हिन्दी-हितैषियों का पुण्य-स्मरण
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सितम्बर का महीना हिन्दी के हितैषियों के पुण्य-स्मरण का महीना है। 1 सितम्बर हिन्दी के सेवाव्रती आराधक फादर कामिल बुल्के और हिन्दी गज़ल के वर्तमान यज्ञ-सत्र के पुरोधा दुष्यन्त कुमार की जन्मतिथि है तो 4 सितम्बर को नई कविता के प्रमुख स्तम्भ तथा 'धर्मयुग' जैसी पत्रिका के माध्यम से साहित्यिक पत्रकारिता के मानक स्थापित करने वाले डा. धर्मवीर भारती की पुण्यतिथि। 9 सितम्बर 'निज भाषा' की उन्नति के स्वस्ति-मन्त्र के उद्गाता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की जन्मतिथि है तो 11 सितम्बर सकारात्मक स्त्री-विमर्श की दीप्त शिखा महीयसी महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि। इसी महीने में 18 सितम्बर को हिन्दी के निर्मल हास्य के निश्छल कवि काका हाथरसी की जन्मतिथि तथा पुण्यतिथि का समन्वय होता है तो 23 सितम्बर राष्ट्रीय गौरव की तेजस्वी हुंकार दिनकर की जन्मतिथि है। अन्य कुछ वरेण्य साहित्यकार भी इस मास से निश्चय ही सम्बद्ध होंगे। 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाने के प्रावधान ने हर हिन्दीभाषी और हिन्दी-प्रेमी को इस मास से एक विशेष भावात्मक सम्बद्धता दे दी है। यह एक कर्त्तव्य है कि हम इस महीने में हिन्दी की दशा-दिशा पर चिन्तन-अनुचिन्तन करें और उसकी प्रगति के सन्दर्भ में अपनी स्वयं की भूमिका पर भी विचार करें! आखिर हमारी चेतना और चिन्तना में हिन्दी कहां है? हमने उसके लिये क्या किया है, क्या कर रहे हैं, और क्या कर सकते हैं ? जब तक पुण्यात्माओं का स्मरण हमारी प्रेरणा का स्रोत और प्रगति-पथ का पाथेय नहीं बनता तब तक वह अंधकार से आपूरित घर में दीप-चर्चा के निरर्थक शब्द-व्यापार के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। आवश्यकता दीप-चर्चा की नहीं दीप-प्रज्जवलन की है! और इस अनुष्ठान में हर हिन्दी प्रेमी को स्वयं प्रदीप बनना होगा। श्रद्धेय गुरुवर स्व. रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी 'रामेश्वर' की उद्बोधन प्रदात्री पंक्तियां इस प्रसंग में स्मृति में उभर रही हैं –
उठ तुझे मेरी शपथ है
चल तुझे मेरी शपथ है
आग अंगों से लपेटे
प्राण में पीड़ा समेटे
दीप जैसे जल रहा है
जल तुझे मेरी शपथ है
सेवाव्रती को समन्वयक-भाव की दीक्षा लेनी होगी, यही उसकी योग्यता की परीक्षा है –
उठ कि तेरे साथ उठकर धूल चल दे
चल कि तेरे साथ हंसकर फूल चल दे
गा कि तेरे साथ सूखे कंठ गायें
आ कि तेरे साथ सुख के सिन्धु आयें
और उसे अपने अन्तस् में निरन्तर इस बोध को बनाये रखना होगा –
भूल मत भावुक अभागे
जिन्दगी का अर्थ जगना
जिन्दगी का अर्थ उठना
जिन्दगी का अर्थ चलना
जिन्दगी सोना नहीं है
जिन्दगी है कर्म की पावन त्रिवेणी
इस त्रिवेणी के तटों पर
बैठकर रोना नहीं है!
