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ऐसा लगता है कि आज बाजार ही सब कुछ हो गया है। बाजार को बढ़ाने के लिए नारी को 'भोग्या' के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। विज्ञापन के इस युग में, महिलाओं के अश्लील चित्र, आकर्षक भाव-भंगिमाओं एवं महिलाओं के अंगों का खुला प्रदर्शन करके उपभोक्ता वस्तुओं के लिए अधिकाधिक ग्राहक जुटाने की होड़ सी मच गई है। अधिकाधिक लाभार्जन की आकांक्षा एवं शीघ्र लोकप्रियता हासिल करने के लिए विभिन्न संचार माध्यमों ने नारी के रूप, सौंदर्य व छवि को प्रदूषित व कलंकित कर दिया है। नारी को एक 'उत्पाद' के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जो नारी की महिमा तथा नारी के त्याग, बलिदान व ममता जैसी पवित्र भावनाओं पर कुठाराघात है। विज्ञापन को अधिकाधिक आकर्षक बनाने हेतु अनावश्यक रूप से नारी को अश्लील रूप में प्रस्तुत करने की विभिन्न कंपनियों में होड़ लग गई है। इस अनावश्यक प्रतिस्पर्धा का खामियाजा 'महिलाओं की छवि' को भुगतना पड़ रहा है।
टेलीविजन ने नारी की छवि, महिमा व गरिमा को कलुषित व कलंकित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। धारावाहिकों में नारी का जो स्वरूप चित्रित किया जा रहा है, वह सामाजिक, मानवीय व नैतिक दृष्टिकोण से सरासर गलत व असंगत है। विवाह जैसे पवित्र बंधन पर कीचड़ उछाला जा रहा है। विवाह एक, दो या तीन दिखाये जा रहे हैं। जैसे यह कोई संस्कार न होकर बच्चों का खेल रह गया है। शादी, तलाक, मनमुटाव, ईर्ष्या, द्वेष जैसे नकारात्मक विषयों का प्रदर्शन करके नारी की गरिमा व प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई जा रही है। नारी को ही नारी का दुश्मन चित्रित किया जा रहा है। पति-पत्नी के संबंधों में तनाव, टकराहट व प्रतिद्वन्द्विता को दिखाकर उनके शाश्वत व स्थायी संबंधों की परम्परा को धूमिल व धूसरित करने का प्रयास किया जा रहा है। समाचार पत्र, पत्रिकाओं, सिनेमा व केबल टी.वी. आदि के अनेकानेक विज्ञापनों का आकर्षण महिलाओं का सौंदर्य है। अश्लीलता की पराकाष्ठा के दर्शन इन विज्ञापनों में किये जा सकते हैं। इन सब के कारण समाज में नारी उत्पीड़न, शोषण, यौन हिंसा व यौन उत्पीड़न व बलात्कार की घटनाएं तीव्र गति से बढ़ती जा रही हैं। पारिवारिक व वैवाहिक संबंध क्षणिक व अस्थायी हो रहे हैं, विवाह बंधन ढीले होते जा रहे हैं, तलाकों की संख्या तीव्रता से बढ़ती जा रही है, समाज में स्वच्छन्दता व उन्मुक्तता की हवा चल रही है। सांस्कृतिक व परम्परागत मूल्यों का क्षरण हो रहा है। युवा पीढ़ी में अनुशासन, संयम व धैर्य जैसी उदात्त भावनाएं खत्म हो रही हैं, जो परिवार व समाज के स्वास्थ्य के लिए घातक हैं।
जो महिला, समाज की सृजक और पालक है, उसको समाज के समक्ष केवल 'भोग्या' के रूप में प्रस्तुत करके सम्पूर्ण महिला जगत के साथ भद्दा मजाक किया जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञापन बनवाने या बनाने वाले अर्थ लाभ के लिए नैतिकता और अनैतिकता की सीमा भूल गए हैं। कितना हास्यास्पद तथ्य है कि पुरुषों के शेविंग ब्लेड, बनियान आदि वस्त्रों, कारों के टायर-ट्यूब व घर के रंग रोगन जैसी वस्तुओं के विज्ञापन एवं प्रचार-प्रसार में भी महिला अंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिन्हें पर्दे में रखा जाना चाहिए।
इसी प्रकार, विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में अभिनेत्रियों व मॉडल्स की अश्लील व उत्तेजक तस्वीरों की भरमार होती है। इन पत्र-पत्रिकाओं का इस तथ्य से कोई सरोकार नहीं होता है कि इन उत्तेजक व आकर्षक तस्वीरों का युवा वर्ग पर, उनके जीवन मूल्यों, आदर्शो व नैतिक गुणों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये अशोभनीय, अश्लील तस्वीरें , वस्त्र सरकते चित्र आदि युवा वर्ग को पथभ्रष्ट व दिगभ्रमित करके उन्हें अपने अभीष्ट लक्ष्यों से विमुख कर रहे हैं। यह परिवर्तन परिवार, समाज व देश के लिए शुभ संकेत नहीं है।
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