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पाठकीय
19 अगस्त,2012
यह व्यवस्था बढ़ा रही है समस्याएं
स्वतंत्रता दिवस विशेषांक बहुत सुन्दर, प्रेरणादायक, विचारोन्मुख व भारत के सामने खड़ी चुनौतियों का सटीक विश्लेषण और समाधान देने में सफल रहा। संवाद में श्री बल्देव भाई शर्मा ने देश में बढ़ते भ्रष्टाचार, मजहबी राजनीति, जिहादी आतंकवाद, गरीबी-बेरोजगारी पर आम जन की बेबसी का स्पष्ट और वास्तविक चित्रण किया है। हिन्दुत्व के पुरोधा श्री अशोक सिंहल ने अपने साक्षात्कार में बड़ी स्पष्टता के साथ सेकुलरवाद, हिंसक इस्लाम, विस्तारवादी चर्च, माओवाद और सेकुलर मीडिया को देश का शत्रु बताया है। उन्होंने धर्म की रक्षा करने की प्रेरणादायक सीख देकर समाधान का मार्ग भी दिखाया है।
–डा. सुभाष चन्द्र शर्मा
हरी भवन, रूड़की रोड, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
n +ÉVÉ देश के समक्ष चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। ये चुनौतियां सरकारी नीतियों की वजह से बढ़ती ही जा रही हैं। छद्म सेकुलरवाद समस्याओं का जनक है। इसकी आड़ में भारतीयता को ही समाप्त करने का कुप्रयास चल रहा है। जिस दिन भारत से भारतीयता खत्म हो जाएगी उस दिन यह सेकुलर नहीं रहेगा। आम भारतीय यह समझ लें तो चुनौतियों का समाधान हो सकता है।
–गणेश कुमार
कंकड़बाग, पटना (बिहार)
n <ºÉ समय भारत को बाह्य समस्याओं से ज्यादा आन्तरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। परमाणु सम्पन्न होने के बाद तो बाहरी ताकतें भारत पर अपनी मनमर्जी नहीं चला पा रही हैं। किन्तु आन्तरिक समस्याएं विकराल हो रही हैं। चाहे कश्मीर हो या असम वहां से चुनौतियां लगातार मिल रही हैं। जिहादी तत्व पूरे भारत का इस्लामीकरण करने के प्रयास में लगे हैं। इन सबका सामना राष्ट्रवादी सरकारों के गठन से ही संभव है।
–राममोहन चंद्रवंशी
विट्ठल नगर, स्टेशन रोड, टिमरनी, जिला–हरदा (म.प्र.)
n ½þ¨ÉÉ®äú यहां की व्यवस्था ने ही भारत के अन्दर दो भारत पैदा कर दिए हैं। एक भारत हर दृष्टि से सुखी-सम्पन्न है, तो दूसरा भारत असहाय है। देश की चुनौतियों ने इस असहाय भारत का जीवन और मुश्किल कर दिया है। व्यक्ति पूरी जिन्दगी हाय-हाय कर कमाता है, पर बुढ़ापे के लिए दो पैसा जोड़ नहीं पाता है। यह व्यवस्था का ही दोष है, जिसमें आम आदमी का कोई ध्यान नहीं रखा जाता है।
–विकास कुमार
शिवाजी नगर, वाडा, जिला–थाणे (महाराष्ट्र)
n ¨É½ÆþMÉÉ<Ç और भ्रष्टाचार से जनित भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी ने जनमानस को देश की व्यवस्था के बारे में विचार करने के लिए विवश कर दिया है। व्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता जब सरकार को स्वयं प्रतीत न हो रही हो, उस स्थिति में जन-चेतना, जन-आन्दोलन से अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए देश के नागरिकों को अधिकार प्राप्त हैं। जब जन-आन्दोलन को अराजकता फैलाने वाला उपक्रम समझने लगा जाए, तब इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे।
–प्रमोद कुमार गुप्ता
1588, न्यू रायगंज, प्रेमगंज, सीपरी बाजार, झांसी-284003 (उ.प्र.)
