दृष्टिपात
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3 सितम्बर को भारत की अपनी पांच दिन की सरकारी यात्रा पर आए चीन के रक्षामंत्री जनरल लियांग ग्वांग्ली की इस बात पर कौन यकीन करेगा कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में अपना कोई सैनिक कभी तैनात नहीं किया? जनरल लियांग की इस बात पर यकीन करने वाले इसलिए बहुत नहीं होंगे क्योंकि दुनियाभर के तमाम अखबारों ने खोजखबर लेकर ही पी.ओ.के. में करीब ग्यारह हजार चीनी सैनिकों की मौजूदगी की रपटें छापी हैं। वे सैनिक वहां पाकिस्तान में 'कई तरह के ढांचागत निर्माणों में सहयोग' के लिए तैनात हैं।
चीन के रक्षामंत्री अपने इस दौरे में भारत के रक्षामंत्री ए.के. एंटोनी से मिले, जिन्होंने, रपटों के अनुसार, चीनी सैनिकों के सीमा-अतिक्रमण के मुद्दे को उठाया। भारत के एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक को दिए लिखित साक्षात्कार में जनरल लियांग ने एक और, अधिकांश को न पचने वाली बात की। उन्होंने कहा कि चीन इस बात का पुरजोर समर्थन करता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद सुलझें। भारत में मीडिया के चीन के प्रति नरम रुख रखने वाले एक वर्ग ने चीनी रक्षामंत्री की इस यात्रा को भारत और चीन के बीच सैन्य नजदीकियां बढ़ाने वाली बताया है। लेकिन चीन के तटस्थ विशेषज्ञों की राय में भारत को इस संबंध में बहुत सोच-विचार के ही कदम बढ़ाने चाहिए।
साजिशी मौलवी धरा गया
रिम्शा की रिहाई के आसार बढ़े
अपनी साजिश में साथ देने वालों के ही सच उगल देने के चलते पाकिस्तान में सुर्खियों में आ चुके रिम्शा प्रकरण की कलई खुल गई है और साजिश के मुख्य आरोपी मौलवी खालिद जदून चिश्ती को धर लिया गया है। 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया चिश्ती ही वह व्यक्ति है जिसने बड़ी साजिश के साथ जले कचरे में कुरान की आयतें लिखे पन्ने डालकर 11 साल की रिम्शा मसीह को 'कुफ्र' के जुर्म में जेल पहुंचवा दिया था। चिश्ती कीे इस करतूत का खुलासा उसकी हरकत के एक चश्मदीद हाफिज जुबैर ने ही किया। उसने बताया कि चिश्ती ने इसके पीछे वजह बताई थी कि इससे रिम्शा के खिलाफ 'कुफ्र' का आरोप पुख्ता हो जाएगा। इस खुलासे के बाद, यह माना जा रहा है कि रिम्शा को जमानत दे दी जाएगी। चिश्ती का अपराध साबित हुआ तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती ½èþ*
जर्मनी में आतंक–विरोधी अभियान
पोस्टर से उखड़े मुस्लिम गुट
जर्मनी के कट्टर इस्लामवादी एक बार फिर तैश में हैं। इस बार मुद्दा बना है वह पोस्टर जो उन परिवारों से अपने उन बच्चों के बारे में पुलिस को पूरी जानकारी देने की अपील करता है जिन्होंने कट्टर इस्लामियत अपना ली हो। इस पोस्टर का विरोध करने वाले चार मुस्लिम गुटों- 'टर्किश-इस्लामिक यूनियन', 'एसोसिएशन ऑफ इस्लामिक कल्चरल सेन्टर्स', 'सेंट्रल काउंसिल ऑफ मुस्लिम इन जर्मनी' और 'इस्लामिक कम्युनिटी ऑफ बोस्नियाक्स इन जर्मनी' ने एक साझा बयान जारी करके कहा है कि आतंकवाद के विरुद्ध शुरू हुआ 'नया अभियान संघर्ष के नए मुद्दों को जन्म दे सकता है।'
