के संगठन मंत्री अम्बा शंकर वाजपेयी कहते हैं 'उस्मानिया से पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रामनवमी के दिन गोमांस परोसने की तैयारी थी। किन्तु किसी कारणवश वे लोग यहां ऐसा कुकर्म नहीं कर पाए और उस्मानिया में वे गोमांस परोसने में सफल रहे। उस्मानिया की पृष्ठभूमि जनेवि में ही गढ़ी गई थी। इसके लिए 20 मार्च को जनेवि के कोयना मेस में एक बैठक की गई थी। बैठक के पूर्व कई दिनों तक 'दी न्यू मटेरियलिस्ट' नामक संगठन की ओर से पूरे विश्वविद्यालय परिसर में 'पोस्टर' चिपकाए गए थे, जिनमें गोमांस खाने की वकालत की गई थी। बैठक को उस्मानिया विश्वविद्यालय की प्राध्यापक प्रो. कांचा इलाया, जनेवि की निवेदिता मेनन, डा. बिमोल इकोईजाम एवं डा. जी. श्रीनिवास और दिल्ली विश्वविद्यालय के डा. जेनी रोएना ने सम्बोधित किया।'
बैठक में उपस्थित कुछ छात्रों ने इस संवाददाता को बताया कि वक्ताओं ने गोमांस खाने पर जोर दिया और उसके फायदे भी बताए। वक्ताओं ने यह भी कहा कि गाय का मांस नहीं खाना चाहिए, यह हिन्दुत्ववादियों का सिर्फ दुष्प्रचार है। इस तरह बैठक में छात्रों को गोमांस खाने के लिए पूरी तरह उकसाया गया।
20 मार्च को ही अभाविप ने इस बैठक की शिकायत विश्वविद्यालय के कुलपति, मुख्य प्रोक्टर और मुख्य सुरक्षा अधिकारी से की थी। फिर भी वह भड़काऊ बैठक हुई। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस प्रकार की बैठक की अनुमति देने के कारण ही बैठक के आयोजकों का हौसला बढ़ता गया। वे लोग छात्रावास से लेकर वर्ग कक्ष तक 'गोमांस क्यों न खाया जाए?' वाले 'पोस्टर' चिपकाते रहे, छात्रों को भड़काते रहे। किन्तु विश्वविद्यालय के अधिकतर छात्र उनके बहकावे में नहीं आ रहे हैं इसलिए गोमांस भक्षण की तिथि बढ़ाते जा रहे हैं। अपने इस घिनौने काम को अंजाम देने के लिए इन लोगों ने 8 सितम्बर की रात को कावेरी छात्रावास में एक बैठक की और 'गोमांस एवं सूअर मांस उत्सव' के लिए एक आयोजन समिति का गठन किया। फिर इन लोगों ने 17 अगस्त की रात को सतलुज छात्रावास में एक बैठक की। बैठक का विषय था- 'जनेवि में गोमांस एवं सूअर मांस उत्सव क्यों?' बैठक को प्रो. कांचा इलाया, प्रो. एस. एन. मालाकार, प्रो. ए.के. रामाकृष्णन, डा. विवेक कुमार, डा. वाई.एस. एलोन, वाणी सुब्रह्मण्यम और शीबा असलम फेहमी ने सम्बोधित किया। इस बैठक में भी गोमांस खाने के लिए कुतर्क दिए गए और यह भी फैसला किया गया कि जनेवि में 17 सितम्बर को गोमांस और सूअर मांस परोसा जाएगा। अभाविप ने 16 अगस्त को इसकी शिकायत वसंत कुंज थाने में की और पुलिस से इसे रोकने की मांग की।
बड़े लोगों का हाथ
जनेवि में पीएच.डी. की छात्रा गायत्री दीक्षित इस आयोजन के पीछे राजनीतिक उद्देश्य मानती हैं। उनका कहना है, 'इस तरह के आयोजनों के सूत्रधार अपने स्वार्थ के लिए हजारों वर्ष पुरानी हमारी सनातन संस्कृति और हमारे मूल्यों पर आघात करते हैं। उस्मानिया विश्वविद्यालय में हुए आयोजन के लिए वहां के एक छात्र बी. सुदर्शन का नाम लिया जा रहा है। पर सवाल उठता है कि उतना बड़ा आयोजन क्या कोई एक गरीब छात्र कर सकता है? साफ है कि इन आयोजनों के पीछे बड़े-बड़े सम्पन्न लोग लगे हैं। ये लोग अपने राजनीतिक हित के लिए शिक्षा के पवित्र स्थानों को अपवित्र कर रहे हैं।' पर जनेवि में आधुनिक इतिहास से एम. फिल कर रहे छात्र नेता अभय कुमार गोमांस उत्सव करने वालों का बचाव करते हुए कहते हैं, 'यह उनकी लोकतांत्रिक मांग है। हर किसी को खाने और पहनने की आजादी है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय एक प्रगतिशील संस्थान है। यहां किसी को कुछ भी खाने और पहनने से कैसे रोका जा सकता है?' वहीं गोमांस उत्सव के आयोजकों में से मुख्य और सेन्टर फॉर अफ्रीकन स्टडीज में पीएच.डी. कर रहे अनूप पटेल मीडिया से बच रहे हैं। कई बार प्रयास करने के बाद भी उन्होंने बात नहीं की। जबकि एक-दो दिन पहले ही उन्होंने बयान दिया था कि जनेवि में गोमांस उत्सव होगा। उन्होंने यह भी कहा था जनेवि संसद के कानून द्वारा बना शैक्षणिक संस्थान है। इसलिए यहां गोमांस उत्सव के लिए दिल्ली एन.सी.आर. एक्ट-1994 बाधक नहीं बनेगा। किन्तु वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी लेखी कहती हैं दिल्ली में गोमांस पर प्रतिबंध है। इसलिए इस तरह के आयोजन गलत हैं। पुलिस उनको रोक सकती है। मीनाक्षी लेखी ने यह भी कहा कि हमारे यहां दो तरह की सोच है। एक सोच विभिन्न वर्गों के बीच एकता स्थापित करना चाहती है, सौहार्द पैदा करना चाहती है, तो दूसरी सोच विभिन्न वर्गों के बीच मौजूद फर्क को देखती है। ऐसी ही सोच इस तरह का आयोजन कर समाज में विभेद की खाई को और चौड़ा करना चाहती है। दिल्ली की प्रसिद्ध कालिका पीठ के पीठाधीश्वर महन्त सुरेन्द्रनाथ अवधूत के नेतृत्व में 12 सितम्बर को कुछ धार्मिक संगठनों ने जनेवि के बाहर प्रदर्शन किया और कुलपति को ज्ञापन सौंपकर ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। महन्त सुरेन्द्रनाथ अवधूत ने पाञ्चजन्य से कहा कि जो लोग गोमांस खाते हैं वे चुपचाप खा लेते हैं। इस तरह घोषणा करके कोई नहीं खाता है। जो लोग गोमांस खाने की घोषणा कर रहे हैं वे बहुसंख्यक समाज की भावना को जानबूझकर भड़काना चाहते हैं। यह विशुद्ध रूप से शरारत है और साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश। इन तत्वों के खिलाफ तुरन्त कार्रवाई हो।
इन्द्रप्रस्थ विश्व हिन्दू परिषद् ने भी इस आयोजन की भर्त्सना की है। 13 सितम्बर को परिषद् के एक प्रतिनिधिमंडल ने जनेवि के कुलपति सुधीर कुमार सोपोरी से मिलकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की भी मांग की है।
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