n ʴɶÉä¹ÉÉÆEò ने चुनौतियों का साक्षात्कार कराया। देश में मजहब की राजनीति ने सबसे अधिक चुनौतियां खड़ी की हैं। कश्मीर विशुद्ध रूप से मजहबी समस्या है। पर मजहबी राजनीति उसे ठीक नहीं होने दे रही है। असम में भी मजहब की राजनीति करने वालों ने आग लगाई है। वर्षों से बंगलादेशी भारत में आ रहे हैं। फिर भी सीमा खुली क्यों छोड़ी गई? दुनिया का हर देश अपने यहां से अवैध लोगों को मिनटों में बाहर करता है, पर भारत वर्षों से अवैध लोगों को बसा रहा है।
–हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार-854105(बिहार)
कोई उन्हें याद दिलाये
गुणियों का यह मानना है कि अपराध करने वाले को बचाने वाला भी उतना ही अपराधी होता है। जिस प्रकार चोरी करने वाला तो अपराधी होता है मगर चोर को बचाने वाला पुलिस विभाग व न्यायाधीश भी बराबर का हिस्सेदार होता है। ठीक उसी प्रकार प्रधानमंत्री अथवा अन्य उच्च श्रेणी के पदासीन भी भ्रष्टाचारी को बचाकर उस अपराध के भागीदार बन जाते हैं। उन्हें ऐसे अपराधियों को बचाने से रोकने के लिए उपरोक्त तथ्य याद दिलाने की जरूरत है। अगर उसके बाद भी वे खुद को उन्हें बचाने से नहीं रोक पाते तो अवमानना से बचने के लिए त्यागपत्र देकर अपनी साफ छवि को बनाए रखना होगा। इसके बाद भी अगर वे इस्तीफा नहीं देते तो ऐसा ही माना जाएगा कि केवल नाम के लिए ही वे ईमानदार हैं।
–दयाशंकर मिश्र
लोनी, गाजियाबाद (उ.प्र.)
अभिनव योजना
'पत्र लिखो, पुस्तक पाओ' नामक अभिनव योजना से पता चलता है कि आपने पाठकों के मन की बात जान ली है। इस योजना से पाठकों के ज्ञान में वृद्धि होगी और उस ज्ञान का उपयोग संगठन गढ़ने में कर सकेंगे।
–दीपक कुमार
ग्रा.व पो. – सालवन, जिला–करनाल (हरियाणा)
जिम्मेदार है भारतघाती सोच
आतंकवादी अबु जुंदाल की करतूतों की सूची दिनोंदिन लम्बी होती जा रही है। कुछ तत्व जुंदाल के बारे में प्रचारित कर रहे हैं कि गुजरात दंगों के बाद प्रतिशोध के कारण वह आतंकवादी सोच के साथ जुड़ा। क्या ऐसे लोग बताएंगे कि गोधरा में 59 कारसेवकों को जिन्दा जलाने वाले किस घटना से प्रेरित थे? औरंगजेब, जिन्ना, ईदी अमीन की पृष्ठभूमि में भले अन्तर हो, किन्तु लक्ष्य और छवि में समानता थी। बीबीसी उर्दू के संवाददाता ने वर्षों पहले मुश्ताक अहमद जरगर से पूछा था कि नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकर्ताओं को गोली मारने की जगह उनके शरीर पर बम बांधकर क्यों मारता था? उसने कहा इस्लामी उद्देश्यों की खातिर। तो हम क्यों न मानें कि स्वयंभू मजहब ही अशान्ति और नरसंहारों का कारण है। दंगे वाली मनोवृत्ति अब बम विस्फोटों के लिए उत्तरदायी है। इसके लिए पंथनिरपेक्षता के नाम पर फैलाई जा रही भारतघाती सोच जिम्मेदार है।
–विमल चन्द्र पाण्डेय
चारमान खुर्द, डंवरपार
गोरखपुर-273016 (उ.प्र.)
