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एक मण्डीकर्मी द्वारा आत्महत्या पर कांग्रेसियों द्वारा की गई राजनीति ने सहज और बेदाग छवि वाले छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू को बहुत आहत किया। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने चन्द्रशेखर साहू के विरुद्ध जांच के आदेश पर रोक लगा दी है, लेकिन पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू तथा अन्य कांग्रेसियों द्वारा उन्हें बदनाम किए जाने को उन्होंने ओछी राजनीति करार दिया है।
घटनाक्रम के अनुसार रायपुर जिले के मानिकचौरी गांव के निवासी छवीराम (42 वर्ष) ने गत 2 जुलाई को आत्महत्या कर ली। बताते हैं कि वह नयापारा राजिम से रायगढ़ के बरमकेला स्थानांतरण किए जाने से परेशान था और इसीलिए उसने आत्महत्या कर ली। यही उसने आत्महत्या से पूर्व लिखे पत्र में भी लिखा। चूंकि छविराम साहू उसी मानिकचौरी का रहने वाला था जिसके रहने वाले कृषिमंत्री चन्द्रशेखर साहू हैं, लिहाजा कांग्रेस, विशेषकर पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू ने अरोप जड़ दिया कि व्यक्तिगत शत्रुता के चलते चन्द्रशेखर साहू ने अपने पद और प्रभाव का प्रयोग कर छविराम साहू का स्थानांतरण नियम विरुद्ध तरीके से करा दिया, जिस कारण उसे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा, इसलिए कृषि मंत्री को त्यागपत्र देना चाहिए और उनके विरुद्ध जांच होनी चाहिए। बताते चलें कि मानिकचौरी धनेन्द्र साहू का भी निर्वाचन क्षेत्र है।
बहरहाल धनेन्द्र साहू के दबाव में आकर छवीराम साहू के परिजनों आदि ने कृषिमंत्री के विरुद्ध आत्महत्या के लिए मजबूर किए जाने का मामला दर्ज करवा दिया, पर निचली अदालत ने इसे विचारयोग्य ही नहीं माना और खारिज कर दिया। इसके बाद मामला उच्च न्यायालय ले जाया गया। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश टी.पी. शर्मा ने 30 जुलाई को चन्द्रशेखर साहू के विरुद्ध जांच के आदेश दे दिए, जिसके बाद कांग्रेसियों ने उनके त्यागपत्र की मांग तेज कर दी। लेकिन न्याय मांगने के लिए चन्द्रशेखर साहू ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 16 अगस्त को उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद पेश हुईं। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति वी.एस. चौहान की खण्डपीठ ने पूरे प्रकरण पर दलीलें सुनकर कृषिमंत्री चन्द्रशेखर साहू के विरुद्ध उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए जांच के आदेश पर न केवल रोक लगा दी बल्कि उस निर्णय पर भी तीखी टिप्पणी की। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय पर कहा कि निचली अदालत से इस तरह का आदेश आए तो समझ में आता है लेकिन उच्च न्यायालय द्वारा इस तरह का अतार्किक निर्णय किया गया, आश्चर्य है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि केवल आत्महत्या से पूर्व लिखे गए पत्र में नामोल्लेख होने मात्र से किसी को आरोपी नहीं बताया जा सकता। पुलिस व्यापक जांच करे, और सुबूत जुटाए, तभी किसी मामले में किसी व्यक्ति की संलिप्तता पता चलती है। इस निर्णय से भले ही चन्द्रशेखर साहू को राहत मिल गई है, पर उनकी बदनामी का कांग्रेसी अभियान अभी भी जारी है। प्रतिनिधि
राज्य के कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू के विरुद्ध जांच पर रोक
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