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 बातों और वायदों का ओलम्पिक

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Sep 8, 2012, 12:00 am IST
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बातों और वायदों का ओलम्पिक

दिंनाक: 08 Sep 2012 13:25:52

शर्मा जी बचपन से ही खेलकूद में रुचि रखते हैं। कबाड़ी बाजार से खरीदे कप, 'ट्रॉफी' और 'शील्डों' से उनका कमरा भरा है, जिसे वे विभिन्न प्रतियोगिताओं में जीता हुआ बताकर सबको दिखाते हैं।

  भारतीय खिलाड़ियों ने इस बार पहले से दुगुने पदक जीते, इससे शर्मा जी बहुत खुश हैं, पर उन्हें इस बात की बहुत पीड़ा है कि सवा अरब जनसंख्या वाले भारत देश का नाम पदक तालिका में बहुत नीचे है। खिलाड़ी और उनके रिश्तेदार, प्रशिक्षक, मालिश करने वाले, रसोइये, चिकित्सक, सरकारी मेहमान और ऐरे–गैरे मिलाकर सैकड़ों लोग वहां गये थे, पर लाये क्या ? केवल छह पदक।

  अधिकांश लोग इसका कारण खेलों में घुसी राजनीति को मानते हैं, पर शर्मा जी इसे एक अन्तरराष्ट्रीय षड्यन्त्र बताते हैं। उनका कहना है कि ओलम्पिक संघ ने जानबूझ कर वे खेल प्रतियोगिता से बाहर रखे हैं, जिनमें हम पुरस्कार जीत सकते हैं।

  उदाहरण के लिए यदि ओलम्पिक में 'बातों और वायदों' की प्रतियोगिता हो, तो इसके सारे पदक भारत के हिस्से में ही आएंगे। विश्वास न हो, तो पहले स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का दिया भाषण देखें या 15 अगस्त, 2012 का मनमोहन सिंह का भाषण। तब भी रोटी, कपड़ा और मकान के वायदे किये गये थे। अनुशासन और कड़ी मेहनत की बात कही गयी थी, और आज भी उन्हें ही दोहराया जा रहा है।

  इंदिरा गांधी ने 40 साल पहले 'गरीबी हटाओ' का नारा लगाकर चुनाव जीता था। उसके बाद आम आदमी की तो नहीं, पर नेताओं की कई पीढ़ियों की गरीबी जरूर हट गयी। इन दिनों असम में हुए दंगे चर्चा में हैं। 1985 में राजीव गांधी ने असम के युवा आंदोलनकारियों से एक समझौता किया था। उसके अनुसार 1971 के बाद असम में घुसे बंगलादेशियों को वापस भेजने की बात कही गयी थी, पर उन्हें भेजना तो दूर, अभी तक उनकी पहचान ही नहीं हुई है।

  असम में रहने वाला हर व्यक्ति जानता है कि कौन यहां का मूल निवासी है और कौन घुसपैठिया, पर हमारे शासकों को यह दिखाई नहीं देता। उस समझौते को 27 साल हो गये। इस दौरान घुसपैठियों की संख्या एक करोड़ से बढ़कर पांच करोड़ हो गयी। पहले वे असम में ही थे, पर अब महामारी की तरह पूरे देश में फैल गये हैं।

  वायदे कई और भी थे। हर युवा को रोजगार देने का वायदा था, हर किसान को खाद और पानी देने की बात थी। ये वायदे सरकारी फाइलों में भले ही पूरे हो गये हों, पर शायद ही कोई दिन जाता हो, जब अखबार में किसी नौजवान या किसान की आत्महत्या की खबर न छपती हो। वायदा तो महिलाओं को सुरक्षा देने का भी था, पर गुवाहाटी में हुई छेड़छाड़ से लेकर गीतिका शर्मा तक के किस्से आम हो रहे हैं। आम आदमी की सुरक्षा के लिए बने पुलिस थाने ही उनके लिए सबसे अधिक अरक्षित हो गये हैं।

भ्रष्टाचार की बात करें, तो इस क्षेत्र में भारत का स्थान सर्वोपरि है।  'हरि अनंत हरि कथा अनंता' की तरह जीप घोटाले से लेकर बोफोर्स  तक और फिर टू जी स्पैक्ट्रम से लेकर कोयले की दलाली तक वर्तमान सत्ताधीशों ने अपने हाथ और मुंह इतने अधिक काले कर लिये हैं कि उन्हें पहचानना कठिन हो गया है। किसी ने ठीक ही कहा है कि शर्म की सीमा होती है, बेशर्मी की नहीं।

  बड़े घोटालों को यदि बड़े लोगों के लिए छोड़ दें, तो अपनी रोटी–रोजी के लिए संघर्ष करते हुए परिवार चलाने वाला शायद ही कोई व्यक्ति हो, जिसका पाला रिश्वत से न पड़ा हो। यदि कोई हो, तो मेरा महामहिम राष्ट्रपति महोदय से अनुरोध है कि वे उसे गणतन्त्र दिवस पर  पद्म पुरस्कार से सम्मानित करें। यदि पुराने पुरस्कार की परिधि में वह न आ सके, तो कोई नया पुरस्कार ही घोषित कर दें।

  ऐसे खेलों की सूची तो बहुत लम्बी हो सकती है, पर फिलहाल ओलम्पिक वाले इन्हें ही शामिल कर लें। अगला ओलम्पिक 2016 में है। शर्मा जी को पूरा विश्वास है इन खेलों के स्वर्ण से लेकर कांस्य तक, सब पदक भारत ही जीतेगा। फिर हम भी पदक तालिका में अपना नाम ऊपर की ओर देखेंगे और शर्म से सिर झुका लेंगे।                                 

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