पाठकीय : 12 अगस्त,2012
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असम हिंसा पर श्री जगदम्बा मल्ल की रपट 'अंगारों पर असम' और डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री के विश्लेषण 'सोनिया पार्टी की देशघातक राजनीति' में जिन सच्चाइयों का चित्र प्रस्तुत किया गया है वह हृदय-वदारक है। सेकुलर मीडिया के दोगलेपन से आम भारतीयों को असम की वास्तविक स्थिति पता नहीं चल रही है। असम के मूल निवासी बोडो विनाश के कगार पर धकेले जा रहे हैं और बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की सहानुभूति में मुम्बई सहित अनेक शहरों में हिंसक उपद्रव किए जा रहे हैं।
–क्षत्रिय देवलाल
अड्डी बंगला, झुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)
n EòÉÆOÉäºÉ की वोट बैंक नीति के कारण असम लगातार अशान्त हो रहा है। बंगलादेशी घुसपैठियों के खिलाफ देशव्यापी अभियान चलना चाहिए। समाज के हर वर्ग को यह बताया जाना चाहिए कि बंगलादेशी घुसपैठिए भारतीयों का हक छीन रहे हैं। लोगों की जागरूकता से ही घुसपैठियों को भारत से खदेड़ा जा सकता है।
–कपिलदेव
सदर बाजार, निकट श्री दुर्गा मन्दिर, मुजफ्फरनगर-251001
n ¤ÉÆMɱÉÉnäù¶ÉÒ घुसपैठियों को नजरअंदाज करना देश के लिए घातक सिद्ध होने लगा है। अभी असम जल रहा है। कल ये लोग अन्य राज्यों में भी दंगे करेंगे। यह देखकर बड़ा दु:ख होता है कि असम दंगों को लेकर सेकुलर मीडिया और नेता वैसे नहीं चिल्ला रहे हैं जैसे कि गुजरात दंगों पर वे अभी भी चिल्ला रहे हैं। सत्ता और वोट की राजनीति में आकंठ डूबे सेकुलरों ने हमेशा से हिन्दुओं के साथ अन्याय किया है।
–मनोहर 'मंजुल'
पिपल्या–बुजुर्ग, प. निमाड़-451225 (म.प्र.)
n +ºÉ¨É को मुस्लिम-बहुल प्रदेश बनाने की साजिश वर्षों से चल रही है। सेकुलर नेताओं ने वोट के कारण इस साजिश की अनदेखी की है। उसी अनदेखी का दुष्परिणाम असम में दिखने लगा है। यदि अब भी बंगलादेशी घुसपैठियों को भारत से खदेड़ा नहीं गया तो पूरे देश में असम जैसी घटनाएं होंगी, क्योंकि ये घुसपैठिए पूरे भारत में तेजी से बस रहे हैं।
–प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर
1-10-81, रोड नं.-8 बी, द्वारकापुरम दिलसुखनगर
हैदराबाद-500060 (आं.प्र.)
n ¨ÉVɽþ¤É की राजनीति करने वालों ने असम को दावानल में झोंक दिया है। बंगलादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देने वाले देश के दुश्मन हैं। इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। जो लोग घुसपैठियों की हिमाकत करते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसा तब होगा जब भारत के मूल निवासी एकजुट होकर सरकार पर दबाव डालेंगे।
–हरिहर सिंह चौहान
जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
n +ºÉ¨É में आईएमडीटी एक्ट के कारण घुसपैठियों को बल मिला। इस कानून के अनुसार शिकायतकर्ता को ही यह सिद्ध करना पड़ता था कि अमुक व्यक्ति घुसपैठिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस एक्ट को 12 जुलाई 2005 को रद्द कर दिया। किन्तु केन्द्र सरकार ने चालाकी दिखाते हुए इसमें मामूली संशोधन कर 2006 में पुन: लागू कर दिया, क्योंकि वह घुसपैठियों को अपना वोट बैंक मानती है। 2006 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने इसे भी रद्द करते हुए केन्द्र सरकार पर 25000 रु. का जुर्माना लगाया। और यह भी कहा कि घुसपैठियों को निकालने के लिए न्यायाधिकरण का गठन करे। दिखावे के लिए सरकार ने न्यायाधिकरण तो बना दिया पर एक भी घुसपैठिए को बाहर नहीं किया गया।
–महेश सत्यार्थी
टैक्नो इंडिया इन्वर्टर सर्विस, पुरानी अनाज मण्डी, उझानी, जिला–बदायूं-243639 (उ.प्र.)