दरअसल आतंक के खिलाफ अभियान के तहत जर्मन भाषा में ऐसे पोस्टर जारी किए जा रहे हैं जिन पर किसी नौजवान लड़के या लड़की की तस्वीर के ऊपर 'गुमशुदा' लिखा है। तस्वीर के नीचे लिखी इबारत है-'यह हमारा बेटा है। हमें यह याद आता है, क्योंकि हम अब इसे नहीं पहचानते। यह अपने में खोता जा रहा है, दिन-ब-दिन बेलगाम होता जा रहा है। हमें डर है कि कहीं इसे हमेशा के लिए न खो दें-मजहबी उन्मादियों और आतंकी गुटों के हाथों। अगर आपके मन में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है, तो सरकार की परामर्श सेवा से संपर्क करें।' नीचे परामर्श सेवा के फोन नम्बर और ईमेल पते दिए गए हैं। मुस्लिम गुटों का कहना है कि ऐसे पोस्टर जर्मनी के तकरीबन 40 लाख मुस्लिमों की तौहीन करते हैं। ये पोस्टर अभियान जर्मनी के गृहमंत्री हेंस-पीटर फ्रीडरिक की दिमागी उपज हैं जिनसे मुस्लिम नेता 36 का आंकड़ा बनाए हुए हैं।
पेड़ वाले दद्दू
नागराजन की गजब साध को साधुवाद
पेड़–पौधों के लिए लोगों में जुनून की हद तक प्यार होने की चर्चाएं अक्सर सुनने में आती हैं। लेकिन साथ ही ऐसे लोग भी देखने में आते हैं जो साफ-सफाई या और किसी बहाने से पेड़ों को काट डालने में पल भर को नहीं हिचकते। पर धरती अभी भी रहने लायक है तो इरोड जिले के कंचीकरेविल गांव के के.ए. नागराजन जैसे पेड़-पौधों को अपनी संतान की तरह पुचकारने-दुलारने वाले लोगों के कारण।
आज 60 के नागराजन 17 साल की उम्र से ही पौधे रोपने, उन्हें रोजाना सींचने, उनकी रक्षा करने और जरूरत पड़े तो प्रशासन से टकरा जाने का जुनून पाले हैं। आज 43 साल हो गए इन पेड़-प्रेमी सज्जन को पौधे रोपते, पर अब भी कोई अड़ोस-पड़ोस से आकर उनसे किसी खास किस्म के पौधे की फरमाइश करता है तो वह खुद पौधा, खुरपी, खाद लेकर उसके बगीचे में पौधा रोप आते हैं। नागराजन कहते हैं, 'मुझे आज भी वे दिन याद हैं जब 43 साल पहले पहाड़ी पर बने मंदिर की ओर चढ़ती पगडंडी के किनारे-किनारे वे सारा-सारा दिन पौधे रोपते रहते थे और सांझ ढले बेंत फटकारते पिताजी उन्हें डांट पिलाकर घर लिवा ले जाते थे, जहां पहुंचकर खूब धमाधम होती थी।' पर नागराजन ने ठान लिया था कि ऐसा कुछ करना है जिससे समाज का भला हो।
उनके रोपे करीब 7000 पौधे आज पूरे गांव में बड़े-बड़े पेड़ों की शक्ल में सीना ताने खड़े हैं और हरियाली के साथ ठंडी छांह करते हैं। पर नागराजन इस उम्र में भी बड़े उत्साह के साथ पौधे रोपने में जुटे रहते हैं और मजे की बात यह कि उनकी जीवनसंगिनी प्रेमा जी भी इसमें उनका हाथ बंटाती हैं। दो वक्त की रोटी के लिए वे घर पर ही करघे पर तौलिए बुनकर बेचते हैं। एक बार लोग एक नहर बनाने के लिए उनके लगाए हरे-भरे पेड़ को काटने पहुंच गए तो नागराजन पेड़ से चिपट कर खड़े हो गए और बोले, 'अगर पेड़ काटा तो भूख हड़ताल कर दूंगा।' पेड़ बच गया और नहर भी बन गई। आज वे जब गांव की गली से पौधा लेकर उसे कहीं रोपने निकलते हैं तो पीछे-पीछे बच्चे नाचते-कूदते 'मारम तट्टा-मारम तट्टा' दोहराते चलते हैं। यानी – 'पेड़ वाले दद्दू'। यही है नागराजन का प्यार का नाम।
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