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स्वयंसेवी संगठन 'जलाधिकार' के तत्वाधान में नोएडा (उ.प्र.) के विभिन्न सेक्टरों के निवासी कल्याण संघों (आर.डब्लयू.ए.) के प्रतिनिधियों की एक विशाल सभा में नोएडा विकास प्राधिकरण के द्वारा हाल ही में भेजे गए पानी के बिलों का भुगतान न करने का निर्णय लिया गया। 'जलाधिकार' के अध्यक्ष गोपाल अग्रवाल ने लोगों को आगाह किया कि सरकार पेयजल की कमी का बहाना बनाकर जल संसाधनों का निजीकरण करना चाहती है, ताकि आने वाले समय में पानी का व्यवसायीकरण कर आम जनता के ऊपर भारी कर लगाया जा सके। इस सारे प्रकरण में सरकार एवं कॉरपोरेट जगत की सांठगांठ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। देश की सत्तर करोड़ जनता, जिसे दो जून की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं है, पर पानी का कर लगाना अमानवीय निर्णय है।
नोएडा के सभी निवासी कल्याण संघों (आर.डब्लयू.ए.) के संगठन 'फुनर्वा' के अध्यक्ष श्री एम. पी. सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि नोएडा प्राधिकरण द्वारा विषाक्त एवं अशुद्ध जल की आपूर्ति की जा रही है। कई सेक्टरों में पूरे दिन में मुश्किल से एक घंटा पानी आता है। ऐसी हालत में प्राधिकरण द्वारा पिछले पंद्रह सालों का लाखों रुपयों का बिल मांगा जाना न केवल हास्यास्पद है बल्कि गैरकानूनी भी है। ऐसा प्रतीत होता है कि नोएडा में जल माफिया एवं प्राधिकरण के अधिकारियों के बीच कोई मिलीभगत है, क्योंकि 60 से 70 प्रतिशत पेयजल की आपूर्ति प्राधिकरण के द्वारा नहीं बल्कि जल माफियाओं के द्वारा अधिक कीमत पर घरों में की जाती है। इसके कारण आम जनता को नित्य की आवश्यकताओं के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ती है, दूसरी तरफ प्राधिकरण के मनमाने शुल्क, जुर्माना एवं ब्याज के कारण जनता त्रस्त है। प्रतिनिधि
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