370 की आड़ में देशद्रोह
श्री नरेन्द्र सहगल का आलेख 'जम्मू और लद्दाख की बर्बादी का बिगुल' पढ़ा। 1947 से ही कश्मीर भारत का सर-दर्द बना हुआ है। यह दर्द तब और बढ़ गया जब धारा 370 लागू करके उसे भारत से अलग होने का 'रास्ता' दे दिया गया। धारा 370 की आड़ में ही कश्मीरी राजनीतिक नेता और अलगाववादी कहते हैं, 'कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय नहीं हुआ है।' ऐसे बयान देने वालों को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त रहता है। जम्मू-कश्मीर की सरकार हिन्दू-बहुल जम्मू और बौद्ध-बहुल लद्दाख की घोर उपेक्षा करती है। यह सब सेकुलरों को क्यों नहीं दिखता है?
–हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार-854105 (बिहार)
अन्य वेदों की भी जानकारी दें
श्री हृदयनारायण दीक्षित का लेख ' उल्लास और उमंग का गीत है ऋग्वेद' पढ़कर अति प्रसन्नता हुई। कितने वर्षों से चार वेदों की जानकारी थी। समय के साथ भूलने लगे हैं। यह इतना विस्तृत और विशाल है कि अब पढ़ना संभव नहीं है। कृपया इसी सन्दर्भ में और वेदों के बारे में लेख प्रकाशित करें। बच्चों की दृष्टि से भी पर्याप्त सामग्री प्रकाशित करेंगे तो पाञ्चजन्य के प्रति उनकी रुचि बढ़ेगी।
–उर्मिल मित्तल
मित्तल सदन, 94/द्वितीय, खुडबुडा, देहरादून (उत्तराखण्ड)
मुल्लावाद
श्री मुजफ्फर हुसैन ने अपने लेख 'पाकिस्तान में पोलियो खुराक का विरोध' में पाकिस्तान के मुल्लावाद को उजागर किया है। पूरे विश्व में पोलियो की दवा 1-5 वर्ष तक के बच्चों को पिलाई जाती है। राष्ट्रसंघ का यह विशेष अभियान है। पर मजहबी कट्टरवादी इस दवा को लेकर बड़ी गलत बातें कर रहे हैं। हद हो गई कट्टरता की। इसे मुल्लावाद कहें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
–कुन्ती रानी
वार्ड नं. 36, कटिहार (बिहार)
यह कैसी आजादी?
भारत को आजाद हुए 65 वर्ष हो चुके हैं। हमें आजादी तो मिली पर एक बड़ा भू-भाग खोकर। फिर भी भारतीयों ने सारे दु:ख-दर्द को भूलकर आगे की सुध ली। यही कारण है कि भारतीयों ने आज दुनिया में अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया है।
वहीं दूसरी ओर कड़वा सच यह भी है कि देश के लगभग 70 प्रतिशत लोग केवल 20 रु. प्रतिदिन पर गुजर-बसर करने को मजबूर हैं (सेनगुप्ता आयोग की रपट के अनुसार)। बेघरों की संख्या बढ़ रही है। बेरोजगारों की फौज खड़ी है। गरीबी ऐसी है कि कुछ लोगों को अपने तन ढकने के लिए भी पर्याप्त कपड़े नहीं मिल रहे हैं। जब तक देश के समस्त संसाधनों का उपयोग सभी वर्गों के लिए उचित ढंग से नहीं होगा तब तक हमारी आजादी अधूरी है। शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा आदि सुविधाओं की ही बात ले लीजिए। कुछ अपवादों की बात छोड़ दें। क्या किसी गरीब का बच्चा पढ़ाई में तेज होते हुए भी आई.ए.एस., आई.पी.एस., डॉक्टर, इंजीनियर आदि बन सकता है? बिल्कुल नहीं। हां, समाज के कुछ सेवाभावी लोगों की सहायता से जरूर कुछ गरीब बच्चे सफल हो रहे हैं। पर इन बच्चों के लिए सरकार ने क्या किया? एक इंजीनियर या डॉक्टर की पढ़ाई में लाखों रुपये खर्च होते हैं। इस हालत में भला एक गरीब आदमी अपने बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर कैसे बना सकता है? जबकि जिनके पास धन है, उनके बच्चे देश ही नहीं, विदेश में पढ़ रहे हैं। कहने को तो सरकार उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को शिक्षा-ऋण उपलब्ध कराती है। किन्तु शिक्षा-ऋण देते समय बैंक वाले ऐसे-ऐसे नियम बताते हैं कि उनमें एक गरीब आदमी कहीं नहीं टिकता है। जिस बच्चे को शिक्षा-ऋण दिया जाता है उसके माता-पिता की पासबुक देखी जाती है कि लेन-देन का क्या स्तर रहता है? घर-मकान देखा जाता है। प्रतिमाह की आय देखी जाती है। इसके बाद ही शिक्षा-ऋण स्वीकृत होता है। इस हालत में एक गरीब के होनहार बच्चे को शिक्षा-ऋण नहीं मिल पाता है। यदि किसी गरीब का प्रतिभाशाली बच्चा पैसे के अभाव में डॉक्टर, इंजीनियर नहीं बन सकता है, तो फिर यह कैसी आजादी है?