कटिहार में 'पाञ्चजन्य पाठक परिवार' का गठन
गत दिनों कटिहार (बिहार) में पाञ्चजन्य के पाठकों की एक बैठक हुई। इसमें सैकड़ों पाठक शामिल हुए और सबने मिलकर 'पाञ्चजन्य पाठक परिवार' का गठन किया। इस अवसर पर कटिहार के अनेक बुद्धिजीवी भी उपस्थित थे।
हिन्दी दिवस (14 सितम्बर पर)
भारत की पहचान है हिन्दी
हिन्दी भाषा के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। यह जन-जन की भाषा है। कोटि-कोटि कंठों का उद्घोष है। वास्तव में हिन्दी हम सब का मान और मां भारती की पहचान है। हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जो राष्ट्र को एक सूत्र में बांध सकती है। स्वतंत्रता आन्दोलन इस बात का साक्षी है कि हिन्दी कवियों की कविताओं ने सम्पूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांध दिया था। महामना मदन मोहन मालवीय ने कहा था 'हिन्दी अपनी बहनों में सबसे बड़ी बहन है।' हिन्दी साहित्य सम्मेलन के इन्दौर अधिवेशन में गांधी जी ने कहा था, 'राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी का प्रयोग देश की एकता और उन्नति के लिए आवश्यक है।' इसी प्रकार राजर्षि पुरुषोत्तम टण्डन ने कहा था 'हिन्दी के द्वारा राष्ट्रीयता की भावना जागी है।'
किन्तु आज हिन्दी पूरी तरह उपेक्षित है। हमारे अधिकतर सांसद व मंत्री हिन्दी भाषी होते हुए भी संसद में प्राय: अंग्रेजी में ही वक्तव्य देते हैं। जबकि उनका कर्तव्य है कि राष्ट्रभाषा का मान बढ़ायें। इसी प्रकार ऐसे कुछ लोग, जिन्हें भले ही अंग्रेजी समझ में न आती हो, पर शादी समारोह व उत्सवों के निमंत्रण-पत्र अंग्रेजी में छपवाना अपना सम्मान समझते हैं।
आज हमारी युवा पीढ़ी भी अंग्रेजी के मायाजाल में फंसकर दिग्भ्रमित होकर अपने देश की भाषा 'हिन्दी' से कटती जा रही है। पर देखा जाय तो यह दोष इस पीढ़ी का नहीं है, दोष है शिक्षा नीति बनाने वालों का। स्वतंत्रता के 65 वर्षों के बाद भी हमारे देश में लार्ड मैकाले द्वारा प्रतिपादित शिक्षा नीति में दीक्षित लोग भारतीयता से कटते चले जा रहे हैं। लार्ड मैकाले के ये दत्तक पुत्र 'हिन्दी' की उपेक्षा कर राष्ट्र का अपमान कर रहे हैं। संविधान के अनुसार हिन्दी राजभाषा घोषित की गई थी। यदि सरकार की इच्छा शक्ति रही होती तो उसी समय से हिन्दी पूरी तरह राजकाज की भाषा बन गई होती, लेकिन तत्कालीन सरकार ने यह कार्य किया ही नहीं। केन्द्रीय व राज्य सरकारों व सरकारी संस्थाओं द्वारा हर वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है, यह महज एक औपचारिकता भर रह गई है। केवल एक दिन हिन्दी के बारे में भाषण होता है फिर वर्ष भर अंग्रेजी में कार्य होता है। सच्चे मन से हिन्दी को आगे बढ़ाने का कार्य नहीं होता।
आज आवश्यकता इस बात की है प्रत्येक हिन्दी प्रेमी व राष्ट्रभक्त को उठ खड़ा होना होगा। हिन्दी को आगे बढ़ाने का पुनीत कार्य करना होगा। हिन्दी को देश का मान व स्वाभिमान मानना होगा। हिन्दी व देवनागरी लिपि देव भाषा संस्कृत की पुत्री है, देश का गौरव और गरिमा है। हमें शिव संकल्प लेकर आगे आना होगा कि- 'मैं हिन्दी के लिए मर मिटूंगा।' यही सच्चे भारतीय का उद्घोष होना चाहिए कि राष्ट्र भाषा हिन्दी का अपमान न हो। अन्त में मैं यहां हिन्दी के पुरोधा, जाने-माने शिक्षाविद् डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी की इन पंक्तियों को उद्धृत कर रहा हूं जो हर भारतीय को प्रेरणा देने वाली है-
कोटि–कोटि कंठों की भाषा, जन–गण की मुखरित अभिलाषा। हिन्दी है पहचान हमारी, हिन्दी हम सबकी परिभाषा।
–प्रहलाद वन गोस्वामी
'वेदान्त'-157, आदित्य आवास कालोनी, पुलिस लाइन, कोटा-324001 (राजस्थान)
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