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प्रेरणास्पद नीति
और बोध कथाएं
'वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता:' की वैदिक दृष्टि के जीवन्त उदाहरण, अहर्निश राष्ट्रचेतना के जागरण को समर्पित रचनाकार श्री शिवकुमार गोयल की सद्य: प्रकाशित पुस्तकें 201 प्रेरक नीति कथाएं तथा 222 शिक्षाप्रद बोध कथाएं (प्रकाशक – प्रतिभा प्रकाशन, 1661 दखनीराय स्ट्रीट, नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली तथा विद्या विहार, 1660 कूचा दखनीराय, दरियागंज नई दिल्ली, प्रत्येक का मूल्य 200रु.) आचरण के मंगल-सूत्रों का अवदान देने वाली अभिनन्दनीय कृतियां हैं। उपनिषदों, पुराणों और विविध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक संकायों से उपलब्ध प्रेरणास्पद सामग्री को सहज-सरल भाषा और सर्वसंवेद्य शैली में प्रस्तुत करके श्री शिवकुमार गोयल ने हर परिवार के लिये एक पाथेय उपलब्ध करा दिया है। आधुनिकता के कुछ अतार्किक हिमायती किशोरों के मानस पर कोई भी आदर्श थोपने के खिलाफ रहते हैं और तमाम बोध गाथाओं तथा नीति-कथाओं के व्यक्तित्व-संस्कारक तत्व को व्यक्ति की उन्मुक्त प्रगति में बाधक मानते हैं। उनकी मानसिकता को प्रश्रय देते हुए वर्तमान शिक्षा-नीति के नियन्ताओं ने भारतीय मानस में रचे-बसे तमाम आदर्श पात्रों को पाठ्यक्रम से बहिष्कृत करने की नीति अपना रखी है। स्वयं को आधुनिकता का पैरोकार मानने वाले इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को एक साधारण-सा मानवीय मनोविज्ञान नहीं पता कि कच्ची उम्र में अनुकरण की प्रवृत्ति होती ही है। यदि आप बच्चों और किशोरों के समक्ष आदर्श चरित्र प्रस्तुत नहीं करेंगे तो आधुनिक विकृतियों के सक्षम व्याख्याकार अनेक इलैक्ट्रानिक मनोरंजन-साधन उन्हें अपने द्वारा प्रस्तुत विकृत चरित्र अनुकरण के लिये उपलब्ध करा देंगे। अपने सांस्कृतिक वैभव से अपरिचित, अपनी सामाजिक परम्पराओं से अनभिज्ञ, अपने धार्मिक स्वस्ति-वचनों से वंचित हमारी युवा-पीढ़ी के सदस्य जाने-अनजाने आत्मगौरव से हीन तथा आत्मविस्मृति के आखेट बनकर रह जायेंगे। विशुद्ध व्यापारिक पश्चिमी मनोवृत्ति इस देश को ऐसी ही सांस्कृतिक शून्यता में पहुंचाना चाहती है। इस भयावह आक्रमण के विरुद्ध प्रतिरोध का अप्रतिहत वेग बनकर उमड़ा है श्रद्धेय शिवकुमार गोयल का लेखन। ये नीति कथाएं और बोध कथाएं उसी प्रतिकार की प्रामाणिक उद्घोषणाएं हैं।
कभी साहित्य-मनीषी डा. विद्यानिवास मिश्र ने और 'कल्याण' के सम्पादक श्रद्धेय हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गोयल जी को छोटी कथाओं के माध्यम से सद्भाव का प्रचार करने की प्रेरणा दी थी। देश की विविध पत्रिकाओं ने युवा पीढ़ी को दिशा-बोध और दायित्व-बोध दिलाने के लिये गोयल जी से इस प्रकार के लेखन को अनवरत रखने का आग्रह किया। कुछ समाचार पत्र प्रतिदिन एक नियमित स्तंभ के रूप में गोयल जी के प्रेरणास्पद वाक्यों और कथाओं को प्रकाशित करते हैं और प्रात:कालीन स्वस्तिवाचन की तरह उनका लेखकीय अवदान हर घर में सात्विकता की तरंगों को जगाने का माध्यम बन जाता है। शिक्षाप्रद बोध कथाएं और प्रेरक नीति कथाएं जीवन के सभी आयामों का संस्पर्श करते हुए हमें उच्चता के सोपानों पर संचरण हेतु उन्मुख करती हैं। उनके कुछ शीर्षक उनके अन्तनिर्हित मन्तव्यों को प्रकट करने में समर्थ हैं – अनूठी कर्मनिष्ठा, अनूठी हिन्दी निष्ठा, राष्ट्रधर्म की प्रेरणा, ईश्वर निष्ठा, धर्मयुद्ध का आह्वान तथा सन्त का आदेश, मुनि का विवेक, वाणी का महत्व, सेवा का सुफल, भगवान के दर्शन आदि। राष्ट्र-चिन्ता से सतत् संयुक्त श्रद्धेय शिवकुमार गोयल की आलोकधर्मा लेखनी इसी तरह ज्योति के प्रभा-पत्र रचती रहे – इसी शुभकामना के साथ।
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