गहन वैचारिकता का इंद्रधनुष
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का इंद्रधनुष
यह सही है कि राजनीतिक स्वार्थवश और संकीर्ण सोच के चलते कुछ लोग देश के गौरवमयी अतीत और यहां के मूल्यों-परम्पराओं, संस्कृति को पिछड़ा और तथाकथित आधुनिक बनने के मार्ग में बाधक मानते हैं। लेकिन इन्हीं आस्थाओं और जीवन के शाश्वत मूल्यों पर भरोसा करने के चलते ही भारत भूमि की सभ्यता और संस्कृति को संपूर्ण विश्व में सम्मान के साथ देखा व जाना जाता है। ऐसे में देश के हर जागरूक नागरिक का यह प्रथम कर्तव्य होना चाहिए कि वह न केवल इस मातृभूमि की महान संस्कृति को गहनता से जाने व समझे और आत्मसात करे बल्कि इस बारे में दूसरों को भी जागरूक बनाए। अपने इसी नैतिक कर्तव्य की पूर्ति के क्रम में डा. मधु पोद्दार के कुछ गहन वैचारिक निबंधों का संकलन हाल में ही प्रकाशित होकर आया है। इस पुस्तक में लेखिका ने कई राष्ट्रीय और सामाजिक विषयों का विस्तार से मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। कुछ समस्याओं के समाधान बताने के साथ ही लेखिका पाठकों (खासतौर पर युवाओं) को उनके दायित्वों से भी परिचित कराती चलती हैं। पुस्तक के आरम्भिक अध्यायों में निबंधों का विषय नैतिक और सांस्कृतिक है जो आगे चलकर राष्ट्रीय समस्याओं की ओर जुड़ जाता है। इसके बाद उसकी दिशा पर्व-परम्परा और महान देशभक्त विभूतियों की ओर भी मुड़ जाती है। इस तरह कह सकते हैं कि लेखिका ने इस पुस्तक के द्वारा भारतीय आत्मा के मूल को पहचानने और उसे संवारने व शक्ति संपन्न बनाने की कोशिश की है।
सभ्यता और संस्कृति को परिभाषित करने के साथ ही उनके भेद और वर्तमान समय में इनकी स्थिति पर लेखिका टिप्पणी करती हैं, 'पश्चिमी देश सदैव सभ्यता प्रधान रहे हैं, जबकि भारत मूलत: अध्यात्मवादी। आज हमारे लिए दु:ख की बात यह है कि जो भारतीय संस्कृति अब तक सिर ऊंचा किए रही, जो विदेशियों के भीषण आक्रमणों के बावजूद नष्ट नहीं हुई, आज वहीं पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण से धराशायी होने के कगार पर है।' मानवीय दायित्वों की पूर्ति के लिए जीते-जी रक्त दान और मरणोपरांत अंगदान, देहदान को महादान बताते हुए लेखिका ने कई पुराणों से उद्धृत श्लोकों में दान के महात्म्य को विस्तार से व्याख्यायित किया है। इसी तरह अगले अध्याय में सेवा को परम धर्म बताते हुए उसकी आवश्यकता और महात्म्य को लेखिका ने स्पष्ट किया है। अनेक उद्धरणों के आलोक में प्राचीन मानवीय मान्यताओं की सत्यता को लेखिका ने वैज्ञानिक तर्कों पर प्रमाणित किया है। पुस्तक के अंतिम अध्यायों में सावरकर और सुभाष चंद्र बोस जैसे अद्वितीय देशभक्तों के माध्यम से राष्ट्र की अस्मिता को बनाए रखने का आदर्श भी प्रस्तुत किया गया है। पुराणों और वेदों में बताए गए मूल्यों को कुछ संकीर्ण लोगों के द्वारा भ्रम या झूठ बनाए जाने के प्रति सप्रमाण आलोचना करते हुए लेखिका ने उनके सार्वकालिक महत्व को बताया है। कह सकते हैं कि यह पुस्तक न केवल भारतीय संस्कृति को समझने में सहायक हो सकती है बल्कि उच्च मूल्यों पर आस्था रखने वाले मनुष्य को तैयार करने में भी सहायक हो सकती है।
पुस्तक का नाम – आशाओं का इंद्रधनुष
लेखिका – डा. मधु पोद्दार
प्रकाशक – अनुभव प्रकाशन
ई- 28, लाजपत नगर,
साहिबाबाद, गाजियाबाद-3
मूल्य – 360 रु. पृष्ठ – 232
फोन – (0120) 4112210
विभूश्री
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