असमऔर म्यांमार की घटनाओं के नाम पर हजारों की संख्या में रमजान के आखिरी शुक्रवार को नमाज के बाद जुलूस के दौरान हिंसा और अराजकता का खुलकर प्रदर्शन हुआ। शहर के पुराने मुख्य बाजार चौक के अन्तर्गत घंटाघर से लेकर जानसेनगंज चौराहा और लीडर रोड पर मजहबी उपद्रवियों ने जमकर तोड़-फोड़ और लूटपाट की। सड़कों पर दुकानदारों और ग्राहकों के खड़े चार पहिया वाहनों, दो पहिया वाहनों को ईंट, पत्थर और लोहे की छड़ों से क्षतिग्रस्त कर दिया गया। बाजार में हिन्दुओं की आधा दर्जन से अधिक दुकानों में तोड़-फोड़ कर लूट लिया गया। लगभग 6 घंटे तक चले इस उपद्रव में स्थानीय पुलिस, प्रशासन मूकदर्शक की भूमिका में था। आखिरकार जब अराजकता बढ़ने लगी तो दूसरे पक्ष के स्थानीय युवकों ने भी मोर्चा खोला तब जाकर इन उपद्रवियों को पीछे हटना पड़ा और पुलिस सक्रिय हुई। आखिरकार कुछ क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाना पड़ा। प्रशासनिक लापरवाही, उदासीनता की बात करें तो शहर में कई दिनों से एसएमएस या ई-मेल से दंगा भड़काने की कोशिशें हो रही थीं। स्थानीय मीडिया के साथ-साथ खुफिया विभाग को भी इसकी जानकारी थी।
रमजान के जुलूस की इतनी तैयारी की थी कि बिना अनुमति के ही जुलूस निकालने की योजना बनी। प्रशासन इससे अनजान नहीं था। यद्यपि एक दिन पहले मुस्लिम संगठनों और उलेमाओं ने कथित तौर पर इस जुलूस से अपने को अलग करते हुए जुलूस न निकालने की अपील की थी। लेकिन यह अपील दिखावाभर साबित हुई। शुक्रवार को दोपहर की नमाज के बाद करेली के नूरुल्ला रोड पर भारी संख्या में मुस्लिम युवक झंडे-बैनर लेकर नारे लगाते हुए एकत्र हुए।
करेली के बैरियर चौराहे से जुलूस चला तो नाममात्र की पुलिस पीछे-पीछे थी। लगभग पौन घंटे बाद जुलूस जब खुलदाबाद चौराहे पर पहुंचा तो उसे बैरियर लगाकर रोकने का प्रयास किया गया लेकिन पुलिस बल की कम संख्या को देख कर भीड़ ने बैरियर तोड़ दिया और कोतवाली थाने की ओर बढ़े। इतना सब होने के बाद भी कोई वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी कहीं नजर नहीं आ रहा था। कोतवाली थाने के सामने भी पुलिस बल नहीं था, सो जुलूस आगे बढ़ा और घंटाकर पहुंचते ही तोड़-फोड़ शुरू हो गयी। प्रशासनिक लापरवाही का इससे बड़ा सबूत क्या हागा कि बैरियर चौराहे पर दोपहर 2.15 बजे प्रदर्शन शुरू हुआ और डेढ़ घंटे बाद कोतवाली पहुंचा, लेकिन इतने समय में धारा 144 लागू होने के बाद भी जुलूस को रोकने के लिए पर्याप्त संख्या में पुलिस बल नहीं आ पाया। प्रदेश में सत्तारूढ़ सपा के मुख्यमंत्री खुलेआम कहते हैं कि उन पर मुसलमानों के बहुत 'अहसान' हैं। शायद उन्हीं 'अहसानों' का खौफ स्थानीय प्रशासन पर भारी पड़ रहा है।
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