महंगाई बढ़ती है, तो सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों और संगठित क्षेत्र में काम करने वालों को महंगाई भत्ता दिया जाता है। किन्तु मजदूरों, किसानों और इस तरह के अन्य लोगों को कोई महंगाई भत्ता नहीं मिलता है। ये लोग किस हालत में जीते हैं, इसकी भी सुध लेने वाला कोई नहीं है। 1947 से पूर्व जो भवन, पुल, स्मारक आदि बने, वे आज भी शान के साथ मजबूती से खड़े हैं। किन्तु आजादी के बाद बने भवन या पुल जर्जर घोषित हो चुके हैं। करोड़ों रु. से कोई फ्लाईओवर बनता है और 5-7 साल में ढह जाता है। यह कैसी आजादी है, जिसमें लोग राष्ट्रहित से ज्यादा स्वहित को महत्व दे रहे हैं?
नई पीढ़ी को शिक्षा तो ऐसी दी जा रही है कि वह काम करने वाली 'मशीन' बनती जा रही है। शिक्षा में न तो अपने संस्कार शामिल हैं, न अपनी परम्परा और न अपनी सदियों पुरानी संस्कृति, न ही वह आध्यात्मिकता, जो लोगों को सही-गलत का ज्ञान देती है, अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित करती है, और देशभक्ति का पाठ पढ़ाती है। इस कारण एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है, जिसमें संवेदनशीलता, धैर्यशीलता की कमी दिखने लगी है। आज मैकाले यह महसूस कर अपनी कब्र में मुस्कुरा रहा होगा कि उसकी षड्यंत्रकारी शिक्षा नीति आज भारत में पूरी तरह हावी है। क्योंकि उसी शिक्षा नीति के कारण कुछ भारतीय आज अपनी सदियों पुरानी संस्कृति को 'दकियानूसी' मानने लगे हैं।
रही-सही कसर भ्रष्टाचारियों और वोट बैंक की राजनीति ने पूरी कर दी है। गोरे अंग्रेजों के जाने के बाद इस देश को 'काले अंग्रेज' जम कर लूट रहे हैं। लूट का पैसा विदेशी बैंकों में जमा कर रहे हैं। काम के समय काम नहीं करते हैं और चुनाव के समय 'बांटो और राज करो' की नीति पर चलकर वोट प्राप्त कर रहे हैं। मजहब के नाम पर सरकारी नीतियां बनाई जा रही हैं। इस कारण ऐसी-ऐसी मांगें होने लगी हैं, जो 1947 से पूर्व होती थीं। और वे मांगें मानी भी जा रही हैं। इस कारण देश फिर एक बार 1947 के विभाजक दौर में पहुंचता दिख रहा है। क्या इन्हीं दिनों के लिए क्रांतिकारियों ने अपनी जान देकर भारत को 1000 वर्ष की गुलामी से मुक्त कराया था?
–दिनेश पाठक
एन-4/8, डीएलएफ, फेस द्वितीय गुड़गांव (हरियाणा)
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