कांग्रेस में नेहरू परिवार का वर्चस्व बनाए रखने की आखिरी उम्मीद राहुल गांधी हैं जो पार्टी में वंशवादी राजनीति को आगे बढ़ा सकते हैं, क्योंकि उनकी बहन प्रियंका गांधी अपने को राजनीति में सक्रिय भागीदारी से अलग दिखाने की भरपूर कोशिश करती हैं। इसलिए राहुल गांधी की छवि चमकाने के लगातार प्रयास होते रहते हैं। कभी उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने वाला 'सबसे उपयुक्त' व्यक्ति बताया जाता है और कभी उन्हें संप्रग सरकार में मंत्री बनाकर नयी भूमिका में लाने का अभियान चलाया जाता है। प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह स्वयं उन्हें मंत्रिमंडल में जिम्मेदारी संभालने का न्योता देते हैं। लेकिन आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर लगातार हो रहे सर्वेक्षणों में राहुल प्रधानमंत्री की दौड़ में नरेन्द्र मोदी से काफी पीछे नजर आकर कांग्रेस की भावी राजनीति पर तुषारापात करते दिखते हैं। इसलिए यदि उन्हें पार्टी के लिए समस्या बताया जा रहा है तो यह उनकी साख पर लगा एक गंभीर प्रश्न है। आखिर राहुल गांधी प्रत्यक्ष जवाबदेही से हमेशा बचते क्यों दिखते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वे जिम्मेदारी लेकर उसे निभाने की अपनी अक्षमता को सामने नहीं आने देना चाहते? दरअसल वंचितों, पिछड़ों और जनजातियों के घरों में अचानक पहुंचकर खाना खाने और रात बिताने से तात्कालिक वाहवाही तो लूटी जा सकती है, लेकिन जनता का विश्वास अर्जित करने के लिए अपनी योग्यता साबित करनी पड़ती है, संगठनात्मक स्तर पर भी और राजनीतिक स्तर पर भी। निर्वाचित सांसद होते हुए भी राहुल गांधी अभी लोकसभा में कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए। गंभीर मुद्दों पर बहस के दौरान या तो वह नदारद होते हैं या मौन। संसद ऐसा मंच है जहां जनता और देशहित से जुड़े मसलों पर मुखर सहभागिता से व्यक्ति राष्ट्रीय नेतृत्व की कतार में खड़ा हो सकता है और आम जन उसकी ओर आशाभरी नजरों से देखता है। लेकिन राहुल अभी तक ऐसी छाप छोड़ने में पूरी तरह विफल रहे हैं। केवल पारिवारिक विरासत के भरोसे आगे बढ़ने के लिए भी तो कुव्वत चाहिए, अन्यथा व्यक्ति बहुत आगे नहीं जा सकता। ऐसा ही कुछ राहुल गांधी के साथ हो रहा है। वे भले ही प्रत्यक्ष रूप से सरकार चलाने की भूमिका में न दिखते हों, लेकिन परदे के पीछे से सरकार संचालन के सूत्र उनके व सोनिया गांधी के हाथों में ही हैं, मनमोहन सिंह तो महज कठपुतली प्रधानमंत्री हैं। इसलिए देश की जनता यह भलीभांति समझती है कि भ्रष्टाचार से लेकर महंगाई, बेरोजगारी और असुरक्षा तक जितनी भी गंभीर समस्याएं देश के सामने आज मौजूद हैं वे इन्हीं हाथों से निकली हैं, तो मंत्री या प्रधानमंत्री बनने पर इनसे क्या उम्मीद की जा सकती है?
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