मातृभाषा में समझिए शिक्षा का महत्व
|
दल्ली से प्रकाशित मासिक 'जाह्नवी' राजनीतिक विषयों से इतर एक पूर्ण पारिवारिक पत्रिका है। मनोरंजन में गूंथकर संस्कार देने हेतु प्रयासरत यह पत्रिका प्राय: सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर गंभीर मंथन करती प्रतीत होती है। इस दृष्टि से 'जाह्नवी' का सितम्बर माह का अंक विशेष रूप से पठनीय बन पड़ा है, क्योंकि यह राष्ट्रभाषा हिन्दी को समर्पित है। हिन्दी की दयनीय दशा पर चिंतित श्री भारत भूषण चढ्ढा अपने सम्पादकीय 'अंग्रेजी के प्रति बढ़ते मोह को कैसे रोका जाए', में लिखते हैं 'सभी शिक्षा शास्त्री मानते हैं कि बच्चे की प्राथमिक शिक्षा उसकी मातृभाषा में होनी चाहिए। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी निर्देश दिए हैं कि बच्चे की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही हो। इस सबके बावजूद माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा ऐसे स्कूल में पढ़े जहां पहली ही कक्षा से पढ़ाई अंग्रेजी में ही हो।' इसकी कारण-मीमांसा करते हुए वे बताते हैं, 'उच्च शिक्षा में अंग्रेजी का वर्चस्व है। तकनीकी और विज्ञान शिक्षा की बात न भी करें तो, कला और साहित्य में भी अंग्रेजी का वर्चस्व है, कारण-प्रशासनिक कार्यों तथा न्यायालय में भी अंग्रेजी का प्रभुत्व है। यदि इन विभागों का समस्त कार्य भारतीय भाषाओं में प्रारंभ नहीं होगा तो अंग्रेजी का प्रभाव कभी भी रोका नहीं जा सकेगा।' पर वे जानते हैं कि, 'उच्च शिक्षा में अंग्रेजी की वर्चस्विता को हटाना इतना सरल नहीं है।' पर-'रास्ता लम्बा दिखता है, लेकिन यही एकमात्र मार्ग है।'
इसी अंक में 'विश्व मंच पर लहराता हिन्दी का परचम (वेद प्रकाश)', मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा बच्चे के हित में है (वार्ता), गौरवमयी मातृभाषा हिन्दी (महेश शुक्ल), राष्ट्रीय आत्मगौरव कैसे बढ़ाएं (साकेन्द्र प्रताप वर्मा), अंग्रेजी भाषा से मानसिक गुलामी (सुमेर चंद), हिन्दी के प्रति हमारी अपाहिज मानसिकता (प्रो. शरद नारायण खरे) आदि लेखों के माध्यम से यह स्थापित करने का प्रयास किया गया है कि मातृभाषा को छोड़कर सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी जानने और पढ़ने की मानसिकता, भारत के हित में नहीं है। इसके अलावा नियमित रूप से प्रकाशित होने वाली लम्बी व प्रेरक कहानियों का संग्रह भी इस अंक में है ही।
टिप्पणियाँ